Saturday 26 January 2019

सवाल चोकसी को एंटीगुआ की नागरिकता मिलने का?

देश के बैंकों को भारी-भरकम चूना लगाने वाले, उन्हें डुबाने वाले आर्थिक अपराधी इतनी आसानी से पहले तो देश से भाग जाते हैं, दूसरे मुल्कों में शरण ले लेते हैं और कुछ तो वहां की नागरिकता लेने में भी सफल हो जाते हैं, यह हमारी समझ से तो बाहर है। ऐसे अपराधियों के खिलाफ सरकार द्वारा सख्त कार्रवाई के दावे जमीनी हकीकत से दूर लगते हैं। यह समझना मुश्किल है कि सार्वजनिक रूप से ऐसे भगोड़ों पर अंकुश लगाने के बजाय कार्रवाई के स्तर पर इतने प्रभावी क्यों नहीं हो पाते। इसका ताजा उदाहरण है पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से करीब 14 हजार कऱोड़ रुपए लेकर चंपत हुए मेहुल चोकसी का। सरकार पिछले कुछ समय से लगातार देश का पैसा लेकर विदेश भागने वालों को नहीं छोड़ने की बात कर रही थी तभी खबर आई कि मेहुल चोकसी ने तकनीकी रूप से भी भारत की नागरिकता छोड़ दी। उसने एंटीगुआ में भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर दिया। कहा जा रहा है कि नीरव मोदी के मामा चोकसी ने प्रत्यर्पण से बचने के लिए भारतीय नागरिकता छोड़ी है। उसने गुयाना स्थित भारतीय उच्चायोग में जाकर भारतीय नागरिकता छ़ोड़ने का संदेश दिया और अपना भारतीय पासपोर्ट जमा करा दिया। मेहुल चोकसी और उसके संबंधी नीरव मोदी ने मिलकर पंजाब नेशनल बैंक से लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग हासिल करके बैंक को भारी चूना लगाया है। सीबीआई ने इस मामले में अदालत में चार्जशीट दायर कर दी है और इंटरपोल के माध्यम से नीरव मोदी और मामा मेहुल चोकसी के विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी कर दिया है। इसके बावजूद यह समझना मुश्किल जरूर है कि एंटीगुआ जैसे छोटे देश की अगर यह हिम्मत है कि वह भारत जैसे विशाल देश के आर्थिक अपराधी को नागरिकता देकर और उसके भारतीय पासपोर्ट को सरेंडर करवाकर प्रत्यार्पण के प्रयास को ठेंगा दिखा सकता है तो इसमें भारत की ही कमजोरी साबित होती है। मेहुल चोकसी को जब पिछले साल एंटीगुआ की नागरिकता मिली थी तो उसे मंजूरी देने में मुंबई के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के पुलिस प्रमाणपत्र का भी योगदान रहा। शायद उसे यह अंदाजा रहा होगा कि जो गड़बड़ियां वह कर रहा है वह एक दिन उजागर होंगी और इससे पहले कोई सुरक्षित ठिकाना ढूंढ लेना चाहिए। सवाल यह है कि हजारों करोड़ की रकम का घोटाला होता है और बैंकों से लेकर सरकारी तंत्र और संबंधित महकमों तक को भनक आखिर क्यों नहीं लगी और फिर अगर इसकी अनदेखी की गई तो इसकी वजह क्या थी? सवाल यह भी उठता है कि नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या जैसे कई कारोबारी इतनी बड़ी रकम डुबाने के बाद कैसे इतनी आसानी से विदेश भाग गए? देश से बाहर जाने वाले हर व्यक्ति की जांच-पड़ताल का जो स्तर होता है उसमें बिना किसी योजना या मिलीभगत से इन सबका भागना इतना आसान नहीं था। यह सत्य है कि मेहुल चोकसी की एंटीगुआ की नागरिकता मिल सकी तो उसमें मुंबई के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के पुलिस प्रमाणपत्र का भी योगदान रहा। आज मेहुल चोकसी या देश का पैसा लेकर फरार हो गए बाकी लोगों को लेकर अगर सरकार को फजीहत झेलनी पड़ रही है तो उन्हें वापस लाने का भरोसा देना पड़ रहा है तो इसके पीछे खुद सरकार की लापरवाही व मिलीभगत या ऐसे लोगों को मिला संरक्षण है। हालांकि एंटीगुआ मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण करने के लिए बाध्य नहीं है, इसके बावजूद आर्थिक अपराधियों के प्रति भारत की चोकसी का एक महत्व तो होना ही चाहिए। भारत सरकार अगर वेस्टलैंड सौदे से दलाल मिशेल को संयुक्त अरब अमीरात से भारत ला सकती है तो एंटीगुआ से लाने में भी चुस्ती दिखानी चाहिए। जाहिर है कि अपने विवादों में स्वयं उलझी सीबीआई इन प्रयासों को तेज करने में अक्षम है। इसके पास न तो पूर्वाकालिक निदेशक हैं और न ही अधिकारियों के पास आपसी विवाद से फुर्सत। अगर समय रहते इन आर्थिक अपराधी भगोड़ों के खिलाफ सख्ती बरती गई होती तो आज न केवल यह गिरफ्त में होते बल्कि देश को हजारों करोड़ का नुकसान उठाने की नौबत नहीं आती।

-अनिल नरेन्द्र

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