Friday, 11 January 2019

क्या आरक्षण का दांव गेमचेंजर साबित होगा?

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गई। राज्यसभा ने करीब 10 घंटे तक चली बैठक के बाद संविधान (124वां संशोधन) 2019 को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दे दी। लोकसभा ने इस विधेयक को मंगलवार को ही मंजूरी दे दी थी। अब बस राष्ट्रपति की इस पर मुहर लगने की औपचारिकता बची है कानून बनने में। अब आरक्षण का मौजूदा कोटा 49.5 प्रतिशत से बढ़कर 59.5 प्रतिशत हो जाएगा। मोदी सरकार का यह फैसला महज एक बड़ी राजनीतिक पहल ही नहीं, आरक्षण के दायरे से बाहर सवर्ण गरीबों को एक बड़ा तोहफा भी है। यह फैसला आर्थिक असमानता के साथ ही जातीय वैमनस्य को दूर करने की दिशा में एक ठोस कदम है। यह उन सवर्णों के लिए एक बड़ा सहारा है जो आर्थिक रूप से विपन्न होने के बावजूद आरक्षित वर्ग सरीखी सुविधा पाने से वंचित हैं। इसके चलते वे खुद को असहाय-उपेक्षित तो महसूस कर ही रहे थे, उनमें आरक्षण व्यवस्था को लेकर असंतोष भी उपज रहा था। इस स्थिति को दूर करना सरकार का नैतिक दायित्व था। इस दृष्टि से मोदी सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक माना जा सकता है जिसका आमतौर पर स्वागत होना चाहिए। हालांकि मोदी सरकार ने जिस तरह से वर्तमान सत्र के अंतिम दिनों में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला लिया, उससे सरकार की राजनीतिक विवशता ही दिखाई दी। सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर होती तो अपने कार्यकाल के पहले दौर में इस विधेयक को लेकर आती। माना जा रहा है कि हिन्दी क्षेत्र के तीन राज्यों में भाजपा को मिली हार के बाद सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। यह भी कहा जा सकता है कि सरकार ने यह कदम एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने से नाराज सवर्णों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए उठाया है। यह कदम दरअसल एक तीर से कई लक्ष्यों को साधने जैसा कदम है। इसके जरिये भाजपा सवर्णों का भरोसा जीतना चाहती है, खासकर इसलिए क्योंकि राजस्थान और मध्यप्रदेश में जहां उसे हाल के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा, यहां सवर्ण खासतौर से एससी/एसटी उत्पीड़न एक्ट को लेकर भाजपा से खासे नाराज थे। दूसरी बात यह है कि इस मुद्दे ने विपक्षी दलों के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी, जिसके लिए उसका विरोध करना मुश्किल हो गया। मसलन कांग्रेस सहित अनेक राजनीतिक दल आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत कर चुके हैं। सवर्णों को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते नौकरियों में सवर्ण वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को आरक्षण देने की मांग की थी। जानकारी के मुताबिक आरक्षण उन्हीं लोगों को मिलेगा जिनके परिवार की वार्षिक आय आठ लाख से अधिक न हो, कृषि भूमि पांच एकड़ से कम हो और आवासीय घर एक हजार वर्ग फुट से ज्यादा न हो। अगर इस पैमाने पर आरक्षण लागू किया जाता है तो देश की बहुसंख्यक जनता इसकी परिधि में आ जाएगी। गौरतलब है कि इस आय समूह वाली जनसंख्या मध्यमवर्गीय है, जो लगातार आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग कर रही थी। विडंबना यह भी है कि आप आठ लाख वार्षिक आय वाले को तो आरक्षण की श्रेणी में ला रहे हो और ढाई लाख आमदनी वाले से इनकम टैक्स काट रहे हो? पिछले कुछ समय से लगातार आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग उठ रही थी। यह भी थी कि जिस परिवार की एक या दो पीढ़ी इसका लाभ उठा चुकी हैं, उसको आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाए, पर सरकार ने ऐसा नहीं किया है। इससे एक तरह का मोदी सरकार ने पेंडोरा बॉक्स खोल दिया है। अब अन्य वर्गों में भी आरक्षण की मांग तेज होगी। जाट, मराठा और पाटीदार जैसी जातियां भी आरक्षण की मांग कर रही हैं। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि नौकरियां हैं कहां? बीते दिन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने आंकड़ा जारी किया है कि पिछले साल एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई हैं। नोटबंदी के दुप्रभाव से अभी तक लाखों परिवार प्रभावित हुए हैं, उनकी नौकरियां जाती रहीं। सरकार के पास इतनी नौकरियां कहां हैं? अभी तक जिन तबकों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया है, उनमें से कुछ लोगों का सशक्तिकरण निश्चित रूप से हुआ है, लेकिन जिन लोगों को इसका लाभ मिला है, उनकी संख्या पूरे तबके के मुकाबले बहुत छोटी है। जाहिर है कि जिन तबकों के लिए यह आरक्षण था, उनकी सारी समस्याओं का हल इनसे नहीं हुआ है। इसलिए यह मानना कि सवर्णों के जो गरीब हैं, उन सबकी सारी समस्याओं का समाधान इस 10 प्रतिशत आरक्षण से हो जाएगा, वह भी तब जब सरकारी नौकरियां लगातार कम हो रही हों मुश्किल प्रतीत होता है। बहरहाल 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के लिए यह गेमचेंजर हो सकता है ऐसा मोदी जी सोच रहे हैं। मोदी जी ने उन सवर्णों को खुश करने के लिए जो परंपरागत भाजपा का वोट बैंक हैं इस कदम को उठाया है। विपक्षी तो इसे चुनाव से पहले का स्टंट ही बताएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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