उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मकर संक्रांति से शुरू होने जा रहे
कुम्भ की तैयारियां अंतिम दौर में हैं। संगम तट पर बसाई जा रही कुम्भ नगरी रूपी लघु भारत में उत्तर प्रदेश
सरकार न केवल पूरे देश की बल्कि सारे विश्व की भागीदारी चाहती है। इस मकसद से वह
देश के सभी गांवों को न्यौता भिजवा रही है। गांवों तक न्यौता पहुंचाने के लिए
सरकार के अधिकारी राज्यों के मुख्य सचिवों के माध्यम से प्रत्येक पंचायत से कम से
कम चार लोगों को कुम्भ आने का बुलावा दे रहे हैं।
कुम्भ में दुनिया को समेटने के लिए 192 देशों को उनके दूतावासों के माध्यम से पत्र भेजे गए हैं।
संगम तट पर प्रयागराज पर आयोजित होने वाले कुम्भ में चार हजार करोड़ रुपए का बजट है। अनेक देशों से आने वाले अतिथि
यूनेस्को की ओर से मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर पर तमगा है। ऐसे अद्वितीय कुम्भ को अविस्मरणीय बनाने के लिए
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में राज्य सरकार पूरे जोरशोर से जुटी है। कुम्भ की स्वच्छता को लेकर राज्य सरकार
इतने प्रयास कर रही है कि सैनिटेशन के
नजरिये से इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया जा सके। कुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या
को ध्यान में रखते हुए मेले में विश्वस्तरीय सैनिटेशन की व्यवस्था की जा रही है। प्रयागराज में होने
वाले कुम्भ मेले में शौचमुक्त (ओडीएफ) करने का
फैसला किया गया है ताकि कुम्भ मेले के दौरान आने वाले तीर्थयात्री एवं पर्यटक यहां से स्वच्छता का संदेश लेकर
जाएं। 15
जनवरी से चार मार्च 2019 तक आयोजित होने वाले कुम्भ मेले के लिए प्रयागराज मेला अधिकरण दिव्य कुम्भöभव्य कुम्भ स्वच्छता के संबंधित कार्ययोजना पर दिन-रात जुटे
हुए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुम्भ मेला क्षेत्र के काली मार्ग स्थित मीडिया सेंटर का उद्घाटन करने के
बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि कुम्भ मेले में आने वाले संतों एवं श्रद्धालुओं को समुचित सुविधाएं प्रदान
की जाएंगी और किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। मेले में आने वाले
श्रद्धालुओं को ठहराने के लिए मेला प्रशासन की ओर से 20 हजार क्षमता का एक गंगा पंडाल बनाया गया है। इसके पूर्व
पिछले महीने 70 देशों
के राजदूत यहां आकर संगम तट पर अपने-अपने देशों के झंडे फहरा चुके हैं। योगी जी ने
कहा कि कुम्भ मेले को यूनेस्को की ओर से मानवता
की रक्षा के लिए वैश्विक मान्यता मिल चुकी है। श्रीरामाननवीय खाकी अखाड़े के महंत
स्वामी मोहन दास महाराज ने कहा कि योगी शासनकाल में यह कुम्भ मेला ऐतिहासिक हो गया है। ऐसा मेला पूर्व में न तो कभी हुआ और न ही
आने वाला कोई मुख्यमंत्री कर सकेगा। श्री योगी एक संत हैं जो संतों की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं। शास्त्राsं के अनुसार चार विशेष स्थान हैं, जिन स्थानों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता हैöनासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयाग में गंगा के तट पर। सबसे
बड़ा कुम्भ मेला 12 वर्षों के अंतराल में लगता है और छह
वर्षों के अंतराल में अर्द्धकुम्भ मेले का आयोजन होता है। वर्ष 2019 में बारी है प्रयागराज में अर्द्ध कुम्भ की। कलश को कुम्भ कहा जाता है। कुम्भ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का
संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है। देवता-असुर जब
अमृत कलश को एक-दूसरे से छीन रहे थे तब उसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थीं। जहां जब यह
बूंदें गिरी थीं उन स्थानों पर कुम्भ का आयोजन होता है। उन तीन नदियों के नाम हैंöगंगा, गोदावरी और क्षिप्रा। अमृत पर अधिकार को लेकर
देवता और दानवों के बीच लगातार 12 दिन तक युद्ध हुआ था। जो मनुष्यों के 12 वर्ष के समान है, इसलिए कुम्भ भी 12 होते हैं। उनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं। समुद्र मंथन
की कथा के अनुसार कुम्भ पर्व का सीधा
संबंध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्य के एक वर्ष के बराबर है, इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर
वर्ष कुम्भपर्व विभिन्न स्थानों पर
आयोजित किया जाता है। युद्ध के दौरान सूर्य, शनि और चन्द्र आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी। अत उस समय की वर्तमान
राशियों पर रक्षा करने वाले चन्द्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं तो कुम्भ का आयोजन होता है और चारों पवित्र स्थलों
पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है अर्थात अमृत की बूंदें छलकने के समय जिन
राशियों में सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग
के अवसर रहते हैं, वहां कुम्भपर्व का इन राशियों में ग्रहों के संयोग पर
आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न
रहे। इसी कारण इन्हीं ग्रहों की उन विशिष्ट स्थितियों मेंकुम्भ पर्व मनाने की परंपरा है। अमृत की
यह बूंदें चार जगह गिरी थींöगंगा
नदी (प्रयाग और हरिद्वार), गोदावरी
(नासिक),
क्षिप्रा नदी (उज्जैन)
सभी नदियों का संबंध गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारते हैं।
क्षिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से जानते हैं, यहां पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की
जाती है। चलो चलें प्रयागराज इस भव्य अर्द्धकुम्भ मेले में।
-अनिल नरेन्द्र
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