Thursday 15 October 2015

कोई एक इंच बताएं जहां गंगा साफ है

गंगा की सफाई का संकल्प बार-बार दोहराए जाने के बावजूद स्थिति में कोई ठोस सधार नहीं हुआ और स्थिति तकरीबन जस की जस है। अदालतें भी कई बार गंगा को पदूषण से बचाने के लिए आदेश दे चुकी हैं और इसमें बरती जा रही कोताही पर केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगा चुकी हैं। गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने सख्त रवैया अपनाते हुए संबंधित मंत्रालयों और पाधिकरणों से पूछा है कि बीते 30 वर्षें में हजारें करोड़ पूंकने के बाद भी 2500 किमी लंबी गंगा का एक इंच भी क्या साफ है? गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है। केंद्र से इतना पैसा राज्यों को मिला है बावजूद इसके गंगा बदहाल है। उत्तर पदेश और उत्तराखंड को फटकार लगाते हुए ग्रीन पैनल ने कहा, क्यों उन्हें छोटे से छोटे काम के लिए केंद्र से भी पैसा चाहिए? राज्य की अपनी कोई जिम्मेदारी है या नहीं जबकि पानी-पर्यावरण जैसे विषय राज्य के हैं। गंगा कार्य योजना को शुरू हुए तीस साल हो गए हैं। इस दौरान करीब पांच हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। मगर हालत यह है कि हर साल गंगा में गंदगी और बढ़ी हुई दर्ज होती है। इसकी सफाई का काम केंद्र और राज्य सरकारों को मिल कर करना था। इसमें सत्तर फीसदी पैसा केंद्र और तीस फीसदी संबंधित राज्य सरकारों को लगाना था। मगर हालत यह है कि औद्योगिक इकाइयों और शहरी इलाकों से निकलने वाले जल-मल के शोधन के लिए आज तक न तो पर्याप्त संख्या में संयंत्र लगाए जा सके हैं और न ही औद्योगिक कचरे से निपटारे का मुकम्मल पबंध हो पाया है। औद्योगिक इकायों से निकलने वाला जहरीला पानी जगह-जगह गंगा में सीधे मिलकर गंगा को अपवित्र बना रहा है। बेशक कई बार हरित न्यायाधिकरण की फटकार पर औद्योगिक इकायों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का मंसूबा जरूर बनाया गया पर नतीजा वही सिफर का सिफर ही रहा। वजह साफ है कि न तो कोई ठोस योजना बन सकी है और न ही केंद्र और राज्यों के बीच इस पर जरूरी तालमेल हो सका। दुख से कहना पड़ता है कि पधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद गंगा को साफ करने की बात कह चुके हैं, भाजपा ने तो गंगा को पदूषण मुक्त बनाने का चुनावी मुद्दा भी बनाया था। वाराणसी से सांसद चुने गए नरेंद्र मोदी खुद इसमें काफी दिलचस्पी दिखाते रहे हैं। सत्ता में आने के बाद उन्होंने उमा भारती की उगुवाई में इसके लिए एक विभाग भी खड़ा किया। बड़े-बड़े दावे किए गए, मगर डेढ़ साल में एक भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया जो हरित पंचाट को संतुष्ट कर सके। गंगा भारत की लाइफ लाइन है और इसकी पवित्रता देश और देशवासियों के उज्ज्वल भविष्य से जुड़ी हुई है। गंगा की सफाई धार्मिक मुद्दा नहीं है इसमें सभी देशवासियों का हित जुड़ा हुआ है। सबको मिलकर गंगा को बचाना होगा।

-अनिल नरेंद्र

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