Friday 18 January 2019

हत्या के 16 साल बाद अंतत इंसाफ

पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति हत्याकांड में 16 साल बाद फैसला आया है। साल 2002 से मामले की सुनवाई चल रही थी। अब जाकर छत्रपति के परिजनों का लंबा इंतजार खत्म हुआ है। पंचकूला की विशेष सीबीआई कोर्ट ने गत शुक्रवार को हत्या के मुख्य आरोपी डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सहित तीन अन्य किशन लाल, निर्मल सिंह और कुलदीप सिंह को दोषी करार दिया है। कोर्ट ने चारों दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है व 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस बार पुलिस का कड़ा पहरा रहा। राम रहीम की पेशी सुनारिया जेल से वीडियो कांफ्रेंस के जरिये हुई, जहां वह साध्वियों के यौन शोषण के मामले में सजा काट रहा है। बता दें कि डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा मामला साल 2002 में एक पत्र के रूप में सामने आया था, जिसमें साध्वियों ने अपने साथ हो रहे यौन शोषण का खुलासा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में मदद की गुहार लगाई थी। उन दिनों पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति अखबार `पूरा सच' प्रकाशित करते थे। साध्वी द्वारा लिखा गया एक पत्र लोगों में चर्चा का विषय बना तो छत्रपति ने साहस दिखाया और 30 मई को अपने अखबार में `धर्म के नाम पर किया जा रहा साध्वियों का जीवन बर्बाद' शीर्षक से खबर छाप दी। खबर से तहलका मच गया क्योंकि अब अखबार द्वारा खुलकर लोगों को इस बात की जानकारी हुई कि डेरे में साध्वियों के साथ यौन शोषण किया जा रहा है। इसके बाद पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति को लगातार राम रहीम द्वारा धमकियां भी दी जाने लगीं। इस बारे में छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति बताते हैं कि पिता लगातार मिल रही धमकियों से नहीं डरे और इस मामले को आगे भी लगातार प्रकाशित करते रहे। 24 अक्तूबर 2002 को छत्रपति घर पर अकेले थे कि तभी कुलदीप और निर्मल सिंह ने उन्हें घर के बाहर बुलाया। कुलदीप ने छत्रपति पर पांच फायर किए और दोनों मौके से फरार हो गए। हालांकि पुलिस ने उसी दिन कुलदीप को गिरफ्तार कर लिया था। पत्रकार छत्रपति को पहले रोहतक पीजीआई में भर्ती करवाया गया था। बाद में उनकी गंभीर हालत को देखते हुए दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल में लाया गया था। लेकिन 20 दिनों बाद 21 नवम्बर 2002 को पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति ने दम तोड़ दिया। बाद में जांच में सामने आया कि जिस रिवॉल्वर से फायर किए गए थे, वह डेरा सच्चा सौदा के मैनेजर कृष्ण लाल की थी। इस मामले में तत्कालीन ओम प्रकाश चौटाला सरकार ने जांच के आदेश दिए। छत्रपति की हत्या के बाद परिवार ने हार नहीं मानी। बेटे अंशुल आर्थिक परेशानियों से टूटे नहीं और खेती-किसानी करते हुए न्याय के लिए जंग लड़ते रहे। इस लड़ाई में कई लोगों ने सहयोग किया। उन पर कई बार समझौता करने का दबाव भी आया पर वह डटे रहे। अंशुल कहते हैं कि कोर्ट के इस फैसले के बाद उनका संघर्ष अंजाम तक पहुंचा है।

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