Sunday 4 October 2015

दादरी का सच

ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में हुई अखलाक की हत्या के मामले में जांच से पता चला है कि पुजारी सुखबर ने एक होमगार्ड के कहने पर लाउडस्पीकर से घोषणा की थी कि गांव में पशुवध हुआ है। पुजारी वर्दी के रौब से डर गया क्योंकि होमगार्ड ने पुजारी को धमकाया था। होमगार्ड ने ग्रामीणों से भी कहा कि पिता-पुत्र ने मिलकर गौहत्या की है। अब समय आ गया है कि इन्हें सबक सिखाया जाए। यही नहीं, होमगार्ड ने पिता-पुत्र के घर में ही होने की खबर पक्की होने पर भीड़ को इशारा किया कि वह उन पर धावा बोले। इस होमगार्ड का रिकार्ड पहले से ही खराब है। इसने पहले भी खुराफाती हरकत की है जिससे स्थानीय शांति भंग हुई है, उपद्रवी माहौल कायम हुआ है। यह होमगार्ड जिलाधिकारी कार्यालय में तैनात था और वहां से इसकी तैनाती जैसे ही जारचा कोतवाली में हुई उसके दूसरे दिन ही उसने फिर खुराफात की। स्थानीय पुलिस की भूमिका भी कम संदेहास्पद नहीं है। इस होमगार्ड को हिरासत में लिए तीन दिन बीत गए हैं किन्तु अभी भी उसकी गिरफ्तारी नहीं दिखाई गई है।
अब सवाल राज्य सरकार की कानून व्यवस्था पर भी होना जरूरी है। यदि गौहत्या पर प्रतिबंध है तो गौवध के आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई पुलिस क्यों नहीं करती। यदि पुलिस थोड़ा-बहुत सक्रिय होती भी है तो स्थानीय समाजवादी पार्टी के छुटभैया नेता भी आरोपी को पार्टी का कार्यकर्ता बताकर छुड़ा देते हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की यह बात बिल्कुल सही है कि प्रधानमंत्री को चाहिए कि गौमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दें किन्तु इससे पहले यदि गौवध पर प्रतिबंध है तो उस कानूनी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले को अपराधी तो माना जाए। किन्तु उत्तर प्रदेश में दुर्भाग्यवश निचले स्तर पर ऐसे अपराधी तत्वों को प्रोत्साहन मिलता है। इसीलिए गौहत्या के विरोध के नाम पर अति उत्साही लोगों में बर्बरता की प्रवृत्ति पैदा हो गई है। कानून का मजाक और कानून का उल्लंघन चाहे जिस तरफ से हो, रुकना चाहिए। अखलाक ने क्या किया, क्या नहीं किया इसकी पुष्टि करना जांच का विषय है किन्तु किसी उन्मादी भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है। इस घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह सबसे पहले पुलिस के प्रति लोगों की विश्वसनीयता बढ़ाए। पुलिस यदि निष्पक्षता से काम करती तो शायद अफवाह के बाद भी भीड़ अखलाक को पकड़ कर स्थानीय पुलिस को सौंप देती।
बहरहाल होमगार्ड और ग्रामीणों की शैतानी हरकत से एक इंसान की जान गई है जो यह गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर रही है कि पुलिस की कार्यशैली में सुधार कैसे किया जाए। पुलिस छोटी-छोटी बातों को नजरंदाज करती है क्योंकि उसके पास ऐसे काम हैं जो उसकी भूमिका को प्रभावित करते हैं। यदि पुलिस चाहे तो अखलाक के परिवार को न्याय मिल सकता है। जो लोग इस बर्बरपूर्ण हत्याकांड में शामिल हैं उनके खिलाफ निष्पक्षतापूर्वक कार्रवाई करे और यदि राज्य सरकार को लगे कि पुलिस इस मामले में उचित कार्रवाई करने में असमर्थ है तो उसे इस मामले को सीबीआई को सौंपने में किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए।
यह मामला अत्यंत संवेदनशील है इसलिए इस मामले पर राजनीतिक पार्टियों को चिरकुट राजनीति करने के लिए अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। आश्चर्य की बात है कि अखलाक के पुत्र सरताज ने जिलाधिकारी एनपी सिंह से मिलकर शिकायत की है कि उसके एकाएक इतने रिश्तेदार पता नहीं कहां से बनकर रोज उसके घर आ रहे हैं और सहानुभूतिपूर्ण बयान जारी कर रहे हैं। उसने लिखित में अनुरोध किया कि उसके शोक संतप्त परिवार को अकेले छोड़ दें, इसके बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता राजनीतिक संभावनाओं की तलाश में सरताज और उनके परिवार से मिलने उनके घर जाने की ठाने हुए थे। पहले तो जिला प्रशासन ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया। रोके जाने के बाद तिलमिलाए केजरीवाल ने आरोप लगाया कि केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा और सांसद असदुद्दीन ओवैसी को वहां क्यों जाने दिया गया। फिर बाद में जिला प्रशासन ने केजरीवाल को अखलाक के परिवार से मिलने की अनुमति दे दी। हो सकता है प्रशासन ने पहले राजनीतिक दलों के नेताओं को न रोक कर गलती की हो किन्तु जरूरी तो नहीं कि वह फिर से गलती दोहराए।

लब्बोलुआब यह है कि मुजफ्फरनगर से कोई सबक सीखने वाली राज्य सरकार गंभीरता से विचार करे कि अफवाहों के तत्काल बाद कड़ी कार्रवाई और अफवाहबाजों पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई कैसे करे ताकि फिर दादरी दोहराया जा सके।

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