Friday 2 June 2017

छद्म युद्ध को छद्म तरीके से ही लड़ा जा सकता है

कश्मीर के हालात निसंदेह बेहद तनावपूर्ण है। सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत के कश्मीर में पत्थरबाजों से निपटने के लिए मानव ढाल का इस्तेमाल करने को सही ठहराना और ऐसे हालात में नए तरीके इजाद करने संबंधी बयान को लेकर तथाकथित कुछ सेक्युलर किस्म के नेताओं ने विवाद खड़ा करने की कोशिश की। सेना की जीप पर पत्थरबाज को बांधने वाले मेजर जनरल की प्रशस्ति हो या पत्थरबाजों के खिलाफ सेना की सख्ती, सरकार अब कश्मीर में हिसाब-किताब बराबर करने के मूड में आ चुकी लगती है। खासकर दक्षिण कश्मीर जहां आतंकवादियों की नई पौध पनप रही है और घाटी में फैलती जा रही है। सरकार के ज्यादा सर्तक रहने की वजह जम्मू-कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट है, जिसके मुताबिक घाटी में करीब 282 आतंकवादियों में 99 स्थानीय हैं।  लाजमी है कि सरकार और सेना का असली मुकाबला दक्षिण कश्मीर में मौजूद आतंकवादी, अलगाववादियों और पत्थरबाज हैं जो सेना और सरकार की सिरदर्दी की बड़ी वजह है। सेना प्रमुख ने साफ कहा कि मेजर लितुल गोगोई को सम्मानित करने का मुख्य उद्देश्य सुरक्षा बलों के युवा अधिकारियों का मनोबल बढ़ना था जो आतंकवाद प्रभावित राज्य में बहुत मुश्किल हालातों में काम कर रहे हैं। मेजर गोगोई के खिलाफ अभी भी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी चल रही है। उन्होंने कहा कि छद्म युद्ध है और छद्म युद्ध डर्टीवार है। इसे छद्म तरीके से अंजाम दिया जाता है। जंग के नियम तब लागू होते है जब विरोधी पक्ष अपने सामने लड़ता है। उधर माकपा नेता मोहम्मद सलीम ने जनरल रावत के बयान को सेना में नैतिक मूल्यों का क्षण बताया जबकि भाजपा और कांग्रेस ने इसका समर्थन  करते हुए कहा है कि आतंकवाद से निपटने के लिए सेना को खुली छूट मिलनी चाहिए। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस तरह बुरहान वानी और उसके साथी सब्जार अहमद के अलावा कई आतंकवादियों को मार गिराया गया है वह तो यह संकेत दे रहा है कि अब सेना हथियार उठाने वालों पर नरमी बरतने के मूड में नहीं दिखती। केंद्र सरकार का नजरिया साफ है कि पत्थरबाजों के साथ न तो कोई बातचीत होगी और न ही नरमी बरती जाएगी। 1990 के बाद राज्य के हालात उतने खराब नहीं रहे जितने पिछले कुछ साल में रहे हैं। स्वाभाविक है कि सरकार पर हालात को बेहतर करने का चौतरफा दबाव है। संतोष की बात यह भी है कि हिंसा सिकुड़कर दक्षिण कश्मीर के कुछ जिलों में रह गई है। ऐसे में अगर इस अशांति पर काबू नहीं पाया गया तो फिर संगठन के इकबाल पर सवाल उठना स्वाभाविक है। हम सेना प्रमुख के बयान का समर्थन करते हैं। सेना के हाथ बांधकर लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। 

-अनिल नरेन्द्र

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