Friday, 9 June 2017

ईरान से नजदीकी कतर को भारी पड़ी

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इजिप्ट इन चारों देशों ने अचानक जिस तरह कतर से सभी राजनयिक और यातायात संबंध समाप्त करने की घोषणा की है वह संकटों से घिरे इस क्षेत्र के लिए एक और नए संकट की शुरुआत हो सकता है। इन देशों ने ऐसा करने के पीछे कारण दिया है कि कतर, मुस्लिम ब्रदरहुड, अलकायदा और आईएस जैसे आतंकी संगठनों और चरमपंथी गुटों की मदद कर रहा है और उसके इस रवैये से समूचे क्षेत्र में अस्थिरता का संकट पैदा हो सकता है। जिन्होंने कतर को कठघरे में खड़ा किया है उनका भी दामन पाक-साफ नहीं कहा जा सकता। दरअसल खाड़ी के अधिकतर देश अपनी-अपनी पसंद के चरमपंथी और आतंकी गुटों की मदद करते रहे हैं। मसलन सीरिया में सलाफी गुटों को सऊदी अरब से मदद मिलती रही है तो इस्लामी ब्रदरहुड के हथियारबंद संगठन को कतर से। आतंकवाद को समर्थन देने के आरोपों में कतर के खिलाफ मोर्चेबंदी का अगुवा बना सऊदी अरब खुद भी आतंकी संगठनों को मदद देने के आरोपों से घिरा हुआ है। खुद अमेरिकी और ब्रिटिश जांच एजेंसियों की नजर में उसकी भूमिका संदिग्ध है, जिनसे वह बड़े पैमाने पर हथियार खरीदता है। ब्रिटिश अमेरिकन सिक्यूरिटी इंफार्मेशन काउंसिल के सीनियर एडवाइजर डॉ. यूसुफ बट्ट के अनुसार बीते तीन दशकों में सऊदी अरब से गरीब मुस्लिम देशों में कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम को बढ़ाने के लिए 100 अरब डॉलर से ज्यादा रकम खर्च की गई है। वर्ष 2010 में विकीलीक्स ने तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और अमेरिकी राजनयिकों के बीच हुई बातचीत के कुछ गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक किए थे। 2009 में अपने राजनयिकों को लिखा था कि अलकायदा, तालिबान, लश्कर--तैयबा के लिए सऊदी अरब वित्तीय मदद का अहम आधार बना हुआ है। इन चारों देशों की नाराजगी कुछ इस्लामी समूहों को कतर की ओर से मिल रहे समर्थन को लेकर है। कतर इसका खंडन करता रहा है। लेकिन इजिप्ट और कुछ अन्य देशों में सक्रिय मुस्लिम ब्रदरहुड से उसकी करीबी जगजाहिर है। सऊदी अरब की सबसे बड़ी चिन्ता यही है। सुन्नी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड ज्यादातर अरब देशों में मौजूद खानदानी शासन या राजशाही का खुलकर विरोध करता है। सऊदी अरब का शाही परिवार अभी पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को सत्ता सौंपने की प्रक्रिया में है। ऐसे में मुस्लिम ब्रदरहुड का फैलाव उसे अपने लिए कुछ ज्यादा ही खतरनाक लग रहा है। बहरहाल आतंकवाद के कई रूपों से ग्रस्त इस क्षेत्र में सुन्नियों का आपसी टकराव पहली बार सतह पर दिख रहा है। आतंकी-चरमपंथी संगठनों के कथित मददगार कतर के खाड़ी-अरब देशों से अलग-थलग पड़ने का एक बड़ा कारण उसका ईरान से नजदीकी को बढ़ाने का भी है। कतर से राजनयिक रिश्ते समाप्त करने की घोषणा ऐसे समय की है, जिससे पहले 27 मई को कतर के शासक अमीर बिन हम्माद अली थानी ने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी को फोन किया था। थानी ने रूहानी को दोबारा निर्वाचित होने पर बधाई देने के लिए फोन किया था। यह स्पष्ट तौर पर सुन्नी शासित सऊदी अरब की इच्छा के उलट था। वह शिया शासित ईरान को अपना अव्वल दुश्मन और क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा मानता है। वह ईरान के खिलाफ कतर को अपनी स्थिति के अनुरूप देखना चाहता है। कतर से रिश्ता तोड़ने वाले देशों के नागरिकों के लिए कतर की यात्रा करने, वहां रहने या उससे होकर गुजरने पर पाबंदी होगी। इन देशों के  लोग कतर में रह रहे हैं उन्हें 14 दिन के अंदर कतर छोड़ना होगा। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब की थी। ट्रंप के ईरान विरोधी तेवर से भी सऊदी अरब का हौसला बढ़ा होगा। अब ट्रंप भले खाड़ी देशों को आपसी मतभेद सुलझाने की नसीहत दे रहे हों, पर उनका ईरान विरोधी एजेंडे का माहौल बिगाड़ने में कम योगदान नहीं है। दुनिया के बाकी देश इस टकराव में किसका, किस हद तक साथ देंगे, यह अभी तय नहीं है लेकिन कतर ने झुकने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। नैचुरल गैस और तेल भंडार के मामले में दुनिया में तीसरा स्थान रखने वाला यह छोटा-सा देश प्रति व्यक्ति आय के मामले में पूरी दुनिया में नम्बर वन है। इसे झुकाना आसान नहीं होगा। उम्मीद की जाती है कि यह संकट जल्द हल कर लिया जाएगा नहीं तो पूरी दुनिया पर इसका असर पड़ सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

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