अभी ब्रिटेन मैनचेस्टर में हुए आतंकी हमले से उबरा भी
नहीं था कि विगत शनिवार की रात आतंकवादियों ने एकाधिक जगहों पर हमला बोलकर फिर से अपने
दुस्साहस का परिचय दे दिया। ब्रिटेन में एक पखवाड़े के अंदर दूसरा आतंकी हमला यह साबित
करता है कि तमाम चौकसी के बाद भी वह आतंकियों पर लगाम लगा पाने में असफल रहा है। दरअसल
खुद ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां मानती हैं कि देशभर में आतंकवाद के करीब 23 हजार संदिग्ध मौजूद हैं। सरकारी सूत्रों
ने मीडिया से यह जानकारी साझा की है। सूत्रों ने कहा कि संदिग्धों का रुझान चरमपंथी
गतिविधियों की ओर है और वे ब्रिटेन में रह रहे हैं। इनमें से करीब तीन हजार संदिग्धों
को खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसा नहीं कि ब्रिटेन की सुरक्षा एजेंसियां चौकस
नहीं हैं। पुलिस और खुफिया एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे 500 से अधिक अभियानों में इनकी सक्रिय निगरानी रखी जा रही है। चुनाव के मुहाने
पर खड़े ब्रिटेन के लिए इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं कि उसका तीसरा सबसे बड़ा
शहर मैनचेस्टर अभी आतंक की धमक से उबरा भी नहीं था कि आतंकियों ने राजधानी लंदन को
खौफ से भर दिया। लंदन ब्रिज पर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाते हुए कुछ लोगों को कुचल देने
और बारो मार्केट में गाड़ी से उतरकर लोगों को चाकू मारने के तरीके जाने-पहचाने और खासकर यूरोप में आतंकियों की बदली हुई रणनीति के उदाहरण हैं,
जिनके सबूत हाल के दौर में बार-बार मिले हैं। ब्रिटेन
में इसी साल आतंकियों ने संसद के बाहर जो हमला किया था, उसमें
भी गाड़ी से लोगों को कुचलना और चाकू मारने के ऐसे ही मामले सामने आए थे। ताजा आतंकी
हमला इसलिए भी चिंतित करने वाला है कि इसी समय ब्रिटेन में चैंपियंस ट्राफी हो रही
है, जिसमें भारतीय टीम भी भाग ले रही है। यह ठीक है कि हमलावर
पुलिस की गोली का निशाना बन गए, लेकिन सवाल यह है कि जब मैनचेस्टर
में हमले के बाद देश के अन्य हिस्सों में आतंकी हमले की आशंका कहीं बढ़ गई थी तब फिर
इस नए हमले को रोका क्यों नहीं जा सका? ब्रिटेन में लगातार आतंकी
हमला होने का एक बड़ा कारण यह है कि आईएस को निशाना बनाने वाले गठबंधन में वह शामिल
है। लेकिन आतंकियों का बार-बार ब्रिटेन को हमले के लिए चुनना
इस देश की छवि और सुरक्षा, दोनों को प्रभावित कर रहा है। प्रधानमंत्री
टेरीजा मे ने इन हमलों के तत्काल बाद जिस तेवर का परिचय दिया है, क्योंकि आठ जून को होने वाले मध्यावधि चुनाव से पहले सुरक्षा न केवल एक बड़ा
मुद्दा बन चुका है, बल्कि यह टेरीजा और उनकी कंजरवेटिव पार्टी
के खिलाफ भी जा सकता है। टेरीजा ने मध्यावधि चुनाव कराकर जो जुआ खेला है वह अब उलटा
भी पड़ सकता है।
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