Tuesday, 20 June 2017

चैन तो तब मिलेगा जब दाऊद इब्राहिम व साथियों को सजा मिलेगी?

24 साल गुजर गए पर उस बुरे दिन को याद करके आज भी लोग सिहर उठते हैं जब 12 मार्च 1993 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक के बाद एक 12 बम विस्फोट अलग-अलग जगहों पर हुए थे। इस आतंकी हमले में न सिर्फ 257 लोगों की जानें गई थीं, बल्कि 713 लोग घायल भी हुए थे। शुक्रवार को मुंबई की टाडा अदालत ने अबू सलेम और मोहम्मद दोसा सहित छह आरोपियों को दोषी करार दिया। यह आरोपियों का दूसरा बैच है, जिस पर इस मामले में फैसला सुनाया गया है। इससे पहले 123 आरोपियों का मुख्य मुकदमा 2006 में पूरा हो चुका है जिसमें 100 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था। अब इस मामले में कोई आरोपी हिरासत में नहीं है, इसलिए तात्कालिक तौर पर माना जा सकता है कि यह फैसला इस मामले में अंतिम फैसला है। लेकिन दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, मोहम्मद दोसा और टाइगर मेमन सहित 33 आरोपी आज भी फरार हैं। 24 साल बाद मुंबई में हुए बम धमाकों में आया यह फैसला उन लोगों को रास नहीं आ रहा है जो इसमें अपना सब कुछ गंवा बैठे। उनका मानना है कि जब तक अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को सजा नहीं मिल जाती ऐसे फैसले पर खुशी मनाना गलत है। जब तक ये कानून के फंदे से बाहर हैं तब तक यह नहीं माना जा सकता कि यह मामला अपनी तार्किक परिणति तक पहुंच गया है। जैसा कि विशेष टाडा जज ने कहा है कि इस हमले के दोषी अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का बदला लेना चाहते थे। मगर हैरानी की बात यह है कि खुफिया तंत्र तीन महीने से चल रही साजिश और हमले की तैयारी का पता तक नहीं लगा सका था। इस फैसले से पता चलता है कि जिन छह लोगों को दोषी ठहराया गया है। हथियारों और बारूदों की खेप मुंबई तक लाने से लेकर विभिन्न जगहों पर पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी किस तरह से तय थी। सच तो यह है कि हमले के दो-तीन दिन बाद जब पुलिस अधिकारी शक के आधार पर टाइगर मेमन के घर पहुंचे तो पता चला कि उसका सारा परिवार पहले ही देश छोड़ चुका था। हालत यह है कि इतने वर्ष बाद भी मुख्य अभियुक्त दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, टाइगर मेमन और मोहम्मद दोसा सहित 27 आरोपी अब भी फरार हैं। अबू सलेम को पुर्तगाल से और मुस्तफा दोसा को संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पित किया गया था, उसी तरह से फांसी पर लटकाए जा चुके याकूब मेमन को नेपाल के रास्ते भारत लाया गया था। मुंबई में 1993 हुए ये सीरियल बम विस्फोट किसी आतंकवादी समूह या किसी आतंकवादी संगठन की करतूत नहीं थी। जिस जगह में विस्फोट किए गए वहां इतनी जल्दी इतनी बड़ी वारदात के लिए आतंकी नेटवर्क तैयार करना उस समय पाकिस्तान के लिए भी आसान नहीं था इसलिए उसने तस्करी, फिरौती और तमाम तरह के अपराध करने वाले मुंबई के अंडरवर्ल्ड के नेटवर्क का सहारा लिया। हालांकि यह पहला मौका नहीं जब पाकिस्तान ने अपराधियों का इस्तेमाल किया हो लेकिन इन सीरियल विस्फोटों और उसके बाद की सक्रियता ने पाक का सच पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दिया था। करीब आठ साल बाद 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 हमले की तुलना 1993 के मुंबई हमले से की जा सकती है। अमेरिका उस हमले से कुछ वैसे ही विचलित हुआ जैसा तब भारत हुआ था। मगर दोनों देशों की प्रतिक्रिया में अंतर साफ देखा जा सकता है। अमेरिका ने तब तक दम नहीं लिया जब तक उसने हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद जाकर मार नहीं गिराया। इसलिए मुंबई के सीरियल बम कांड का पूरा न्याय तभी हो सकेगा, जब हम न सिर्फ दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन व उनके फरार साथियों को उनके कसूर की सजा नहीं देते बल्कि आईएसआई में बैठे इस वारदात के असली षड्यंत्रकारियों को सजा नहीं दे लेते। तब तक यह नहीं होगा आतंकवाद का खतरा भारत पर हमेशा मंडराता रहेगा। सरकारों के दावे आते रहे पर इन 24 सालों में उस नेटवर्क को भी नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका जो आज भी दुबई और कराची से सक्रिय है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर इससे दुखद टिप्पणी और क्या हो सकती है?

No comments:

Post a Comment