Wednesday 16 January 2019

आलोक वर्मा को हटाने की प्रक्रिया पर उठे कई सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा बहुमत फैसले से आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर पद से हटाए जाने और बाद में खुद आलोक वर्मा के इस्तीफा देने के फैसले फौरी तौर पर चाहे जितने भी नाटकीय लगें, यह वस्तुत इस संस्था के क्षरण के ही दुखद सबूत तो हैं हीं। साथ-साथ कई सवाल भी खड़े कर गए हैं। डीजी फायर सर्विस का चार्ज लेने से इंकार कर इस्तीफा देने वाले सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा ने कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव को भेजे त्यागपत्र में सरकार पर सवाल खड़े करने वाली भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने त्यागपत्र में कहा कि यह सामूहिक आत्ममंथन का क्षण है। वर्मा ने कहा कि मैंने सीबीआई की साख बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन मेरे मामले में पूरी प्रक्रिया को ही उलटा करते हुए मुझे निदेशक पद से हटा दिया गया। सीबीआई डायरेक्टर पद से आलोक वर्मा को हटाए जाने को लेकर कांग्रेस ही नहीं, शिवसेना ने सरकार की आलोचना की है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एके पटनायक के बयान का हवाला देते हुए वर्मा को बहाल करने की मांग भी की है। कांग्रेस जिन जस्टिस पटनायक के बयान का हवाला दे रही है, उन्हीं की निगरानी में वर्मा पर लगे करप्शन के आरोपों की जांच सीवीसी ने की थी। जस्टिस पटनायक ने कहा है कि आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत नहीं हैं। जस्टिस पटनायक ने शुक्रवार को कहा कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली समिति ने उन्हें हटाने के लिए बहुत जल्दबाजी में फैसला लिया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने एके पटनायक को आलोक वर्मा मामले में सीवीसी जांच की निगरानी के लिए चुना था। कोर्ट द्वारा आलोक वर्मा की सीबीआई निदेशक पद पर बहाली के बाद बीते गुरुवार को नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति समिति ने 21 के फैसले से उनका तबादला कर दिया था। समिति में मोदी के अलावा सुप्रीम कोर्ट जज एके सीकरी और विपक्ष नेता मल्लिकार्जुन खड़गे थे। कांग्रेस नेता खड़गे ने वर्मा को पद से हटाने के खिलाफ विरोध पत्र दिया था। उनका कहना था कि वर्मा को कम से कम एक बार अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए। चयन समिति के तीन सदस्यों में से पीएम मोदी और जस्टिस सीकरी द्वारा सीवीसी जांच के आधार पर आलोक वर्मा को उनके पद से हटा दिया गया और उन्हें गृह मंत्रालय के अग्निशमन विभाग, नागरिक सुरक्षा और होम गार्ड्स का निदेशक नियुक्त किया गया था। जस्टिस पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भ्रष्टाचार को लेकर वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। पूरी जांच सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की शिकायत पर की गई थी। मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीवीसी की रिपोर्ट में कोई भी निष्कर्ष मेरा नहीं है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को दी गई दो पेज की रिपोर्ट में जस्टिस पटनायक ने कहा था कि सीवीसी ने मुझे 9.11.2018 को एक बयान भेजा था जोकि राकेश अस्थाना द्वारा हस्ताक्षरित यह बयान मेरी उपस्थिति में दर्ज नहीं किया गया था। सीवीसी ने जो कहा, वह अंतिम शब्द नहीं हो सकता। अपने लंबे बयान के अंत में जस्टिस पटनायक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मुझे निगरानी का जिम्मा सौंपा था। इसलिए मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और मैंने सुनिश्चित किया कि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत लागू किया जाए। बीते आठ जनवरी को जब सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सरकार के और 23 अक्तूबर के आदेश को खारिज किया था तो आदेश में जस्टिस पटनायक के निष्कर्षों का कोई उल्लेख नहीं किया गया। आलोक वर्मा की इस दलील से सभी सहमत होंगे कि उन्हें सीबीआई निदेशक पद से हटाने के लिए प्राकृतिक न्याय का गला घोंट दिया गया और कायदे-कानून को ताक पर रख दिया गया। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आखिर सरकार को किस बात की घबराहट है? आखिर क्यों सरकार आलोक वर्मा को जबरन हटाकर अपने पसंद के अधिकारी को सीबीआई की जिम्मेदारी देना चाहती है? इस पूरे क्रम में सीवीसी की विश्वसनीयता भी कम हुई है। सीवीसी को रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में 10 बिन्दु बताए हैं। इनमें से छह पूरी तरह गलत पाए गए हैं। बाकी चार बिन्दुओं पर कोई भी सीधा साक्ष्य नहीं है। सैलेक्शन कमेटी से न्याय की उम्मीद की जाती है, पर कमेटी न्याय करने में नाकाम रही। आनंद शर्मा ने कहा कि कमेटी ने आलोक वर्मा पर लगे आरोपों के बारे में उनका पक्ष सुना तक नहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि वर्मा के बारे में सीवीसी की रिपोर्ट में दम होता तो अदालत उस पर कार्रवाई करती। पार्टी का कहना था कि सरकार राफेल विमान सौदे की जांच से डरी हुई थी। इसलिए सरकार ने आलोक वर्मा को 20 दिन भी सीबीआई प्रमुख के पद पर नहीं रहने दिया। मूल बात यह है कि इस केस से सैलेक्शन कमेटी और सीबीआई दोनों की विश्वसनीयता घटी है। सीबीआई की विश्वसनीयता और कार्यकुशलता की पुनर्स्थापना अब जरूरी हो गई है।

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