Saturday, 24 October 2015

सीबीआई की साख और विश्वसनीयता?

यह पहली बार नहीं जब किसी अदालत ने साक्ष्य के अभाव में किसी को आरोपों से बरी किया हो, लेकिन अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटन के कथित घोटाले में शामिल करार दिए गए पूर्व दूरसंचार सचिव श्यामल घोष को दोषमुक्त करते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने जिस तरह सीबीआई को फटकार लगाई वह कई गंभीर सवाल जरूर खड़े करती है। अदालत ने आरोपियों को बरी करते हुए सीबीआई की चार्जशीट को झूठा करार दिया और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। अदालत ने घोष और टेलीकॉम कंपनियों को बरी करते हुए कहा कि इन आरोपियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं और इसके मद्देनजर इन्हें आरोपमुक्त किया जाना चाहिए। विशेष सीबीआई अदालत ने जांच एजेंसी को झूठी व घटिया चार्जशीट दाखिल करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। फिलहाल कहना कठिन है कि अदालत के आदेश का पालन कब तक और किस रूप में होगा, लेकिन यह अवश्य स्पष्ट हो रहा है कि संप्रग सरकार के समय में सीबीआई भ्रष्टाचार की जांच की बजाय मनमानी करने और यहां तक कि अदालत की आंखों में धूल झोंकने का भी काम कर रही थी। भारतीय राजनीति में विरोधी पार्टी या नेता को फंसाने या बदनाम करने के कैसे-कैसे षड्यंत्र रचे जाते हैं, किस तरह का दुप्रचार किया जाता है, सुप्रीम कोर्ट के हालिया कुछ फैसलों और टिप्पणियों से भी जाहिर होता है। खास बात यह है कि इन सभी मामलों में साजिश करने का आरोप कांग्रेस पार्टी पर लगता है। इनमें पहला मामला 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ा है जिस पर बृहस्पतिवार को फैसला देते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने न केवल सभी आरोपियों को बरी कर दिया बल्कि जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका पर बाकायदा नाराजगी जताते हुए जांच से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई को कहा। इसमें दिवंगत भाजपा के तत्कालीन मंत्री प्रमोद महाजन को भी बदनाम किया गया। दूसरा मामला गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट से जुड़ा है। खुद से जुड़े मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा करने की मांग को लेकर पेश हुए संजीव भट्ट की याचिका शीर्ष अदालत ने न सिर्प खारिज  ही की बल्कि उनकी नीयत और तौर-तरीके पर भी बहुत सख्त टिप्पणी की। अदालत ने यहां तक कहा कि संजीव भट्ट विपक्षी कांग्रेस, एनजीओ और मीडिया के कुछ लोगों से मिले हुए थे। तीसरा मामला चर्चित ताबूत घोटाले का रहा और यह एनडीए-एक सरकार से जुड़ा है। तब इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस को इस्तीफा तक देना पड़ा था। लेकिन अब सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा साफ किया गया है कि ताबूत खरीदने में कोई अनियमितता नहीं हुई। दुखद यह है कि जिंदगीभर सादगी और ईमानदारी के लिए विख्यात जॉर्ज फर्नांडीस इस शारीरिक हालत में भी नहीं हैं कि खुद पर लगाए गए इस दाग के धुलने पर कोई प्रतिक्रिया दे सकें। सीबीआई की साख और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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