Thursday, 31 March 2016

इजराइल बंधकों के बदले कसाब को छुड़ाने की योजना थी

दाउद गिलानी उर्फ डेविड हेडली से 26/11 मुंबई हमले के मामले में जिरह के दौरान कई सनसनीखेज खुलासे सामने आ रहे हैं। मुंबई सेशन कोर्ट के विशेष न्यायाधीश जीए सानरपा की अदालत में जिरह के तीसरे दिन हेडली ने बताया कि मुंबई हमले के दौरान चाबाड़ हाउस में घुसे आतंकियों को इजराइली बंधकों के बदले जिंदा पकड़े गए अजमल कसाब को रिहा कराने का निर्देश कराची से मिला था। लश्कर--तैयबा के आतंकी डेविड हेडली ने शुकवार को 26/11 मामले में जिरह के दौरान यह खुलासा किया। उससे 26/11 आतंकी हमले के एक अन्य साजिशकर्ता अबू जुंदाल के वकील वहाद खान जिरह कर रहे हैं। अमेरिका से वीडियो कांपेंसिंग के जरिए सुनवाई में शामिल हेडली ने कहा कि आईएसआई से जुड़े रहे लश्कर कमांडर साजिद मीर ने उसे यह बात बताई थी। हेडली के मुताबिक मीर ने आतंकियों से कहा था कि इजराइली बंधकों के बदले अजमल कसाब को रिहा करने की शर्त रखी जाए। लेकिन कसाब को छोड़कर बाकी सारे आतंकी मारे गए। हेडली जन्म के बाद 17 वर्ष तक लाहौर में रहा, फिर अमेरिका आ गया। मुंबई हमले में गिरफ्तार हेडली का सबसे बड़ा खुलासा यह था कि लश्कर की साजिश को पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का पूरा वित्तीय, सैन्य और नैतिक समर्थन था। ताज, ओबराय, ट्राइडेंट लियो पोल्ड कैफे, नरीमन हाउस , सोएन टी स्टेशन की हेडली ने रेकी की बात भी स्वीकारी। उसका कहना है कि उसकी सलाह पर सिद्धि विनायक मंदिर, नौसेना ठिकाने को निशाना न बनाने का फैसला किया गया। हेडली ने यह भी बताया कि 26/11 हमलों के कुछ हफ्तों बाद तत्कालीन पाक पधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी उसके घर पर आए थे। 25 दिसम्बर 2008 को उसके पिता का निधन हो गया था। वह रेडियो पाकिस्तान के महानिदेशक पद से रिटायर हुए थे। उसके कुछ दिनों बाद तत्कालीन पाक पधानमंत्री की एम यूसुफ रजा गिलानी मेरे घर आए थे। हेडली ने बृहस्पतिवार को बताया कि लश्कर की ओर से बाला साहेब ठाकरे की हत्या की भी कोशिश की गई थी। लश्कर के लड़ाके को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन वह भाग निकला था। उसने कहा कि वह दो बार शिवसेना भवन गया था। हेडली ने कहा कि वह ठाकरे को अमेरिका बुलाने की योजना बना रहा था, लेकिन वहां उनकी हत्या का कोई प्लान नहीं था। उसने फिर दोहराया कि गुजरात में मारी गई इशरत जहां लश्कर--तैयबा की फिदायीन हमलावर थी। जकी उर रहमान लखवी ने इशरत के मारे जाने की जानकारी उसे दी थी। तहव्वुर हुसैन राणा लश्कर से उसके संबंधों के बारे में जानता था।

-अनिल नरेंद्रा

मनीष सिसोदिया ने दिया आम आदमी का बजट

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को दिल्ली का अब तक का सबसे बड़ा 46,600 करोड़ रुपए का बजट पेश किया। सिसोदिया दिल्ली सरकार में वित्तमंत्री भी हैं। इस बजट को अगर आम आदमी का बजट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि इस बजट में समाज के तकरीबन सभी वर्गों का ध्यान रखा गया है। सरकार ने खासतौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया है जिसका स्वागत होना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन में कुल योजना मद का 57 फीसदी खर्च करने का पावधान रखकर करीब दो घंटे के मैराथन बजट भाषण में सिसोदिया ने यह साफ किया कि आम आदमी पार्टी सरकार की नजर में संसाधन बढ़ाना और सुधार के पावधान भी विकास हैं। उन्होंने कहा कि जनता की भागीदारी, बिजनेस को आसान कर और इलेक्ट्रोनिक्स टूल्स के इस्तेमाल की बदौलत सरकार सरकारी खजाने की बर्बादी रोकेगी। सरकार ने शिक्षा पर जोर देकर यह साफ किया है कि वह निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने की दिशा में अग्रसर है। वह हर हाल में सरकारी स्कूलें का स्तर निजी स्कूलों के बराबर लाना चाहती है और इस दिशा में दिल्ली सरकार ने कुछ कदम उठाए भी हैं। मोहल्ला क्लीनिकों की संख्या बढ़ाकर सरकार का स्वास्थ्य के क्षेत्र में निचले व निम्न वर्ग को सस्ती चिकित्सा देने का पयास सराहनीय है। इसके अलावा अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की योजना बनाकर जनता की निजी अस्पतालों पर निर्भरता कम करना चाहती है। साथ ही सरकार का पयास है कि व्यवस्था ऐसी हो कि हर व्यक्ति को न केवल सही वक्त पर इलाज मुहैया हो सके पर वह सस्ता भी हो। पब्लिक ट्रांसपोर्ट दिल्ली के लिए अतिआवश्यक है। दो हजार नई बसों की खरीददारी का प्लान यह दर्शाता है कि सरकार दिल्ली की परिवहन व्यवस्था खासकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को और सुदृढ़ करना चाहती है। ऐसा करने से एक ओर जहां लोगों को आने-जाने में आसानी होगी वहीं सड़कों पर निजी वाहनों का बोझ कम होगा। साथ ही ई-रिक्शा पर सब्सिडी की राशि 15 से बढ़ाकर 30 हजार रुपए की घोषणा से पदूषण कम करने के लिए सरकार की चिंताओं का भी पता चलता है। महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चिंता है। इसको मजबूत करने के लिए मार्शल तैनात करने और बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी घोषणा की गई है। तमाम विधानसभा क्षेत्रों में मोहल्ला रक्षक दल बनाने की प्लानिंग से यह पता चलता है कि सरकार हर कीमत पर सभी नागरिकों की सुरक्षा के पति संवेदनशील है। दिल्ली सरकार ने पहले बिजली और फिर पानी पर राहत देने के बाद अब वैट में दिल्ली वालों को कई मोर्चों पर राहत दी है। यह राहत न सिर्प आम जनता के लिए बल्कि इससे दिल्ली के कारोबारी भी खुश होंगे। वैट की असमान पणाली की वजह से देश के दूसरे राज्यों में कारोबार शिफ्ट हो रहा था। वैट की दरों में कमी लाने से इसे रोका जा सकता है और दिल्ली का कारोबारी स्वरूप फिर सामने आएगा। वित्तमंत्री ने बताया कि दिल्ली के कारोबारियों के लिए जहां एक तरफ पकिया को आसान व आधुनिक बनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ आम जनता के हाथों में निगरानी की कमान दी जा रही है। वित्तमंत्री ने कई नई योजनाओं की भी घोषणा की। स्कूलों में 5300 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। गेस्ट टीचरों को स्थाई करने के लिए 9623 पद सृजित होंगे। कामकाजी महिलाओं के लिए 3 नए होस्टल शुरू होंगे। 1000 मोहल्ला क्लीनिक के लिए टेंडर पकिया शुरू। 100 नए क्लीनिक और पॉली क्लीनिक खोले जाएंगे। 2017 तक दिल्ली के हर घर को स्वच्छ पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। टेंडर माफियाओं का राज खत्म किया जाएगा। कुल मिलाकर मनीष सिसोदिया का यह बजट आम आदमी का बजट कहा जाएगा।

Wednesday, 30 March 2016

क्या विजय माल्या को भारत वापस लाया जा सकता है?

सरकारी बैंकों से भारी-भरकम कर्जा लेकर न चुकाने वाले उद्योगपति विजय माल्या के खिलाफ सरकार अपनी रणनीति बनाने में गंभीरता से जुट गई है। जहां प्रवर्तन निदेशालय ने माल्या को कर्ज देने वाले बैंकों के अधिकारियों से पूछताछ शुरू कर दी है वहीं वित्त मंत्रालय ने बैंकों के साथ मिलकर माल्या व इन जैसे अन्य डिफॉल्टरों के खिलाफ सख्ती करने की रणनीति पर विचार किया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भले ही दो अप्रैल को विजय माल्या से पूछताछ की तैयारी कर रहा हो, लेकिन उन्हें लेकर जांच एजेंसी का पिछला अनुभव काफी कड़वा रहा है। डेढ़ दशक पहले नोटिसों की अवहेलना को लेकर ईडी अब भी माल्या के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर संघर्ष कर रहा है। फेरा के तहत भेजे गए ईडी के चार नोटिसों को माल्या ने न तो तवज्जो दी थी और न ही पूछताछ के लिए हाजिर हुए। ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विजय माल्या ने फॉर्मूला वन विश्व चैंपियनशिप में किंगफिशर ब्रांड के विज्ञापन पर 60 करोड़ रुपए खर्च किए थे। ये चैंपियनशिप 1996, 1997 और 1998 में हुए थे। इसके लिए भारतीय एजेंसियों से जरूरी अनुमति भी नहीं ली गई थी। इसे तत्कालीन विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन माना गया था और ईडी ने उन्हें पूछताछ के लिए चार नोटिस भेजे थे। लेकिन माल्या ने इन्हें नजरंदाज किया। फेरा के तहत ईडी के नोटिस को नजरंदाज करना भी अपराध होता है। वैसे माल्या लंदन में जाकर बैठ गए हैं। माल्या को वापस भारत लाना खासा कठिन हो सकता है। ब्रिटेन और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि के बावजूद इस मामले में प्रत्यर्पण आसान नहीं लगता। वरिष्ठ वकील मजीद मेनन ने कहाöब्रिटिश अधिकारियों को आश्वस्त करना कठिन है कि उनकी जमीन पर मौजूद कोई विदेशी उस वित्तीय अपराध के लिए भगोड़ा माना जा सकता है, जो उसने अपने देश में किया है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार दोहरी आपराधिकता की धारा प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू करने में मददगार हो सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि अभियुक्त पर ऐसे अपराध तय हों, जो दोनों देशों में अपराध माने जाते हों। सीबीआई और माल्या के लोन डिफॉल्ट की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय जब तक किसी भारतीय अदालत से एक गैर जमानती वारंट हासिल नहीं करती मामला आगे नहीं बढ़ सकता और इसमें सालों लग सकते हैं। माल्या को वापस लाने में मनी लांड्रिंग का मामला भारत के लिए सर्वोत्तम दांव हो सकता है, क्योंकि दोनों देशों में अपराध है। हालांकि कोई गारंटी नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय ने बीते सालों ललित मोदी के खिलाफ एक गैर जमानती वारंट हासिल किया था। ललित के खिलाफ 2012 में मनी लांड्रिंग का मामला है। कुल मिलाकर माल्या को वापस लाना आसान नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

सियासी अनिश्चितता से गुजरता उत्तराखंड

पंद्रह साल, चार सरकारें और आठवें मुख्यमंत्री की विदाई। सियासी अस्थिरता को बयां करती इस स्थिति के बाद उत्तराखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा है तो इसके लिए एक स्टिंग ऑपरेशन, भाजपा और कांग्रेस सभी जिम्मेदार हैं। केंद्र की सिफारिश पर रविवार को राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दे दी। विधानसभा भी निलंबित कर दी गई है। प्रदेश में नौ कांग्रेसी विधायकों के बागी होने के बाद ये हालात बने हैं। हरीश रावत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार को 28 मार्च को बहुमत साबित करना था। गृह मंत्रालय सूत्रों के अनुसार हरीश रावत की समाचार चैनल प्लस के मुखिया उमेश कुमार द्वारा किए गए स्टिंग ने रावत का बेड़ागर्प कर दिया। स्टिंग में रावत विधायकों को खरीदते दिखे। जांच के लिए यह सीडी एफएसएल लैब चंडीगढ़ भेजी गई, जहां यह सही पाई गई। यह सही है कि हरीश रावत सरकार को बहुमत साबित करने के लिए दी गई समयसीमा से एक दिन पहले उत्तराखंड में विधानसभा को निलंबित कर राष्ट्रपति शासन लगाने का केंद्र का फैसला थोड़ा चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन इस फैसले और स्थिति के लिए राज्य कांग्रेस की अंदरुनी खींचतान, द्वंद्व, भितरघात और अवसरवाद कोई कम जिम्मेदार नहीं है। यह पूरा घटनाक्रम सत्ता के लिए किसी भी हद तक चले जाने का एक और दुखद उदाहरण है। आज कांग्रेस भले ही राष्ट्रपति शासन लगाने को लोकतंत्र की हत्या बताए, पर करीब चार साल पहले विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाकर उसी ने वस्तुत इसकी पटकथा लिखी थी। सिर्प यही नहीं कि लाखों लोगों और आंदोलनकारियों के संघर्ष से बने उत्तराखंड में सत्ता हासिल करने के लिए तब बोलियां लगने की बात की जाने लगी थी, बल्कि उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार को जल्दी ही परिवारवाद, गुटबाजी और बाहरी बनाम पहाड़ी की आंतरिक लड़ाई मे भी तब्दील होते देखा गया। उत्तराखंड में राजनीतिक संकट गहरा गया है। राज्य में राष्ट्रपति शासन का ऐलान कर दिया गया है, जिससे भाजपा और कांग्रेस के बागी खुश हैं। कांग्रेस के नौ विधायकों की सदस्यता रद्द करने को कांग्रेस सही कदम करार दे रही है, लेकिन दोनों ही पक्ष अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक उठापटक के बीच हर कोई संविधान की दुहाई दे रहा है। जहां भाजपा उत्तराखंड में कांग्रेस पर संविधान की हत्या का आरोप लगा रही है, वहीं कांग्रेस भाजपा और केंद्र सरकार पर संविधान का मर्डर करने का आरोप लगा रही है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप राष्ट्रपति शासन को जहां संवैधानिक कदम बता रहे हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी इसे संविधान की धज्जियां उड़ाना करार दे रहे हैं। सुभाष कश्यप ने कहा कि धारा 356 के तहत अगर राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाएं कि राज्य में शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा है तो वह राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं और उत्तराखंड में यही हुआ है। यह पूरी तरह वैधानिक है। उन्होंने स्पीकर पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर 18 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा में विधायकों ने मत विभाजन की मांग की थी तो स्पीकर को विभाजन करना ही चाहिए। दूसरी ओर केटीएस तुलसी का कहना है कि राष्ट्रपति शासन लगाने का कदम केंद्र का तानाशाही भरा रवैया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के मुताबिक अगर राज्यपाल ने बहुमत साबित करने की समयसीमा तय कर दी है तो इंतजार किया जाना चाहिए। सोमवार को फ्लोर ऑफ द हाउस में जो भी होता, उसके बाद ही कोई कदम उठाना संवैधानिक होता। लेकिन फ्लोर टेस्ट के बिना राष्ट्रपति शासन थोपना गलत है। अब आगे क्याöराष्ट्रपति शासन लग गया है लेकिन विधानसभा भंग नहीं की गई। अगर किसी वक्त राज्यपाल को यह लगता है कि किसी पार्टी के पास बहुमत है और वहां सरकार बन सकती है तो वह नई सरकार बनाने के लिए उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि इसकी संभावना नहीं रह गई तो फिर विधानसभा को भंग कर नए चुनाव का ऐलान कर सकते हैं। कुल मिलाकर हरीश रावत की अक्षम सरकार का जोड़तोड़ से सत्ता में बना रहना जितना त्रासद होता, इस मोड़ पर भाजपा का वहां सरकार बनाना या इस दिशा में सोचना भी उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

Tuesday, 29 March 2016

Brussels, now the European capital of Islamic terrorists

The blasts in the Belgian capital Brussels have occurred four days after the arrest of Paris blast accused Salah Abde Salam. One day after the most dreaded attack on Paris in November 2015 by the Islamic State (IS) the terrorist outfit had claimed the responsibility of this attack and boasted that similar attacks will be made in France and its supporting nations. Belgium to a great extent helped the French investigating agencies to reach the bottom of this attack. The Belgian security agencies should have been alert after the arrest of Salah Abde Salam but the they not only failed to neutralize the network of terrorists but could not even pre empt the terrorist attack on Brussels either. According to  experts it’s quite possible that the attack before the arrest of Salah Abde Salam was well planned and after the preparedness of many weeks. This also indicates the existence of comprehensive and dreadful terrorist network in Belgium. According to a Belgian think tank Egmont Belgium has become the shelter of foreigner fighters. Belgium is the only nation from where the maximum fighters go to Syria and join the Islamic State. Brussels is the biggest metropolitan city of Belgium. 62 per cent people here are outsiders. It has the headquarters of North Atlantic Treaty Organization (NATO) and the European Commission. As per Bruckinghan Institute of Washington recently 650 fighters alone  went Syria to join the IS. More than half of the Muslim population is living below the poverty line in the country. The Belgian border is open towards Germany, France, Netherlands and Luxemburg due to the Shenzhen treaty. This is comfortable for the terrorists. They enter Belgium from Syria and thereafter plan to attack on European cities. The terrorist attack on Paris in November last was also a part of this plan. The security system of this nation is weak. Normally the citizens here don’t like more interrogation, policing system. Due to the rising population of Muslim migrants, influence of fundamentalists and youth inspired with the ideology of IS, the Belgian capital Brussels has now turned into the European capital of terrorism. As per the recent report of the European Agency Europol the maximum terrorists from the Belgium itself have gone to Syria to join the IS. Not so many people have joined the IS from any other European nation. The most dreaded fact is that 130 youths have returned Belgium from Syria. Many of them have also been arrested. But the most dangerous fact is nobody knows how many terrorists in fact went to Syria and how many returned? Brussels attack should be treated as most serious as such that it indicates that the IS network has not only expanded in dreadful manner but also they plan the attacks at such a time when the security agencies are said to be alert. Bollywood Singer Abhijit’s wife Sumati Bhattacharya and his son also include the people who closely felt the bomb blasts in the Belgian capital Brussels. Sumati told her husband over phone that their plane landed at the airport just when the blasts occurred. Abhijit tweeted that he had talks with his wife and son after the Brussels blasts, both are safe and in a safe zone.

-        Anil Narendra

 

Brussels, now the European capital of Islamic terrorists


The blasts in the Belgian capital Brussels have occurred four days after the arrest of Paris blast accused Salah Abde Salam. One day after the most dreaded attack on Paris in November 2015 by the Islamic State (IS) the terrorist outfit had claimed the responsibility of this attack and boasted that similar attacks will be made in France and its supporting nations. Belgium to a great extent helped the French investigating agencies to reach the bottom of this attack. The Belgian security agencies should have been alert after the arrest of Salah Abde Salam but the they not only failed to neutralize the network of terrorists but could not even pre empt the terrorist attack on Brussels either. According to  experts it’s quite possible that the attack before the arrest of Salah Abde Salam was well planned and after the preparedness of many weeks. This also indicates the existence of comprehensive and dreadful terrorist network in Belgium. According to a Belgian think tank Egmont Belgium has become the shelter of foreigner fighters. Belgium is the only nation from where the maximum fighters go to Syria and join the Islamic State. Brussels is the biggest metropolitan city of Belgium. 62 per cent people here are outsiders. It has the headquarters of North Atlantic Treaty Organization (NATO) and the European Commission. As per Bruckinghan Institute of Washington recently 650 fightersalone  went Syria to join the IS. More than half of the Muslim population is living below the poverty line in the country. The Belgian border is open towards Germany, France, Netherlands and Luxemburg due to the Shenzhen treaty. This is comfortable for the terrorists. Theyenter Belgium from Syria and thereafter plan to attack on European cities. The terrorist attack on Paris in November last was also a part of this plan. The security system of this nation is weak. Normally the citizens here don’t like more interrogation, policing system. Due to the rising population of Muslim migrants, influence of fundamentalists and youth inspired with the ideology of IS, the Belgian capital Brussels has now turned into the European capital of terrorism. As per the recent report of the European Agency Europol the maximum terrorists from the Belgium itself have gone to Syria to join the IS. Not so many people have joined the IS from any other European nation. The most dreaded fact is that 130 youths have returned Belgium from Syria. Many of them have also been arrested. But the most dangerous fact is nobody knows how many terrorists in fact went to Syria and how many returned?Brussels attack should be treated as most serious as such that it indicates that the IS network has not only expanded in dreadful manner but also they plan the attacks at such a time when the security agencies are said to be alert. Bollywood Singer Abhijit’s wife Sumati Bhattacharya and his son also include the people who closely felt the bomb blasts in the Belgian capital Brussels.Sumati told her husband over phone that their plane landed at the airport just when the blasts occurred. Abhijit tweeted that he had talks with his wife and son after the Brussels blasts, both are safe and in a safe zone.
-          Anil Narendra

अंतत जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार बन गई

अंतत लंबे इंतजार और असमंजस के बाद जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया है। महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनेंगी। पिछले सात जनवरी को उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद  के निधन के बाद महबूबा ने जो अबूझ रवैया अख्तियार किया था, उससे जम्मू-कश्मीर ऐसे राजनीतिक गतिरोध में फंस गया था कि लगता था कि सूबे में सरकार बनेगी ही नहीं। जनवरी में मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद से मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली हो गई। यह रिक्तता पीडीपी को भरनी थी और पार्टी में इसके लिए सबसे प्रबल दावेदार महबूबा मुफ्ती ही थीं, जोकि अब उनके सर्वसम्मत चुनाव से भी जाहिर है। लेकिन पहले तो वे यह कहकर टालती रहीं कि वह अपने पिता की मौत से गम में हैं और ऐसे में सरकार के गठन की पहल नहीं करना चाहतीं। फिर उन्होंने यह जताना भी शुरू कर दिया कि सरकार बने इसकी उन्हें गरज नहीं है, भाजपा को ज्यादा है। मगर धीरे-धीरे यह साफ होता गया कि उनकी हिचकिचाहट के पीछे उन्हें यह लग रहा था कि भाजपा से गठबंधन के कारण घाटी में पीडीपी का जनाधार कम न हो जाए। ढाई महीने की देरी ने पीडीपी-भाजपा गठबंधन के स्थायित्व को लेकर उभरी अटकलों को और हवा दी। इस देरी ने कुल मिलाकर पीडीपी और भाजपा के बीच भरोसे की कमी को भी जाहिर किया। यह तो समझ आया था कि एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण पीडीपी और भाजपा ने मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए सहमत होने में एक माह से अधिक समय लगाया था लेकिन महबूबा के नेतृत्व में सरकार गठन में ढाई माह की देरी का औचित्य समझ से परे है। कह सकते हैं कि अंतत महबूबा को सुबुद्धि आई और उन्होंने अपना मन बदला। हालांकि विरोधियों का यह प्रश्न उठता रहेगा कि आखिर सरकार जब बनानी ही थी तो फिर इन ढाई महीनों का गतिरोध क्यों? यह प्रश्न वाजिब ही है। इस बारे में न तो पीडीपी ने कोई बयान दिया और न ही भाजपा ने बताया कि महबूबा क्यों सरकार बनाने से हिचक रही हैं। हां महबूबा ने यह अवश्य कहा था कि कुछ मुद्दे हैं, जिन पर वे भाजपा और केंद्र से स्पष्ट वचनबद्धता चाहती हैं। ऐसा लगता है कि महबूबा के रवैये के कारण उनकी पार्टी में ही असंतोष पैदा हो रहा था। इसमें सबसे ज्यादा दुर्गति भाजपा की हुई है। ऐसा लगा कि केवल भाजपा सरकार बनाने को आतुर है और महबूबा उसे भाव नहीं दे रही हैं। अंतत भाजपा ने साफ कर दिया कि मुफ्ती साहब के रहते जो एजेंडा फॉर एलायंस बना था, वह उससे कम या उससे ज्यादा किसी मुद्दे पर तैयार नहीं है। संभव है कि इसका मनोवैज्ञानिक असर पीडीपी के अंदर हुआ हो। महबूबा और उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच उम्र और अनुभव के अंतर को कोई इंकार नहीं  कर सकता। आमतौर पर मुफ्ती साहब थोड़े नरम थे, समझौतावादी थे जबकि महबूबा सख्त मानी जाती हैं। नए गठबंधन को सफल बनाने के लिए दोनों दलों को तालमेल बिठाना होगा। पीडीपी और महबूबा का एजेंडा अलगाववादियों और भारत विरोधियों की सोच का बहुत हद तक प्रतिनिधित्व करता है। आतंकवादियों और हुर्रियत के प्रति पीडीपी की सोच में और भाजपा की सोच में फर्प है। फिर पीडीपी का सारा ध्यान घाटी में रहता है जबकि भाजपा को जम्मू व लद्दाख क्षेत्र के विकास पर भी ध्यान देना होगा। मुफ्ती की सरकार में जम्मू क्षेत्र की अनदेखी हुई। उम्मीद की जाती है कि नई सरकार सूबे के सभी हिस्सों पर ध्यान देगी। वैसे जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में एक चुनी हुई सरकार जरूरी है। इसके न बनने से जो अस्थिरता पैदा हो रही थी उससे सभी को बोलने का मौका मिल रहा था।

-अनिल नरेन्द्र

डाक्टर पंकज नारंग की पीट- पीटकर हत्या का जिम्मेदार कौन?

प्रेम और सौहार्द के रंगों में लहू का रंग घुल जाने से इस साल की होली कुछ ज्यादा ही बदरंग हो गई। उत्तर प्रदेश में जहां होली ने इस साल 47 लोगों की जान ले ली वहीं दिल्ली के एक डाक्टर को हुड़दंगियों ने नृशंसता से पीटकर मौत के घाट उतार दिया। विकासपुरी में गली में धीमे मोटर साइकिल चलाने की बात कहने पर अपराधियों ने एक डाक्टर को पीट-पीटकर मार डाला। इस घटना के बारे में कुछ अलग-अलग बयान मिलते हैं। लेकिन जो मुख्य बात उभरकर सामने आती है, उसके मुताबिक सड़क पर एक मामूली कहासुनी ने इतना उग्र रूप ले लिया कि एक पक्ष ने लाठियों और लोहे की छड़ों से लैस छोटी-मोटी भीड़ जुटा ली, जिसने पीट-पीटकर दंत चिकित्सक डाक्टर पंकज नारंग की हत्या कर दी। यह एक ऐसा मामला था, जो शांति से सुलझाया जा सकता था, लेकिन इसने जिस तरह का उग्र रूप धारण कर लिया, वैसी घटनाएं अब अपवाद स्वरूप नहीं, बल्कि काफी आम हो गई हैं। छोटी होली के दिन दिल्ली में मारे गए डाक्टर नारंग का कसूर बस इतना था कि वे अपने बेटे के साथ गली में क्रिकेट खेल रहे थे। इस दौरान गेंद पास से गुजर रहे बाइक सवार को जा लगी, जिस पर दोनों में विवाद हुआ। इसके कुछ ही देर बाद बाइक वाले ने अपने दर्जनभर साथियों के साथ डाक्टर के घर धावा बोल दिया और उसे लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मार डाला। डेंटिस्ट पंकज नारंग की निर्मम हत्या के बाद सोशल मीडिया में अफवाहों ने तूल पकड़ लिया। वारदात को फेसबुक, ट्विटर और अन्य साइट्स पर धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई तो पुलिस के साथ-साथ खुफिया विभाग के कान भी खड़े हो गए। नतीजतन शनिवार को खुद पुलिस अफसरों को आगे आना पड़ा और सोशल साइट्स पर चल रही अफवाहों पर गौर न करने की सलाह देनी पड़ी। पुलिस अफसरों ने बताया कि इस वारदात में जो नौ आरोपी पकड़े गए हैं, उनमें से पांच हिन्दू हैं। मुसलमान आरोपी उत्तर प्रदेश का है न कि बांग्लादेश का जैसी मीडिया में अफवाह है। वारदात में शामिल नौ आरोपियों को पकड़ा जा चुका है जिनमें चार नाबालिग और एक महिला शामिल हैं। गुस्से या रंजिश में जान ले लेने की यह घटना पहली बार नहीं हुई है। रोजाना कहीं न कहीं इस तरह की घटना होती है। कभी सिगरेट नहीं देने पर तो कभी परांठा नहीं देने जैसी छोटी बात पर भी हत्या कर दी जाती है। अब सवाल यह है कि लोगों में इतना गुस्सा क्यों है? जो वे कानून हाथ में लेने से भी बाज नहीं आते। इसका सीधा जवाब है कि इस भीड़भाड़ वाले शहर में लोग बेहद तनाव में रहते हैं। ऐसे में छोटी-छोटी बातों पर बेहद गुस्से में आकर ऐसी वारदात को अंजाम दे देते हैं।

Sunday, 27 March 2016

गड्ढे में धंसती दिल्ली की परिवहन व्यवस्था

  1. राजधानी में जाम नासूर बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में दिल्ली की परिवहन व्यवस्था गड्ढे में चली गई है। वाहन रेंगते नजर आते हैं। प्रगति मैदान के सामने भैरों रोड पर रविवार शाम सड़क ही धंस गई। हालांकि सोमवार को उसकी अस्थायी मरम्मत तो हुई पर चन्द मिनटों में सड़क फिर धंस गई। इस कारण रिंग रोड से मथुरा रोड के बीच वाहनों का परिचालन बंद हो गया। हमने देखा है कि दिल्ली में कहीं भी जाम लगे तो पूरी राजधानी में वाहनों की लंबी कतारें लग जाती हैं। जाम का असर पूर्वी दिल्ली से लेकर नोएडा से आने वाली सड़कों पर भी पड़ा। प्रारंभिक जांच में सड़क धंसने का कारण भैरों मार्ग पर दिल्ली जल बोर्ड की पाइप लाइन रिसने की वजह सामने आई है। दिल्ली के जल मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा कि भैरों रोड पर सड़क धंसने की घटना दोबारा न हो, इसके लिए  सरकार गंभीर है। पूरे इलाके का भौगोलिक सर्वेक्षण कराने का भी फैसला किया गया है। इसके जरिये ये जानने की कोशिश की जाएगी कि आखिर भैरों रोड पर इस तरह की घटना क्यों होती है? बताया तो यह भी जा रहा है कि भैरों मार्ग के नीचे पानी व सीवर की लाइनें हैं। इन लाइनों में रिसाव होने से लगातार पानी जा रहा था और गुरुवार को अचानक मार्ग धंस गया। यह आईटीओ की तरफ जाने वाला प्रमुख मार्ग है और इस पर अधिक ट्रैफिक रहता है। जब तक यह गड्ढा ठीक से भरा नहीं जाता तब तक दिल्लीवासियों को जाम से निजात मिलने वाली नहीं है। मामले के एक एक्सपर्ट पीके सरकार बताते हैं कि पानी के रिसाव से निपटने के लिए न तो दिल्ली जल बोर्ड और न ही दिल्ली सरकार के पास कोई ठोस स्थायी हल है। सड़कें कच्ची हैं। इसके लिए अलग लेयर होनी चाहिए और मास्टर प्लान पर काम होना चाहिए। बता दें कि दो साल पहले भी यह मार्ग धंसा था। यातायात जाम से नौकरी पेशा लोगों को खासी दिक्कतें उठानी पड़ी हैं। विकास मार्ग पर चुंगी से लेकर आईटीओ वाली लाल बत्ती तक वाहन टस से मस नहीं हो पा रहे हैं। अधिकांश दफ्तरों में कर्मचारी देरी से पहुंच रहे हैं। बसों पर सवार कई कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो विकास मार्ग और गीता कॉलोनी फ्लाइओवर से पैदल आने को मजबूर हैं। जिन लोगों के दिल्ली की अदालतों में केस लगे हैं। उनको समय पर पहुंचने में भारी दिक्कत हो रही है। पता नहीं कि दिल्ली को कभी भी इन जामों से निजात मिलेगी भी या नहीं? जब बिना प्लानिंग के सड़कों को खोदा जाएगा तो यही नतीजा होगा। पूरी व्यवस्था को ओवरहाल करना होगा।
  2. -अनिल नरेन्द्र
  3.  

चमत्कारी जीत के बाद अब आस्ट्रेलिया टीम इंडिया के निशाने पर

टीम इंडिया ने बांग्लादेश के जबड़े से जीत छीनकर तमाम क्रिकेट प्रेमियों को रंगों के पर्व होली का जबरदस्त तोहफा दिया। इसे कहते हैं हारी हुई बाजी को जीत में बदलना। वाकई टीम इंडिया ने बुधवार को टी-20 विश्व कप में दबाव के क्षणों से गुजरते हुए बांग्लादेश को महज एक रन से हराकर अंतिम गेंद पर सुपर रोमांचक जीत हासिल की। यह इस विश्व कप का अब तक का सबसे रोमांचक फिनिश रहा। रंगों के त्यौहार पर इस जीत ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की खुशियों को और रंगीला कर दिया। भारतीय टीम ने पहले बल्लेबाज करके सात विकेट पर महज 147 रनों का स्कोर बनाया लेकिन बांग्लादेश की टीम नौ विकेट पर 145 रन ही बना सकी। जब मैच का आखिरी ओवर शुरू हुआ तो बांग्लादेश को जीत के लिए 11 रन बनाने थे और उसके चार विकेट बाकी थे। पहले तीन गेंदों में नौ रन बने तो पूरे स्टेडियम में खामोशी छा गई। लोगों को 2007 का वन डे वर्ल्ड कप याद आ गया जब बांग्लादेश ने भारत को हराकर टूर्नामेंट से बाहर कर दिया था। इस बार भी यह खतरा आ खड़ा हुआ था। चारों तरफ निराशा छा गई। लगा भारत मैच हार गया है। लेकिन तभी अनिश्चितता के इस खेल ने बाजी पलटी। लगातार दो चौके खा चुके हार्दिक पांड्या ने अपनी चौथी और पांचवीं गेंद पर विकेट झटक कर मैच का रंग बदल दिया। अब बांग्लादेश को एक गेंद पर दो रन बनाने थे। पांड्या ने गेंद शार्ट पिच फेंकी। ऑफ स्टम्प के बाहर। शुवागाता होम इसे छू भी नहीं सके। गेंद सीधी कप्तान धोनी के दस्ताने में गई। धोनी को मालूम था कि बल्लेबाज रन लेने के लिए भागेंगे इसलिए उन्होंने अपने दाहिने हाथ का विकेट कीपिंग गल्फ उतार लिया और इधर बल्लेबाज बॉल मिस करके भागे उधर धोनी ने भागकर गिल्लियां बिखेर दीं और भारत एक रन से जीत गया। कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने जीत के बाद बताया कि उन्होंने हार्दिक पांड्या से कहा था कि अंतिम ओवर में योर्पर मत फेंकना क्योंकि वह फुलटास में बदल सकती है। वाइड से भी बचना था। हमने जैसी योजना बनाई फील्डिंग भी वैसे ही सजाई और यही चीज क्लिक कर गई। लेकिन योजना तभी अच्छी लगती है जब उसे सही तरीके से लागू किया जाए और बुधवार को सबने मिलकर यही किया। धोनी ने मैच के दौरान दबावपूर्ण क्षणों में आशीष नेहरा के साथ खासा विचार-विमर्श किया। धोनी ने कहा कि मैं सारी बातें तो नहीं बता सकता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि अंतिम ओवर से पहले हमने विचार-विमर्श किया। मनन इस बात पर हुआ कि किस लंबाई और दिशा में गेंद फेंकी जाए। मैं एक बात जानता था कि 20वां ओवर शुरू होने के बाद आप कितना ही समय लो आप पर जुर्माना नहीं होगा। धोनी ने बांग्लादेश के महमूदुल्लाह के प्रति हमदर्दी जताते हुए कहा कि कई बार ऐसा होता है कि आप बड़ा शॉट खेलकर मैच खत्म करना चाहते हो। जब आपके पास विकेट होते हैं तो आप सोचते हो कि दूसरे तो हैं ही, लेकिन ऐसा होता है। अगर वह लिफ्टिड शॉट की जगह सिंगल भी ले लेते तो मैच टाई हो जाता और बांग्लादेश वहां से हार तो नहीं सकता था पर उन्होंने हवाई शॉट खेला और उनके बाद आए बल्लेबाज ने भी यही गलती की। बाकी तो अब इतिहास है। अब रविवार को सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए धोनी के धुरंधरों को आस्ट्रेलिया को हराना जरूरी है। बांग्लादेश पर मिली जीत के बाद टीम इंडिया अंक तालिका में भले ही दूसरे पायदान पर पहुंच गई है लेकिन उसका नेट रन रेट अब भी आस्ट्रेलिया से कम है। पाकिस्तान का अगला मुकाबला 25 मार्च को हुआ जिसमें आस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को धो दिया। अब भारत को 27 मार्च को मोहाली में आस्ट्रेलिया को हर हाल में हराना होगा। इसके लिए माही एंड कंपनी को पूरी ताकत झोंकनी होगी। बांग्लादेश से जीत के बाद धोनी एंड गैंग का मनोबल तो ऊंचा होगा ही। बेस्ट ऑफ लक टीम इंडिया।

Saturday, 26 March 2016

Will BJP dream of a Congress Free India come true?

The game of bringing down and saving the government in Uttarakhand is not only an incidence limited to the politics of just a state. In fact the power clash here is connected to the existence of the Congress Party, nation's oldest and ruling party for the maximum time. If Harish Rawat in Uttarakhand fails to prove his majority in the House, one more name will be added to the list of the states slipping  from the grip of the Congress and BJP will be much inspired to work on the agenda of a Congress Free India. When BJP at the time of Lok Sabha Elections raised a slogan of Congress Free India, Congress had tauntingly  replied  that even the British regime couldn't finish us then what can BJP do which has an identity in a few states? But if we think with a cool mind and see that the Congress is losing states one by one and the party is on the verge of being wiped out. If we glance at the political  scenario of the country, Delhi and 29 states having full statehood the Congress regime has been confined up to only seven states: Karnataka, Himachal Pradesh, Assam, Uttarakhand, Manipur, Meghalaya and Mizoram. It is technically a partner in Bihar but its political future there rests upon the crutches of the JDU-RJD. Congress had to lose power in all the states which went to poll after the General Elections. So far it didn't succeed even in a single one. Although the Congress had lost the central regime in 1977, 89, 96, 98 and 1999 yet it has ruled over the important states like Karnataka, Maharashtra, Rajasthan, Madhya Pradesh, Punjab, Kerala, and Delhi. It is the first time since the ouster from the Central regime in 2014 when Congress has disappeared from the important states also. Undoubtedly it is a matter of satisfaction for the BJP. BJP feels that the agenda of Congress Free India is working. Congress's allegation may have some truth that the Central Government wants to form the government with its supports in the states ruled by it by destabilizing the governments there, but the Congress would have also to reply to this question that why it's unable to handle its own party which gives BJP a chance to infiltrate within it? It's the first priority of the Congress to save the government of Uttarakhand so that it doesn't lose one more state. The way ahead is also not easy for the Congress. Assam is going to polls next month where the Congress is ruling for the last 15 years. As per the assessment so far it is said that coming back to power will be a challenge for the Congress and if now Uttarakhand moves from the grip of the Congress, then the power bank of the Congress will be liquidated up to Karnataka only which will go to polls in 2018. It has lost Arunachal Pradesh last month. Manipur too has not good reports. Elections to the 68 member Manipur Assembly are proposed in the next month. Boost for the morale of the dissidents in Manipur is natural due to the revolt in Arunachal and Uttarakhand. Crisis may rise at any time. It's the most critical stage in the history for the Congress which is losing the states one by one
Anil Narendra

साकार होता कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी का सपना

उत्तराखंड में जारी सरकार गिराने और बचाने का खेल सिर्फ एक राज्य की सियासत तक सीमित रहने वाला घटनाकम नहीं है। दरअसल यहां का सत्ता संघर्ष देश की सबसे पुरानी और सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व में जुड़ गया है। उत्तराखंड में अगर हरीश रावत अपना बहुमत सदन में साबित करने में नाकाम रहते हैं तो कांग्रेस के हाथ से निकलते राज्यों की लिस्ट में एक और नाम जुड़ जाएगा और कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे पर काम करने के लिए बीजेपी को ज्यादा हौसला मिलेगा। लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था तो कांग्रेस की तरफ से तंज कसा गया था कि हमें ब्रितानी हुकूमत भी खत्म नहीं कर पाई तो बीजेपी की क्या बिसात जो केवल कुछ राज्यों में ही पहचान रखती है? पर अब ठंडे दिमाग से सोचें और देखें तो कांग्रेस के हाथ से एक-एक कर राज्य निकलते जा रहे हैं और पार्टी सिमटती जा रही है। दिल्ली और पूर्ण राज्य का दर्जा पाप्त 29 राज्यों की राजनीतिक तस्वीर को देखा जाए तो कांग्रेस की हुकूमत केवल सात राज्यों कर्नाटक, हिमाचल पदेश, असम, उत्तराखंड, मणिपुर, मेघालय और मिजोरम तक सिमट कर रह गई है। बिहार में वह तकनीकी रूप से सत्ता में भागीदार तो है लेकिन वहां उसका राजनीतिक भविष्य जदयू-राजद की बैसाखी पर टिका है। आम चुनाव के बाद जितने भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी। अभी तक एक भी राज्य में उसे कामयाबी नहीं मिली। कांग्रेस भले ही 1977, 89, 96,98 और 1999 में केंद्रीय सत्ता से बाहर रही हो लेकिन कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य पदेश, पंजाब, केरल, दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में उसका शासन रहा है। 2014 में केंद्रीय सत्ता से बेदखली के बाद यह कांग्रेस के लिए पहला मौका है जब वह महत्वपूर्ण राज्यों से भी गायब हो गई। बेशक बीजेपी के लिए यह सुकून भरी बात है। बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत का एजेंडा पूरा होता दिख रहा है। कांग्रेस के इस आरोप में दम हो सकता है कि केंद्र सरकार उसके द्वारा शासित राज्यों में अस्थिरता पैदा कर वहां अपने समर्थन वाली सरकार बनाना चाहती है, लेकिन इस सवाल का जवाब भी कांग्रेस को देना होगा कि वह अपने घर के कील कांटे दुरुस्त क्यों नहीं कर पा रही जिसकी वजह से बीजेपी को घुसपैठ का मौका मिल रहा है? कांग्रेस के लिए पहली जरूरत है उत्तराखंड की सरकार बचाना ताकि उसके हाथ से एक और राज्य निकल जाए। कांग्रेस के लिए आगे का रास्ता भी आसान नहीं है। असम में अगले महीने चुनाव है जहां पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस शासन है। अभी तक का तो आंकलन है,कहा जा रहा है कि सत्ता में लौटना कांग्रेस के लिए चुनौती होगा अब अगर उत्तराखंड भी कांग्रेस के हाथ से निकलता है तो कांग्रेस का पावर बैंक सिर्फ कर्नाटक तक ही सीमित रह जाएगा, जहां 2018 में चुनाव है। पिछले महीने वह अरुणाचल गंवा चुकी है। मणिपुर के हालात भी अच्छे नहीं बताए जाते। 68 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा के चुनाव अगले महीने पस्तावित हैं। अरुणाचल और उत्तराखंड में बगावत से मणिपुर में असंतुष्टों का हौसला बढ़ना स्वाभाविक है। कभी भी संकट खड़ा हो सकता है। एक-एक कर राज्यों की सत्ता से बाहर हो रही कांग्रेस के लिए अस्तित्व बचाने का घोर संकट है।

-अनिल नरेन्द्र