Thursday, 8 June 2017

गुहा के लैटर बम ने खोला सबका कच्चा चिट्ठा

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में व्याप्त घोटाले व गड़बड़झाले को खत्म करने के लिए जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने हेतु एक प्रशासनिक समिति बनाई। विनोद राय की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति (सीओए) गठित की गई थी। इसमें राय और रामचन्द्र गुहा के अलावा विक्रम लिमये व डायना इडुलजी को शामिल किया गया था। मशहूर इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने प्रशासकों की समिति से त्यागपत्र देकर एक लैटर बम फोड़ दिया है। गुहा ने अपने त्यागपत्र में भारतीय क्रिकेट की सुपर स्टार संस्कृति, हितों के टकराव के मसले पर गौर नहीं करना और बीसीसीआई के कोच अनिल कुंबले के प्रति असंवेदनशील रवैया जैसे मसलों को उठाकर लैटर बम फोड़ दिया है। गुहा ने लिखा है कि अगर वास्तव में कप्तान और मुख्य कोच के बीच मतभेद थे तो फिर मार्च के आखिर में आस्ट्रेलिया सीरीज खत्म होने के तुरन्त बाद इस पर गौर क्यों नहीं किया गया? इसे आखिरी क्षण तक क्यों छोड़ दिया गया, जबकि एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट (चैंपियंस  ट्राफी) बेहद करीब थी। ऐसे में अनिश्चितता कोच, कप्तान व टीम के मनोबल व एकाग्रता को प्रभावित कर सकता है। सीनियर खिल]िड़यों में यह धारणा पैदा हो रही है कि वे कोच को लेकर वीटो शक्ति रख सकते हैं, जोकि सुपर स्टार संस्कृति का एक और उदाहरण है। गुहा ने विराट कोहली पर अपरोक्ष कटाक्ष करते हुए लिखा है कि आज खिलाड़ी, कोचों और कमेंटेटरों (हर्षा भोगले को कमेंट्री के दौरान विराट की आलोचना करने पर बर्खास्त किया गया था) की नियुक्ति से संबंधित मसलों पर हस्तक्षेप कर रहे हैं। कल हो सकता है कि वे चयनकर्ता और पदाधिकारियों को लेकर अपना पक्ष रखें। धोनी को ग्रेड करार पर उन्होंने लिखा कि दुर्भाग्य से इस सुपर स्टार सिंड्रोम ने भारतीय टीम की अनुबंध प्रणाली को भी विकृत कर दिया है। आपको याद होगा कि मैंने धोनी को ए-ग्रेड का अनुबंध देने का मसला उठाया था, क्योंकि वह टेस्ट मैचों से स्वयं ही हट चुके हैं तो यह क्रिकेट दृष्टि से सही नहीं था और इससे पूरी तरह से गलत संदेश गया। इस पत्र के कई और मुद्दों के अलावा सुनील गावस्कर के प्रोफेशनल मैनेजमेंट ग्रुप का भी मुद्दा उठाया गया। गावस्कर उस कंपनी के प्रमुख हैं जो भारतीय क्रिकेटरों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि वह बीसीसीआई कमेंट्री पैनल में रहकर इन क्रिकेटरों (शिखर धवन) के बारे में बोलते हैं। यह स्पष्ट रूप से हितों का टकराव है। निस्संदेह खेल संस्थानों में सबसे दागदार बीसीसीआई में सुधार की गुंजाइश रही है पर जिस तरीके से गुहा ने क्रिकेट बोर्ड की कार्यशैली पर हमला किया है उससे बीसीसीआई में किसी भी सुधार की गुंजाइश कम लगती है।

-अनिल नरेन्द्र

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