Tuesday, 29 January 2019

क्या प्रियंका कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता साबित होंगी?

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मास्टर स्ट्रोक खेला है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी और योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश को लक्ष्य करके प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का महासचिव बनाकर और पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी देकर बहुत दिनों से प्रतीक्षित तुरुप का पत्ता चल दिया है। प्रियंका फिलहाल विदेश में हैं। वह फरवरी के पहले हफ्ते में लौटेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही चुनाव जीतते हैं। इस इलाके में प्रियंका को प्रभारी बनाने के बाद राहुल ने कहाöहम यूपी में बैकफुट पर नहीं, फ्रंट फुट पर खेलेंगे। प्रियंका के व्यापक राजनीति में सक्रिय होने पर भाजपा ने भले ही यह प्रतिक्रिया दी हो कि यह राहुल गांधी की विफलता है और परिवारवाद का नया प्रमाण है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उनके आने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नया जोश आ जाएगा। अटकलें तो अभी से यह भी लगने लगी हैं कि संभव है कि प्रियंका वारारणसी से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ें। अगर ऐसा होता है तो हमें तो कोई संदेह नहीं कि पूरा विपक्ष प्रियंका के समर्थन में उतर आएगा। काफी समय से पार्टी में इस बात की जरूरत महसूस की जा रही थी कि कांग्रेस में नया जोश पूंकने के लिए प्रियंका बड़ी भूमिका निभा सकती हैं, इसलिए उन्हें सक्रिय राजनीति में आना चाहिए। हालांकि अभी तक वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्रöरायबरेली और अमेठी तक सीमित थीं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के  बीच भी प्रियंका की स्वीकार्यता है और लंबे समय से पार्टीजन उनसे सक्रिय राजनीति में उतरने का आग्रह भी करते रहे थे। लेकिन अब अटकलों का यह दौर खत्म हुआ और प्रियंका सक्रिय राजनीति में आ चुकी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में दो अंकों में सिमट गई कांग्रेस के लिए 2019 का आम चुनाव बेहद अहम है। 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में पिछली बार कांग्रेस रायबरेली और अमेठी की सीट ही बचा सकी थी और पिछले विधानसभा चुनाव में महज सात सीटें ही हासिल कर सकी थी। निश्चित ही राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के रूप में परिपक्व हो चुके हैं और हाल ही में तीन राज्यों में पार्टी की विजय से उन्होंने अपनी क्षमता प्रदर्शित भी की है। दूसरी ओर प्रियंका ने अब तक अपनी राजनीतिक सक्रियता को सीमित रखा था और रायबरेली व अमेठी पर जनता से मिलती-जुलती और वहां की राजनीतिक गतिविधियों पर निगाह रखती रही हैं। अब उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारने का निर्णय आम चुनाव के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए लिया गया है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपने गठबंधन से कांग्रेस को अलग रखकर उसे यह मौका दे दिया है कि वह अब लोकसभा की सर्वाधिक सीटों वाले इस प्रदेश में अपने बूते पर मैदान में उतरे। प्रियंका अपनी दादी इंदिरा गांधी जैसी दिखती हैं और बोलने में भी आकर्षक प्रभाव छोड़ती हैं। उनके आने से पूर्वांचल के वे युवा जो भाजपा से खिन्न है और वे महिलाएं जो मायावती के प्रति आकर्षित नहीं हैं, प्रियंका के पक्ष में अपनी राय बना सकती हैं। हालांकि प्रियंका के साथ एक ही दिक्कत है और वह है उनके पति की छवि। भाजपा उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के बहाने उन्हें घेरने की कोशिश करेगी और संभवत यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी ने यह दांव चुनाव के मुहाने पर खेला है। हाल ही में रॉबर्ट वाड्रा पर दर्ज केसों ने प्रियंका को भी मैदान में उतरकर सामना करने को मजबूर किया होगा। प्रियंका को दोहरी चुनौती का सामना करना होगा, जिसमें एक ओर मोदी-शाह की मजबूत जोड़ी है वहीं दूसरी ओर सपा-बसपा की चुनौती। इसके बावजूद यह भी हकीकत है कि प्रियंका के आने से कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं में स्फूर्ति दिखाई दे सकती है। प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद निश्चित ही कांग्रेस पार्टी और जनता में उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। ऐसे में प्रियंका के लिए पार्टी अध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में देखना यह है कि प्रियंका का सक्रिय राजनीति में उतरना कांग्रेस के लिए कितना कारगार साबित होता है।

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