Friday, 9 June 2017

क्या जीएसटी लागू करने का होमवर्क पूरा कर लिया गया है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन की तैयारियों की समीक्षा की और कहा कि इस पर अमल देश की अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक मोड़ साबित होगा। देश के इतिहास में इसे अभूतपूर्व अवसर करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि एक राष्ट्र, एक बाजार व एक कर प्रणाली का विकास देश के आम नागरिक के लिए बड़े फायदे का होगा। पर सवाल यहां यह है कि क्या इसके लिए पर्याप्त होमवर्क हो चुका है? क्या सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं? अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था को लागू करने में अब चन्द दिन ही बचे हैं। इस दरम्यान इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) ने इसे लागू करने की तैयारियां न होने का हवाला देकर सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। आईबीए बैंकों की कार्यप्रणाली में बदलाव की प्रक्रिया पूरी न होने की जो दलील दे रहा है उसे सिर्फ हास्यास्पद ही कहा जा सकता है। बैंकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जीएसटी व्यवस्था को लागू करने की कवायद बरसों से चल रही है। यह मुद्दा सरकार की साख का सवाल बन गया है। दूसरी ओर भाजपा सांसद डाक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मौजूदा आर्थिक हालात को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के प्रतिकूल करार देते हुए कहा है कि ऐसे में जीएसटी को दो साल के लिए टाल दिया जाना चाहिए वरना मोदी सरकार के लिए यह वॉटरलू साबित होगा। स्वामी ने जीएसटी को लेकर अपने विचार ट्विटर पर साझा करते हुए इस सन्दर्भ में विश्व प्रसिद्ध उस वॉटरलू मुद्दे का उदाहरण दिया जिसमें अजेय माने जाने वाले फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट को आखिरकार पराजित होना पड़ा था। उन्होंने कहा कि जीएसटी के बारे में एक महीने पहले ही उन्होंने प्रधानमंत्री को 16 पन्नों की चिट्ठी लिखी थी जिसमें अर्थव्यवस्था और सकल घरेलू उत्पाद दर में गिरावट के छह खतरनाक संकेतों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा कि अब भी उनका यही मानना है कि मौजूदा आर्थिक स्थितियों तथा पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा के उन सुझावों को ध्यान में रखते हुए जिसमें उन्होंने कहा है कि जीएसटी को तुरन्त स्वीकार करना मुश्किल होगा क्योंकि इसे लेकर उद्योगों की तैयारी पूरी नहीं हो पाई है और जरूरी नेटवर्क का सेवा प्रदाताओं की ओर से पूरा परीक्षण भी नहीं किया गया है, जीएसटी को जुलाई 2019 तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए। वरना यह सरकार के लिए वॉटरलू साबित होगा। जीएसटी के बारे में स्वामी की यह टिप्पणी जीडीपी के ताजा आंकड़ों के आलोक में आई है। इन आंकड़ों से ऐसा संकेत गया है कि नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी है। गत बुधवार को जारी किए गए जीडीपी आंकड़ों के अनुसार मार्च 2017 में समाप्त चौथी तिमाही के दौरान जीडीपी घटकर 6.1 फीसदी रह गई है जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह सात फीसदी थी। जीएसटी के लागू होने के बाद मार्केट किस तरह रिएक्ट करती है यह भी आज नहीं कहा जा सकता। कुछ महीने तो इतनी कंफ्यूजन होगी कि समझ ही नहीं आएगा कि किस वस्तु की क्या कीमत होगी? इससे कुछ वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे तो कुछ के घटने की उम्मीद है। जीएसटी के लागू होने के  बाद कपड़ा उत्पाद विशेष रूप से सूती धागे और फैब्रिक वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे। उद्योग जगत के एक वर्ग का मानना है कि सूती और सिंथेटिक फाइबर के लिए कर दरों में भिन्नता से व्याख्या से संबंधित मुद्दे पैदा होंगे। फिलहाल सभी तरह की सेवाओं पर करीब 15 फीसदी टैक्स लगता है, जबकि अब ज्यादातर सेवाओं पर 18 फीसदी जीएसटी लागू होगा। स्कूल फीस, कूरियर, मोबाइल चार्ज, बीमा प्रीमियम, वाई-फाई, डीटीएच जैसी कई जरूरी सेवाएं महंगी होंगी। बेशक कुछ वस्तुएं सस्ती भी होंगी पर आमतौर पर माना जा रहा है कि जीएसटी से महंगाई बढ़ेगी। इसलिए सरकार को अपना होमवर्क अच्छे से कर लेना चाहिए। नोटबंदी की तरह जीएसटी लाने में जल्दी नहीं करनी चाहिए। देश अभी नोटबंदी की मार से उभरा नहीं कि जीएसटी की मार पड़ गई तो जनता की कमर टूट जाएगी।

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