Wednesday, 9 March 2016

जस्टिस विष्णु सहाय आयोग की सपा को क्लीन चिट?

मुजफ्फरनगर दंगे की जांच के लिए गठित जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने अपनी जांच में उत्तर प्रदेश की सपा सरकार को एक तरह से क्लीन चिट देते हुए सांप्रदायिक हिंसा के लिए खुफिया तंत्र को पूरी तरह से असफल और जिम्मेदार माना है। उसका कहना है कि खुफिया एजेंसियां स्थिति की गंभीरता को समझने में विफल रहीं। आयोग ने दंगों के लिए सरकारी मशीनरी को जिम्मेदार ठहराया है लेकिन कई जगह खुद ही बचाव भी किया है। दंगे के बाद मुजफ्फरनगर में तैनात किए गए एसएसपी सुभाष चन्द्र दूबे और अधिसूचना इकाई के निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह को ही सीधे तौर पर दोषी माना है। आयोग ने कहा है कि प्रिन्ट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने दंगों से संबंधित घटनाओं की बढ़ाचढ़ा कर रिपोर्टिंग की। 27 अगस्त से 15 सितम्बर 2013 के दौरान मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, सहारनपुर व मेरठ में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए प्रिन्ट व सोशल मीडिया अपने उत्तरदायित्व से बच नहीं सकती। हालांकि आयोग ने किसी विशेष स्पेशल साइट या प्रिन्ट मीडिया को इन दंगों के लिए उत्तरदायी नहीं माना है। आयोग ने माना है कि 30 अगस्त 2013 को जुमे की नमाज के बाद सइदुज्जमा, कादिर राणा, नूर सलीम राणा, रशीद सिद्दीकी आदि ने एक मंच से मुस्लिमों की एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया था। इसमें हिन्दुओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा व मुस्लिम समुदाय को हिन्दू समुदाय के विरुद्ध भड़काया गया। आयोग ने कहा है कि चूंकि इस मामले में भी संबंधित के खिलाफ कोतवाली सिटी में विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज है लिहाजा इनके खिलाफ भी सरकार की ओर से संविधान के अनुच्छेद 20(2) के तहत कोई अन्य दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। आयोग ने कहा कि यू-ट्यूब पर वीडियो क्लिप अपलोड करने के मामले में भाजपा विधायक संगीत सोम व 229 अन्य व्यक्तियों के खिलाफ मुजफ्फरनगर की कोतवाली में मुकदमा दर्ज होने की वजह से इनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(2) के अंतर्गत कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। आयोग ने मोटे तौर पर दंगा होने के यह तीन कारण बताएöतालिबान के एक साल पुराने वीडियो (जिसमें कुछ लड़कों की पिटाई हो रही है) को सचिन व गौरव की हत्या से जोड़कर सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित किया गया। मुजफ्फरनगर के शहीद चौक पर कादिर राणा व अन्य के द्वारा दिए गए भाषण का डीएम व एसएसपी द्वारा ज्ञापन लिया जाना, हिन्दू व मुस्लिम, दोनों पक्षों द्वारा भड़काऊ भाषण देना। नंगला मंदौड़ में आयोजित पंचायत रोकने के लिए प्रशासनिक विफलता, नंगला मंदौड़ में आयोजित पंचायत में भाग लेने जा रहे हिन्दुओं पर बसीकलां में हमला। सात सितम्बर की पंचायत में हिस्सा लेने के लिए मुजफ्फरनगर और शामली तक के लोग नंगला मंदौड़ आए थे। रास्ते में बसीकलां गांव में नारेबाजी को लेकर मारपीट हो गई थी, लोगों ने ट्रैक्टर-ट्रालियों में सवार लोगों पर पथराव कर दिया था। इन्हीं लोगों ने नंगला मंदौड़ पंचायत में पहुंचकर बसीकलां में बवाल की जानकारी दी थी। आयोग ने इस बिन्दु को भी हिन्दू समुदाय में गुस्से की वजह बताया। पंचायत में एक बार तो बसीकलां कूच करने का मंच से ऐलान कर दिया गया था। भाजपा नेताओं ने विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए आरोप लगाया कि आयोग ने केवल सपा सरकार को बचाने का काम किया। आयोग ने तथ्यों को छिपाया है। नंगला मंदौड़ में पंचायत के आयोजक रहे वीरेंद्र सिंह प्रमुख का कहना है कि आयोग ने उनसे यह तक नहीं पूछा कि पंचायत क्यों आयोजित की गई। 27 अगस्त की रात में डीएम सुरेंद्र सिंह और एसएसपी मंजिल सैनी का तबादला किसने कराया। सात हत्यारोपियों को किसने छुड़वाया। इसकी जांच होती तो आजम खान और अमीर आलम का नाम सामने आता। आयोग ने केवल सरकार को ही बचाया है। आजम खान और अमीर आलम खान की भूमिका की जांच नहीं की गई। आयोग ने महज लीपापोती की और केवल सपा के नेताओं को बचाने का काम किया है। दंगों की जांच पांच जजों के पैनल से कराई जानी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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