सत्ता
पक्ष और विपक्ष के बीच पिछले कुछ सत्रों में जिस तरह टकराव बढ़ा है, उसके बीच राज्यसभा में बहुप्रतीक्षित
रियल एस्टेट बिल यानि भूसम्पत्ति (विनियम एवं विकास) विधेयक, 2015 का पारित होना एक स्वाग्तयोग्य कदम है।
अब इसे लोकसभा में पेश होना है, जहां वैसे भी इसे पारित करवाने
में सरकार को कोई अड़चन नहीं आने वाली है। यह विधेयक राज्यसभा में पारित होना कई दृष्टियों
से महत्वपूर्ण है। इस विधेयक के कानून का रूप लेने का इंतजार लाखों लोग कर रहे थे।
यह अच्छा नहीं हुआ कि जब अपने घर का सपना देखने वाले लोग इस विधेयक के पारित होने की
प्रतीक्षा कर रहे थे तब कई राजनीतिक दल जाने-अनजाने उनके धैर्य
की परीक्षा ले रहे थे। पिछले कुछ सालों में रियल एस्टेट का जो हाल हुआ है, उससे आम आदमी का अपना घर होने का सपना भी दुःस्वप्न में ही बदल गया। आज भी
मकानों या फ्लैट्स की कीमतें आम लोगों की पहुंच से दूर तो हैं ही, बिल्डरों और दलालों की मनमानी के कारण उन्हें सरकारी दफ्तरों से लेकर अदालतों
के चक्कर काटने पड़ते हैं। दूसरी ओर अविश्वास का ऐसा माहौल बन गया है कि राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र से लेकर मुंबई और तमाम महानगरों में ही नहीं, छोटे शहरों तक में लाखों आवासीय ईकाइयां बनकर तैयार हैं, मगर उन्हें खरीदने वाला कोई नहीं। बिल्डरों या भवन निर्माताओं की धोखाधड़ी
और झूठे विज्ञापन पर ग्राहक फंसने के अनेक मामले हमारे सामने आते रहते हैं। इस विधेयक
के नाम रियल एस्टेट नियमन एवं विकास विधेयक से ही इसका लक्ष्य स्पष्ट है। इस कानून
के तहत रियल्टी सैक्टर में नियामक बनाया जाएगा। मकान खरीददारों और बिल्डरों के बीच
लेनदेन की निगरानी होगी। राज्य स्तर पर रियल एस्टेट रेग्यूलेटरी अथारिटी (रेटा) बनेगी। सभी राज्यों को रियल एस्टेट अपील ट्रिब्यूनल
भी बनाने होंगे। रेटा और ट्रिब्यूनल को विवाद का निपटारा 60 दिन
में करना होगा। रियल एस्टेट विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं जो फ्लैट खरीदने वालों
के हितों की रक्षा में सहायक साबित होंगे। सबसे राहत की बात यह है कि अब फ्लैट खरीदने
वाले बिल्डरों की ठगी का शिकार बनने से बच सकेंगे। देश में जाने कितने लोग ऐसे हैं
जो एक अदद घर की चाह में लाखों रुपए से हाथ धो बैठे हैं। वे ठगे भी गए और उनकी कोई
सुनवाई भी नहीं हुई। कुछ महीने पहले किए गए सर्वे के मुताबिक मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई में ही ऐसे 77 हजार से अधिक की
3000 करोड़ रुपए की ईकाइयां खाली पड़ी थीं। रियल एस्टेट क्षेत्र को काले
धन का बड़ा जरिया माना जाता है। ऐसे में इस विधेयक को पारित किया जाना और भी जरूरी
हो गया था। इस विधेयक का अहम बिन्दु यह है कि बिल्डर को नियत समय में आवास उपलब्ध कराना
होगा और ऐसा नहीं करने पर उसे खरीददार को ब्याज सहित पैसे लौटाने होंगे। इसके साथ ही
बिल्डर को खरीददार से प्राप्त कुल राशि का 70 फीसद एक अलग खाते
में रखना होगा और इसका इस्तेमाल उसे सिर्प भवन निर्माण जैसी गतिविधि में ही करना होगा।
वित्तमंत्री ने बजट में पहली बार मकान लेने वालों को भी छूट देने का प्रावधान किया
है। हालांकि अब भी रियल एस्टेट क्षेत्र में कीमतों और बैंकों की ब्याज दरों के बीच
असंतुलन है, जिसे दूर करने की जरूरत है। यह भी अच्छा हुआ कि कारपेट
और बिल्ट-अप एरिया को परिभाषित किया गया है। चूंकि रियल एस्टेट
कृषि क्षेत्र के बाद रोजगार उपलब्ध कराने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है इस क्षेत्र
को पारदर्शी बनाना जरूरी था। हम उम्मीद करते हैं कि सभी सियासी दल उन अन्य महत्वपूर्ण
विधेयकों को भी इसी तरह सहयोग देंगे जैसे उन्होंने रियल एस्टेट विधेयक को दिया है और
अविलंब पारित करवाएंगे ताकि अर्थव्यवस्था को गति देने के साथ-साथ आम लोगों को भी राहत देने में मददगार बनें।
-अनिल नरेन्द्र
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