Friday, 18 January 2019

कर्नाटक में शह-मात का खेल ः जीतेगा कौन?

कर्नाटक की राजनीति में इस समय जो कुछ घटित हो रहा है उसे नाटक कहें तो कोई आश्चर्यजनक नहीं है। इसका अंदेशा तभी उभर आया था जब विधानसभा चुनाव परिणाम आए थे और तीसरे नम्बर पर आई पार्टी जनता दल-एस ने दूसरे नम्बर पर रही कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। पहले नम्बर पर आई और साधारण बहुमत से दूर रही भारतीय जनता पार्टी ने भी जोड़तोड़ से सरकार बनाने की कोशिश की थी, लेकिन एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस से मिलकर भाजपा को मात देते हुए सरकार बना ली। तभी से कर्नाटक में शह-मात का खेल चल रहा है। ताजा नाटक में मंगलवार को तब नया मोड़ आया जब सात माह पुरानी कांग्रेस-जेडीएस सरकार को झटका देते हुए दो निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया। आर. शंकर व एम. नागेश के सरकार से समर्थन वापसी के बाद राजनीतिक स्थिति रोचक हो गई है। इससे सरकार पर ज्यादा असर तो नहीं पड़ेगा, पर कांग्रेस जेडीएस का अंदरूनी असंतोष बाहर आया तो सत्ता समीकरण बदल सकते हैं। कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा में एक मनोनीत विधायक को मिलाकर संख्या 225 हो जाती है। ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 113 पर है। भारतीय जनता पार्टी के पास 104 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 79 व जनता दल-एस के 37 विधायकों के साथ फिलहाल उनका पूर्ण बहुमत है यानि की बहुमत (113) से तीन ज्यादा (116) का टोटल बनता है। अगर तीन-चार विधायक अपना समर्थन वापस ले लेते हैं तो सरकार गिर जाती है। भाजपा को सरकार गिराने के लिए कम से कम नौ विधायकों के समर्थन की जरूरत है। भाजपा अपने सभी 104 विधायकों के साथ दिल्ली के पास हरियाणा के नूंह के एक पांच स्टार रिसोर्ट में डेरा डाले हुए है। वह अपने कुनबे को दूर से बचाए रखने व राज्य की सारी संभावनाओं को टटोल रही है। भाजपा और सत्तारूढ़ कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के नेताओं ने मंगलवार को भी एक-दूसरे पर तोड़फोड़ का आरोप लगाया। हालांकि टूट-फूट से बचाए रखने के लिए दोनों पक्ष अपने-अपने दावें कर रहे हैं। भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने अपने विधायकों के साथ बैठक में कहा कि जल्दी ही खुशखबरी आने वाली है। भाजपा को यह टीस तो है ही कि वह सबसे बड़े दल होने के बावजूद सरकार से बाहर है और एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली पार्टियां एक होकर सरकार चला रही हैं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कुमारस्वामी सरकार में असंतोष है। उनके विधायकों को लगता है कि उन्हें मंत्री न बनाया जाना नाइंसाफी है। वह हो सकता है कि पाला बदलना चाहते हों। किन्तु भाजपा उन्हें ऐसा करने को प्रोत्साहित करे, यह भी उचित नहीं है। यह राजनीतिक अनैतिकता होगी। इसी तरह अगर कुमारस्वामी भाजपा विधायकों को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं तो वह भी अनैतिक माना जाएगा। कुमारस्वामी कांग्रेस के व्यवहार के प्रति कई बार अपना दुख सार्वजनिक रूप से प्रकट कर चुके हैं। अगर कर्नाटक में नए सिरे से राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते हैं और उसके फलस्वरूप वहां नई सरकार बनती है तो इसे जोड़तोड़ व हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों को ही बल मिलेगा। फिर इस बात की कोई गारंटी नहीं कि जोड़तोड़ से बनी सरकार राज्य में स्थिरता लाएगी। दरअसल भाजपा कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन में झगड़ा करवाकर इसे कमजोर दिखाना चाहती है ताकि उसे 2014 की तरह 2019 के चुनाव में भी 28 सीटों में से 17 या उससे ज्यादा सीटें जीतने का अवसर मिले। यह शह-मात का खेल एक कोड 2019 लोकसभा चुनाव भी है। राजनीति जब सिद्धांत और नैतिकता से पतित होती है तो इसी तरह के नाटकीय दृश्य उपस्थित होना स्वाभाविक ही है।

-अनिल नरेन्द्र

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