Saturday, 19 March 2016

इशरत जहां मामले में गुम फाइलों की जांच

इशरत जहां मुठभेड़ मामले में पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हलफनामा बदलने के पीछे असली कारणों की पड़ताल और मामले से जुड़ी फाइलें गुम होना एक बहुत गंभीर मामला है और इसकी जांच होना आवश्यक भी है। यह जांच की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव बीके प्रसाद को सौंपी गई है। पिछले हफ्ते गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में इस मामले की जांच का ऐलान किया था। बीके प्रसाद इशरत जहां से जुड़े दस्तावेज गुम होने के लिए जिम्मेदार अधिकारी की पहचान करेंगे। इन्हीं गुम दस्तावेजों में हलफनामा बदले जाने के पीछे का सच छिपा हुआ है। इन दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को ढूंढना जरूरी है। आशंका है कि इन दस्तावेजों को जानबूझ कर, सोची-समझी रणनीति के तहत इसलिए गायब किया गया ताकि देश के सामने सच न आ सके। इन दस्तावेजों का गुम होना इस संदेह को और घना करने वाला है कि हलफनामा संकीर्ण राजनीतिक कारणों से बदला गया। किसी मामले में हलफनामा बदला जाना कोई नई अनोखी बात नहीं, लेकिन जब कोई हलफनामा दो माह के अंदर बदल जाए और वह पहले के बिल्कुल उलट हो तो फिर उसे सामान्य नहीं कहा जा सकता, दूसरे हलफनामे में तथ्य कमजोर किए गए। इशरत समेत चार लोग 15 जून 2004 को अहमदाबाद पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। राजनाथ Eिसह के मुताबिक इस मामले में तत्कालीन केंद्र सरकार ने पिछले हलफनामे में इशरत जहां को आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा की सदस्य बताया था, लेकिन दूसरे हलफनामे में इस तथ्य को कमजोर करने की कोशिश की गई। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने की साजिश थी। पहले हलफनामे में उसे  लश्कर का आतंकी बताया गया, लेकिन दूसरे में न केवल इससे इंकार ही किया गया, बल्कि उससे संबंधित तमाम जानकारी भी हटा ली गई। हलफनामा बदले जाने संबंधी दस्तावेज गायब होना इसलिए कहीं अधिक गंभीर है, क्योंकि इशरत मुठभेड़ मामला अभी अदालत के समक्ष है। इशरत जहां मुठभेड़ मामले में हलफनामा बदलने को लेकर तत्कालीन गृह सचिव का यह कहना कि एक बड़ी साजिश की ओर संकेत करता है कि हलफनामे में बदलाव की प्रक्रिया से उन्हें भी दूर रखा गया और दूसरा हलफनामा खुद पी. चिदम्बरम ने लिखवाया था। बेशक पी. चिदम्बरम एक बड़े वकील हों पर बतौर केंद्रीय गृहमंत्री उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि वह हलफनामा खुद ही लिखें। उधर पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने उन पर किए जा रहे हमले के जवाब में माना कि इस मामले से जुड़े दस्तावेजों (हलफनामे) में मामूली बदलाव किए गए थे। बदले हलफनामे को पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने तीन बार देखा था जो अब गायब हैं। श्री चिदम्बरम का यह बयान ऐसे समय आया है जब इस मामले से संबंधित फाइलों के गायब होने की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन हो गया है। इस पूरे प्रकरण पर जांच इसलिए भी जरूरी है ताकि सच सामने आ सके। अगर पी. चिदम्बरम पर लगे आरोपों में तनिक भी सत्यता है तो इसका मतलब है कि गृहमंत्री के रूप में उन्होंने वह काम किया जो उनसे बिल्कुल भी अपेक्षित नहीं था और जिससे आंतरिक सुरक्षा तंत्र के साथ खिलवाड़ हुआ। इससे बड़ी विडंबना कोई नहीं हो सकती कि गृहमंत्री के स्तर पर ऐसे काम किए जाएं जिससे आतंकी संगठनों के स्वार्थ पूरे हों। राजनीतिक हानि-लाभ के लिए देश की सुरक्षा तक से खिलवाड़ की जाए यह स्वीकार्य नहीं। उम्मीद की जाती है कि जांच समिति गंभीरता से सत्य निकालने में सफल होगी ताकि देश को भी पता चले कि वोट बैंक पॉलिटिक्स के लिए कोई सियासी दल किस हद तक गिर सकता है।

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