Thursday 10 January 2019

आलोक वर्मा को हटाना असंवैधानिक और गलत फैसला था

सुपीम कोर्ट ने सीवीसी के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि आलोक वर्मा को सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटाने का फैसला गलत था। उसे वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमेटी से सहमति लेनी चहिए थी। जिस तरह सीबीसी ने वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक था। आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के इस फैसले को निरस्त करके सुपीम कोर्ट ने सीबीआई बनाम सीबीआई विवाद को समाप्त करने की कोशिश की है। सुपीम कोर्ट के फैसले  से साफ है कि उसकी कोशिश सीबीआई की विश्वसनीयता को बरकरार रखने की है। उसने संस्था का हित सर्वोपरि रखा है। इस फैसले का एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी निकलता है कि अब यह तय हो गया है कि किसी भी सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल का होगा। इस दौरान अगर उसे कोई हटाना चाहता है तो यह फैसला सिर्प सिलेक्ट कमेटी ही कर सकती है। यानि एक बार सिलेक्ट कमेटी ने डायरेक्टर चुन लिया तो वह दो साल के लिए पक्का है। बेशक सुपीम कोर्ट ने अपने फैसले में आलोक वर्मा को बतौर सीबीआई डायरेक्टर बहाल तो कर दिया पर साथ-साथ यह भी कहा कि वह कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकते जब तक कि उनके मामले में कमेटी कोई फैसला नहीं ले लेती। सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सरकारी फैसले को सुपीम कोर्ट द्वारा निरस्त करने के आदेश से वर्मा को फिलहाल थोड़ी राहत मिल गई हो लेकिन विपक्ष को राजनीतिक रूप से ज्यादा राहत हाथ लगी है। विपक्ष कहेगा कि सीबीआई के दुरुपयोग होने के आरोप की पुष्टि हो गई है। राहुल गांधी फिर कह सकते हैं कि वर्मा राफेल मामले में जांच शुरू करने वाले थे, इसलिए उन्हें रात के दो बजे हटाया गया? लगता है कि अदालत ने संस्थान के रूप में सीबीआई की गरिमा और पतिष्ठा के पश्न को ज्यादा महत्व व वजन दिया है। यानि सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर वर्मा और राकेश अस्थाना को हटाने का सरकारी फैसला गलत था। यही विपक्ष का हथियार भी बन सकता है। दो सीबीआई अधिकारियों के झगड़े के बाद सरकार को पीएम, सीजेआई, नेता विपक्ष की सिलेक्ट कमेटी के बाद मामला ले जाना चाहिए था, पर इसकी जगह सरकार ने खुद सिलेक्ट कमेटी को बाईपास करके खुद फैसला कर लिया जो न केवल गलत था बल्कि असंवैधानिक था। अब आलोक वर्मा शांति से रिटायर हो सकते हैं। इसके बावजूद आलोक वर्मा के पास एफआईआर दर्ज करने से संबंधित आदेश देने और जांच से जुड़े फैसले लेने की पावर बरकरार है। इस फैसले का असर सरकार और बाहर जमीन पर क्या होता है, इसका इंतजार करना पड़ेगा।

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