यह कहना है फिल्म अभिनेता
नसीरुद्दीन शाह का। आखिर नसीर को इतना गुस्सा क्यों आया? दरअसल एमनेस्टी इंडिया ने गैर-सरकारी
संस्थाओं के खिलाफ कथित कार्रवाई पर एक जारी किए गए वीडियो में नसीरुद्दीन ने दावा
किया कि भारत में धर्म के नाम पर नफरत की दीवार खड़ी की जा रही है और इन अन्याय के
खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को सजा दी जा रही है। मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली संस्था
एमनेस्टी के लिए 2.13 मिनट के एकजुटता वीडियो में शाह ने कहा
कि जिन लोगों ने मानवाधिकारों की मांग की उन्हें जेल में डाला जा रहा है। उन्होंने
वीडियो संदेश में कहा कि कलाकारों, अभिनेताओं, शोधार्थियों, कवियों सभी को दबाया जा रहा है। पत्रकारों
को भी चुप कराया जा रहा है। निर्दोषों की हत्या की जा रही है। देश भयानक नफरत और कूरता
से भरा हुआ है। अभिनेता ने कहा कि जो इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है उन्हें चुप कराने
के लिए उनके कार्यालयों में छापे मारे जाते हैं, लाइसेंस रद्द
किए जाते हैं और बैंक खाते फ्रीज किए जाते हैं ताकि वह सच न बोलें। हमारा देश कहां
जा रहा है? क्या हमने ऐसे देश का सपना देखा था जहां असंतोष की
कोई जगह नहीं है, जहां केवल अमीर और शक्तिशाली लोगों को सुना
जाता है और जहां गरीबों तथा सबसे कमजोर लोगों को दबाया जाता है? जहां कभी कानून था लेकिन अब अंधकार है। गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय ने
विदेशी लेन-देन उल्लंघन मामले के संबंध में एमनेस्टी इंटरनेशनल
इंडिया के दो ठिकानों पर अक्तूबर में तलाशी ली थी। नसीर एमनेस्टी के अम्बेसडर हैं।
नसीरुद्दीन ईडी द्वारा बेंगलुरु स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल के दफ्तर पर छापेमारी से
सख्त खफा हैं। नसीहरुद्दीन शाह का यह बयान बुलंदशहर हिंसा पर उनकी प्रतिक्रिया के बाद
आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा की चिन्ता होती है।
संविधान का मकसद देश के हर नागरिक को सामाजिक, आर्थिक और सियासी
इंसाफ देना था। वह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में तीन दिसम्बर को कथित गौकशी को लेकर
हुई भीड़ की हिंसा की घटना पर बोल रहे थे। हिंसा में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार
सिंह समेत दो लोगों की मौत हो गई थी। शाह ने अपनी चिन्ताएं जताई हैं और कहा कि मुझे
उम्मीद है कि लोग इस पर ध्यान देंगे। दुनिया को भी जानने की जरूरत है कि क्या हो रहा
है। देश में घुटन का माहौल है या नहीं, इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है पर हमारी न्यायिक व्यवस्था मजबूत और काफी हद तक स्वतंत्र
है। अगर सरकार बदले की भावना से या किसी भी गलत नीयत से कोई कार्रवाई करती है तो हमारे
कोर्ट उसे खारिज कर देते हैं पर अगर सरकारी एजेंसियां सबूत पेश करती हैं तो फिर सरकार
को यूं कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता। हालांकि इसमें भी कोई शक नहीं कि गौकशी जैसे
मुद्दों पर माहौल खराब हुआ है और इस पर सख्त कार्रवाई होनी भी चाहिए। वैसे नसीरुद्दीन
शाह जैसे अभिनेता को इस सियासी पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि अगर आप इस दल-दल पर पत्थर फेंकोंगे तो कीचड़ ही उछलेगा।
-अनिल नरेन्द्र
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