Saturday 3 June 2017

काबुल धमाके में शक की सूई पाकिस्तान पर

बेगुनाहों का कत्ल इस्लाम में हराम है खासकर जब वह रमजान के पवित्र महीने में किया जाए। बुधवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में जो भीषण विस्फोट हुआ वह भी जेहाद के नाम पर किया गया। काबुल के उच्च सुरक्षा वाले वजीर अकबर खान इलाके में जर्मनी के काफी नजदीक फिदायीन हमलावर ने विस्फोटकों से लदे टैंकर को सुबह करीब 8.30 बजे उड़ा दिया। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि आसमान में घने धुएं का गुब्बार छा गया। विस्फोट में भारत, फ्रांस, जर्मनी, चीन और पाकिस्तानी दूतावास की खिड़कियों के शीशे टूट गए और दरवाजे तक उखड़ गए। इस विस्फोट में 80 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। अफगानिस्तान में इस वर्ष एक के बाद एक हुए बड़े धमाकों से साफ है कि वहां की सरकार आंतरिक व्यवस्था कायम रखने में असफल है। भारत के लिए चिन्ता की बात यह है कि उसके सुरक्षा हितों पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इस धमाके में शक की सूई पाकिस्तान की तरफ घूम रही है। अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी ने प्राथमिक जांच में पाया है कि धमाके की योजना पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बनाई थी। यह भी पाया गया है कि धमाके में इस्तेमाल टैंकर के भीतर 1500 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री थी। इस बीच अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तान के साथ खेली जाने वाली दोस्ताना टी-20 मैचों की श्रृंखला रद्द कर दी है। देश में बृहस्पतिवार को एक दिन का राष्ट्रीय शोक भी रखा गया। दुनिया का हर कानून सार्वजनिक जगहों पर लोगों को निशाना बनाने की जोरदार मुखालफत करता है। मगर अफगानी अचम्भित हैं कि आखिर ये दहशतगर्द किस मिट्टी के बने हैं, जो रमजान के पाक महीने में भी मासूमों को निशाना बनाते हैं? अपने सियासी मतलब के लिए आतंकी आम नागरिकों का कत्लेआम करते हैं जो इस्लामी उसूलों के खिलाफ है। इस्लाम साफ कहता है कि हथियार डाल चुके किसी गैर-मजहबी की भी हत्या न हो मगर दहशतगर्द इस ताकीद को भी नहीं याद रखते। मानवता के खिलाफ खड़े आतंकी सजा लायक तो हैं ही, सेना-समर्थित आतंकवाद के खात्मे की भी जरूरत है। काबुल में भारतीय दूतावास हमेशा से पाकिस्तान की आईएसआई के निशाने पर रहा है और वहां कई बार पाक समर्थक आतंकी हमला बोल चुके हैं। अफगानिस्तान में ऐसी ताकतें अभी भी सक्रिय हैं, जो इस मुल्क को अस्थिर करना चाहती हैं और न ही चाहती हैं कि यहां अमन-शांति हो। दशकों से बाहरी दखल और भीतरी उथल-पुथल से जूझ रहे अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कैसे लाई जाए, यह आज पूरे विश्व के लिए चुनौती है। भारत के लिए यह ज्यादा चिन्ता का विषय है क्योंकि अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति पाक को सबसे ज्यादा चुभती है।

-अनिल नरेन्द्र

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