Friday 30 October 2015

गीता भारत तो लौट आई पर कहानी में नया मोड़ आ गया है

कुछ महीने पहले बॉलीवुड की फिल्म बजरंगी भाईजान आई थी जिसके बाद पाकिस्तान में रह रही मूक-बधिर लड़की गीता की स्वदेश वापसी संभव हुई। लेकिन भारत की जमीन पर कदम रखने के साथ ही गीता की कहानी में एक नया मोड़ आ गया। बिहार के सहरसा के जिस महतो परिवार के फोटो को गीता ने अपने माता-पिता के तौर पर पहचाना था उन्हें जब उसने आमने-सामने देखा तो बिल्कुल नहीं पहचान सकी। बेटी को गले लगाने की तमन्ना लिए पिछले कई दिनों से दिल्ली में डेरा डाले जनार्दन महतो को भारी निराशा हुई। पाकिस्तान में करीब 15 साल तक रहने के बाद भारत की बेटी आखिरकार सोमवार को अपने वतन लौट आई। पाकिस्तान से ईदी फाउंडेशन के साथ गीता पीआईए के विमान से दिल्ली आई तो विदेश मंत्रालय और पाकिस्तानी उच्चायुक्त के वरिष्ठ अधिकारी उसका स्वागत करने हवाई अड्डे पर मौजूद थे। कोई डेढ़ दशक पहले हुई भटकन को उसकी मंजिल मिल गई, जब गूंगी-बहरी गीता भूलवश बॉर्डर पार कर गई थी। अगर अनजाने में सीमा पार की एक गलती को दरकिनार कर दें तो गीता प्रकरण की यह परिणति असाधारण कही जाएगी। इसमें उसकी परवरिश करने वाले गैर सरकारी संगठन ईदी, पाकिस्तान का भाईचारा निभाने वाला समाज और वहां के रेंजर व सरकार ने शानदार रोल प्ले किया है। इसके लिए उन सबका शुक्रिया। इसके साथ भारत सरकार भी बधाई की पात्र है जिसने संवेदनशीलता दिखाई। यह अच्छा हुआ कि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गीता की वापसी में पाकिस्तान सरकार की ओर से मिले सहयोग का न केवल जिक्र किया बल्कि उनका शुक्रिया भी अदा किया। तमाम कटुता और कूटनीतिक स्तर पर तनातनी के बावजूद दोनों देशों के बीच ऐसे रिश्ते बने रहने चाहिए और आम लोगों को किसी तरह की कोई कठिनाई न हो। गीता की वापसी के साथ ही एक ऐसे पाकिस्तानी किशोर का मामला सामने आया है जो एक अरसे से भारत में रह रहा है और किन्हीं कारणों से पाकिस्तान नहीं लौट सका है। ऐसे मामलों में सहानुभूतिपूर्वक फैसला करना जरूरी है। इस जरूरत की पूर्ति उन कैदियों के मामले में भी की जानी चाहिए जो सजा पूरी करने के बावजूद एक-दूसरे की जेलों में बंद हैं। दोनों देशों को उन मछुआरों के मामले में भी सहानुभूति दिखाने की जरूरत है जो भटक कर एक-दूसरे की सीमा लांघ जाते हैं। गूंगी-बहरी गीता की 15 साल तक देखभाल करने वाले कराची के ईदी फाउंडेशन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक करोड़ रुपए की डोनेशन देने की घोषणा की है। अभी इसमें थोड़ी कंफ्यूजन है कि ईदी फाउंडेशन ने उसे स्वीकार किया है या नहीं? डोनेशन पर कंफ्यूजन की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी अखबार डॉन ने ईदी फाउंडेशन के प्रवक्ता के हवाले से खबर दी कि संस्था ने डोनेशन लेने से मना कर दिया है। यह भी कहा गया कि संस्था की ओर से बाद में बयान भी दिया जाएगा। हालांकि देर शाम भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय अधिकारियों ने पुष्टि करने के लिए ईदी फाउंडेशन के प्रतिनिधियों से बात की थी और उन्होंने उन रिपोर्टों को गलत बताया कि फाउंडेशन ने डोनेशन लेने से मना किया है। प्रधानमंत्री ने सोमवार को एक करोड़ रुपए भेंट देने का ऐलान किया था। हालांकि गीता की वापसी भी राजनीति से अलग नहीं रह पाई। पाकिस्तान ने इसके बदले सैकड़ों कैदियों की रिहाई की मांग रख दी। यह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कि एक तरफ तो वह गीता को वापस भेजकर मानवता का उदाहरण पेश करता है वहीं जम्मू-कश्मीर में रह-रहकर गोलाबारी से बाज नहीं आता। बेहतर हो कि पाकिस्तान ने गीता की वापसी को लेकर जैसी मानवता का उदाहरण पेश किया है वहीं वह भारत की अन्य क्षेत्रों में आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करे।

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