Thursday, 1 June 2017

पशुवध कानून के खिलाफ सियासी महाभारत

केंद्र के नए पशुवध कानून के खिलाफ सियासत तेज हो गई है। केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने 26 मई को एक अधिसूचना जारी कर पशु बाजार में बूचड़खानों के लिए जानवरों की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी थी। नए प्रावधान के तहत गाय, बैल, सांड, बछिया, बछड़े, भैंस और ऊंट को बाजार में लाकर हत्या के इरादे से इनकी खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ गोलबंद होने लगी हैं। पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और केरल की सरकारों ने कहा कि वह इस फैसले को नहीं मानेंगे। इस प्रतिबंध के खिलाफ सोमवार को केरल हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल की गई है। केंद्र सरकार ने 26 मई को पशुओं के खिलाफ क्रूरता रोकथाम (मवेशी बाजार नियमन) नियम 2017 अधिसूचित किया। इसके अनुसार दुधारू मवेशी की मंडियों में खरीद-फरोख्त नहीं होगी। मवेशी तभी लाई जाएगी जब उसके मालिक का पूरा ब्यौरा मंडी में जमा हो जाए। खरीदार और विक्रेता दोनों लिखकर देंगे कि पशुओं का वध नहीं किया जाएगा। इस पर पशु के मालिक का दस्तखत होगा। गाय के बारे में आरएसएस और इससे जुड़े संगठन के लोग शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं। भाजपा भी गौहत्या के बारे में साफ रुख रखती आई है। लेकिन पीएम मोदी सहित पार्टी के कई नेता बीच-बीच में गौरक्षकों के द्वारा कानून हाथ में लेने की कड़ी आलोचना करते रहे हैं। पीएम मोदी ने तो कानून हाथ में लेने वालों को काफी बुरा-भला भी कहा था। लेकिन गौरक्षा का मामला फिर भी किसी न किसी रूप में गरम रहा है। पशु ले जाने वालों पर हमले नहीं रुके। केंद्र सरकार द्वारा बुचड़खाने के लिए मवेशियों की बिक्री पर पाबंदी लगा देने के बाद यह मुद्दा और ज्यादा गरमा गया है। प्रतिक्रिया में कांग्रेस और अन्य दलों के कार्यकर्ता दक्षिण और पूर्वी भारत में जो कुछ कर रहे हैं उसका असर उत्तर भारत और अन्य हिस्सों में भी हो सकता है। सो तीन तलाक के बाद अब मवेशियों का यह मामला भी बड़ा मुद्दा बन सकता है। हालांकि कहा जा रहा है कि विरोध को देखते हुए मवेशियों की बिक्री की इस पाबंदी से भैंस शब्द हटाया जा सकता है। असल बवाल इसी पर हो रहा है। काम-धंधों और बेरोजगार को बड़ी ठेस लगने की बात कही जा रही है। क्या खाना है, इसकी स्वतंत्रता पर भी चोट पहुंचने की बात कही जा रही है। मवेशियों की बिक्री पर पाबंदी को लेकर केरल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बछड़े का वध कर दिया है। अगले दिन भी वारदात हुई है। चेन्नई में बीफ पार्टी हुई है। बेंगलुरु में भी कुछ चीजें सामने आई हैं। मालेगांव में पलट प्रतिक्रिया हुई है। केरल के सीएम ने मामले को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। लेफ्ट पार्टियों के नेता गुस्सा कर रहे हैं। वेस्ट बंगाल की सीएम और टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने तो प्रेस कांफ्रेंस कर नाराजगी जाहिर की है। ममता ने कहा है कि केंद्र का यह फैसला असंवैधानिक है। यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला है और केंद्र संघीय ढांचे को चोट पहुंचा रहा है। ममता ने मामले को कोर्ट में चैलेंज करने की बात कही है। काटने के लिए गोवंश की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी के फैसले को सही ठहराते हुए केंद्र ने कुन्नूर में सार्वजनिक रूप से गोवंश काटने और कई शहरों में बीफ पार्टी के आयोजन को स्वीकार्य करार दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार किसी पर खाने की आदतों को लेकर दबाव नहीं बना रही है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टियां  एक बार फिर देश का माहौल खराब करने की साजिश रच रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केरल में बीफ फेस्ट के आयोजन पर सवाल उठाते हुए एक कार्यक्रम में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की घटनाओं पर बोलने वाले कथित सैक्यूलर बीफ फेस्ट पर क्यों मौन हैं? विरोध करने वालों की ओर से यह भी दलील दी जा रही है कि उनको गोमांस खाना जरूरी है। वे यह दलील इस बात को भलीभांति जानते हुए भी दे रहे हैं कि देश के ज्यादातर हिस्सों में एक बड़ा वर्ग गाय के प्रति आस्था-आदर रखता है। आखिर इस तरह दूसरों की आस्था को चोट पहुंचाना कहां का नियम है? सवाल यह भी है कि कोई किसी खास पशु विशेष के मांस सेवन की जिद कैसे पकड़ सकता है? जब खाने-पीने की आदतें बदल रही हैं और सारी दुनिया में शाकाहारी भोजन पर जोर दिया जा रहा है तो कुछ लोग गोमांस सेवन को जरूरी साबित करने पर क्यों तुले हुए हैं। क्या यह भौतिक अधिकार है? सवाल यह भी है कि जिन राज्यों में गोमांस सेवन पर रोक नहीं वहां के नेता क्यों बौखलाए हुए हैं? अब जब केंद्र सरकार की ओर से स्वयं ही इसके संकेत दिए गए हैं कि वह पशुओं की खरीद-बिक्री संबंधित नियमों में संशोधन करने पर विचार कर रही है तब फिर राजनेताओं को माहौल खराब करने एवं राजनीति चमकाने से बाज आना चाहिए।

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