Tuesday 6 June 2017

कांग्रेस का गिरता ग्राफ देशहित में नहीं है

मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर कांग्रेस ने भले ही जुबानी जंग तेज कर दी हो लेकिन वह 2014 में लगे मोदी ग्रहण से उभर नहीं पा रही है तथा उसके हाथ से एक के बाद एक राज्य खिसकता जा रहा है और कांग्रेस पार्टी निरंतर सिकुड़ती जा रही है। इससे पार्टी के भविष्य पर तो प्रश्नचिन्ह लगता ही है, साथ-साथ देश के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। एक अच्छे लोकतंत्र के लिए अगर मजबूत सत्तापक्ष चाहिए तो उतना ही मजबूत विपक्ष भी चाहिए। अगर विपक्ष कमजोर और असरहीन होगा तो सत्तापक्ष अपनी मनमानी करेगा। फिलहाल कांग्रेस के गिरते ग्राफ पर विराम लगने की भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय राजनीति में श्री नरेंद्र मोदी के पदार्पण के बाद से चुनावी जंग में कांग्रेस के पतन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अनवरत जारी है और देश में जो माहौल है उससे नहीं लगता कि इस पर जल्द विराम लगने वाला है। कांग्रेस को भी इसका अहसास होने लगा है इसीलिए वह एकला चलो की अपनी पुरानी रणनीति को छोड़कर राज्यों तथा राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा-सेक्यूलर दलों से हाथ मिलाने के प्रयासों में जुट गई है। देश में 60 वर्ष से अधिक शासन करने वाली कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव में ऐसा मोदी ग्रहण लगा कि एक के बाद एक चुनाव में उसे शिकस्त मिल रही है और वह सिमटती जा रही है। आम चुनाव में वह 543 में से सिर्फ 44 सीटें ही जीत पाई थी जिसके कारण उसे विपक्ष के नेता का पद भी नहीं मिल सका। वह पिछले तीन वर्ष में सिर्फ एक राज्य (पंजाब) में सत्ता हासिल कर सकी है लेकिन उसके साथ हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों में करारी हार तथा मणिपुर और गोवा में बड़ा दल होने के बावजूद सरकार नहीं बना सकने के झटके के चलते वह इस जीत का जश्न तक नहीं मना सकी। दिल्ली में लगातार 15 वर्ष तक शासन करने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी का यहां से आज एक भी सांसद या विधायक नहीं है। पिछले तीन वर्षों में सभी बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे शिकस्त का सामना करना पड़ा है। पिछले आम चुनाव के समय कांग्रेस का 11 राज्यों में शासन था। इस समय सिर्फ पांच राज्योंöकर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम सहित केंद्रशासित पुडुचेरी में उसकी सरकार है। बिहार में महागठबंधन की सरकार में वह शामिल है। श्री मोदी की लोकप्रियता के आधार पर भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और असम जैसे कांग्रेस के गढ़ों को ढहा दिया। असम में लगातार तीन चुनाव जीतने वाली कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। चुनावी हार के साथ कांग्रेस को बगावत का भी सामना करना पड़ रहा है। बगावत के चलते अरुणाचल प्रदेश में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा। उत्तराखंड में भी स्थिति बन गई थी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उसकी सरकार बचा ली थी। वहां हाल में हुए चुनाव में भाजपा ने उसे धूल चटा दी। विधानसभा चुनाव ही नहीं, स्थानीय निकायों के चुनाव में भी कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। महाराष्ट्र, ओडिशा और दिल्ली के स्थानीय चुनाव में वह बुरी तरह पराजित हुई है। ओडिशा में भाजपा उसे पछाड़कर दूसरे स्थान पर आ गई है। मुंबई महानगर पालिका के चुनावों में भाजपा चौथे स्थान पर रही। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में वह भाजपा और आम आदमी पार्टी के बाद तीसरे स्थान पर रही। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव को परिवारवाद की राजनीति पर घेरने हेतु कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि तेलंगाना सरकार की पूरी सियासत केसीआर और उसके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। बेशक यह सही है पर यही सवाल कांग्रेस से भी किया जा सकता है। नेहरू-गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाली कांग्रेस दूसरों पर यह आरोप लगाए तो सही नहीं है। वास्तविक स्थिति यही है कि आज कांग्रेस में नेतृत्व की भारी कमी है और कोई नेता ऐसा नहीं जो कांग्रेस को इस दल-दल से निकाल सके। वास्तव में गांधी परिवार ने पिछले 29 सालों में कोई कुर्सी नहीं संभाली है, वह सत्ता से बाहर है, वक्त का तकाजा है कि कांग्रेस आत्म-मंथन करे और पार्टी को सही नेतृत्व व दिशा प्रदान करे।

-अनिल नरेन्द्र

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