Tuesday, 13 June 2017

नगर निगम दिल्ली को ओपन अर्बन स्लम बना रही है

राजधानी दिल्ली में आज भी कूड़े को डंप किया जा रहा है। कूड़े को लेकर अब तक की तमाम योजनाएं अभी तक सिरे नहीं चढ़ रही हैं। एमसीडी ने कूड़े के प्रबंधन को लेकर करीब 15 साल पहले योजना बनाई थी। शुरुआती दौर में कॉलोनियों में सूखे और गीले कूड़े के लिए नीले और हरे रंग के डस्टबिन रखवाए गए थे। बाद में कूड़े के प्रबंधन को लेकर निजी कंपनियों से करार किया गया। लेकिन अब यह सिर्फ नॉर्थ एमसीडी के पांच जोन और साउथ की एकाध कॉलोनियों तक ही सीमित है। दिल्ली में रोजाना करीब नौ हजार मीट्रिक टन कूड़ा पैदा हो रहा है। इस कूड़े को उन लैंडफिल में खपाया जा रहा है जो सालों पहले भर चुकी हैं। भलस्वा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल में 100-100 फुट ऊंचे कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। उसके बावजूद वहां आज भी कूड़ा फेंका जा रहा है। अदालत के आदेश के बावजूद दिल्ली की सड़कों से कूड़ा नहीं हटाए जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने ईस्ट, नॉर्थ और साउथ एमसीडी को नोटिस जारी किया है। दिल्ली हाई कोर्ट की एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस हरिशंकर की बैंच ने तीनों कमिश्नरों को 21 जून को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि कूड़ा हटाए जाने को लेकर कोई प्रयास नहीं किया गया। मानसून आने से पहले ही डेंगू और चिकनगुनिया दस्तक दे चुके हैं। अदालत ने एमसीडी से कहा कि कूड़ा हटाना आपकी बेसिक ड्यूटी है और उसके लिए भी आपको कोर्ट का आदेश चाहिए। किसी को तो जिम्मेदार बनना होगा। बता दें कि तीनों एमसीडी में करीब 70 हजार सफाई कर्मचारी काम करते हैं। इनमें से लगभग 20 हजार एवजी या कॉन्ट्रेक्ट पर हैं। एकीकृत एमसीडी की निर्माण समिति के अध्यक्ष जगदीश ममगई के अनुसार अमूमन इन कर्मियों का काम सुबह सात बजे शुरू होकर दोपहर तीन बजे खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन कहीं भी यह नियम नहीं चल रहा है। असल समस्या यह है कि इन कर्मियों के यार्ड स्टिक (सफाई का स्थान) सालों से नहीं बदले गए हैं। बढ़ती आबादी और बढ़ते कूड़े को देखते हुए यार्ड स्टिक को बढ़ाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सफाई विभाग में भ्रष्टाचार पर भी रोक नहीं लग पा रही है। दूसरी ओर सफाई कर्मचारियों का कहना है कि हमारा शोषण हो रहा है। उन्हें समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। लगातार हड़ताल चलती रहती है। इसके चलते राजधानी में जहां-तहां कूड़े के ढेर दिखाई देते हैं। करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद आज राजधानी ओपन डंप बना हुआ है। अब जब नई नगर निगमें बनी हैं सत्तारूढ़ पार्टी का यह फर्ज बनता है कि शहर में कूड़ा डिस्पोजल की ठोस योजना बनाई जाए और देश की राजधानी को ओपन स्लम बनने से बचाया जाए।
-अनिल नरेन्द्र

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