जेएनयू अतिवामपंथियों, माओवादियों, नक्सलियों
व अलगाववादियों का गढ़ बन गया है। किसी में उन्हें हाथ लगाने की हिम्मत नहीं थी। मोदी
सरकार ने इस चुनौती को स्वीकार किया है और कानून के तहत इस समस्या से निपट रही है।
इस हेट इंडिया ब्रिगेड ने वह काम किया है जो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान वर्षों से नहीं
कर पाया। पाक टीवी अब नौ फरवरी के भाषणों को बड़े जोर से दिखा रहा है और कह रहा है
कि जो बात हम वर्षों से कहते थे, दुनिया मानती नहीं थी अब यही
बातें खुद भारत की राजधानी में जेएनयू के छात्र कर रहे हैं। पाकिस्तान जो काम फिदायीन
से नहीं करवा सका, कन्हैया, उमर खालिद और
उनके साथियों ने करके दिखा दिया। हमारे देश के वामदलों, नक्सलियों
के चेहरे खिल गए हैं। जेएनयू में नौ फरवरी का दिन चौंकाने वाला दिन था। पूरे जेएनयू
कैंपस में पोस्टर चिपकाए गए और छात्रों को अफजल गुरु की कथित न्यायिक हत्या और कश्मीर
पर भारत के अधिकार के खिलाफ विद्रोह मार्च में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया।
इसके बाद समूचे देश ने देखा कि वहां किस तरह के देश विरोधी नारे लगे। इस घटना के सामने
आने के बाद देश में अभिव्यक्ति की आजादी और देशद्रोह के कानून पर बहस छिड़ गई। अभिव्यक्ति
की आजादी की क्या सीमाएं हैं और देशद्रोह क्या होता है? इसके
बारे में आम आदमी भी अच्छी तरह बता सकता है, लेकिन मीडिया और
बुद्धिजीवियों के एक धड़े ने भ्रम फैलाने का काम किया। कुछ मीडिया घरानों के साथ-साथ पूर्ववर्ती सरकारों के शासनकाल में मलाई खाते रहे बुद्धिजीवियों,
मीडिया के कुछ एंकरों का अपना ही एजेंडा है। आईपीसी की धारा
124(ए) कहती है कि कोई भी आदमी यदि विधि द्वारा
स्थापित सरकार के खिलाफ लिखकर, बोलकर, संकेत
देकर या फिर अभिव्यक्ति के जरिये विद्रोह करता है या फिर नफरत फैलाता है या ऐसी कोशिश
करता है तो उसे अधिकतम उम्रकैद या तीन वर्ष या जुर्माने की सजा हो सकती है। सुप्रीम
कोर्ट ने अपने फैसले में भी राजद्रोह की व्याख्या की है। 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बैंच
ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया। इसके अनुसार वैसा कृत्य जिसमें विधि द्वारा स्थापित सरकार
के खिलाफ अव्यवस्था फैलाने या फिर कानून व व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या फिर हिंसा
को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति या फिर मंशा हो तो उसे राजद्रोह माना जाएगा। इसके अलावा
हार्दिक पटेल बनाम गुजरात सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति
अपने भाषण या कथन के जरिये विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ हिंसा फैलाने का आह्वान
करता है तब उसे राजद्रोह माना जाएगा। इस प्रकार पाकिस्तान जिन्दाबाद या हिन्दुस्तान
मुर्दाबाद का नारा शायद राजद्रोह की श्रेणी में न आए, लेकिन भारत
तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर की आजादी तक, हिन्दुस्तान की बर्बादी तक का नारा निश्चित रूप से राजद्रोह है। यह राजद्रोह
ही नहीं, बल्कि राष्ट्रद्रोह है। अनुच्छेद 19(1)(अ) अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी देता है, लेकिन इस पर युक्तियुक्त प्रतिबंध भी लगाया गया है। व्यक्ति की अभिव्यक्ति
की सीमा वहीं तक है जहां तक देश की एकता, अखंडता, राज्य की संप्रभुता, लोक व्यवस्था आदि को खतरा न पहुंचे।
इस प्रकार जेएनयू की घटना सिर्प विश्वविद्यालय स्तर पर अनुशासनहीनता का मुद्दा नहीं
है। कन्हैया कुमार की जमानत के आदेश में कहा गया है कि दूषित मानसिकता से ग्रसित कुछ
छात्र देश के लिए खतरा
बन जाएं उससे पहले उन्हें नियंत्रित करने की जरूरत है। संक्रमण जब शरीर के किसी अंग
तक सीमित होता है तब एंटी-बायोटिक दवा दी जाती है। यदि वह काम
नहीं करती तब दूसरे इलाज के रूप में उस अंग को ही काटना पड़ता है। छात्रों के इस एंटी
इंडिया समूह को लगा संक्रमण कोई छोटा-मोटा नहीं है। उनके मन में
सालों से जहर भरा गया है, अब वह कैंसर के समान हो गया है। यदि
इसका ऑपरेशन कर इलाज नहीं किया गया तो यह बीमारी पूरे देश को बर्बाद कर देगी।
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