Thursday 17 January 2019

क्या भाजपा यूपी में 2014 को दोहरा पाएगी?

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अब बहुत थोड़े से दिन बचे हैं और इसके मद्देनजर अब गठबंधन बनाने के पयास तेज होते जा रहे हैं। लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन के ऐलान से आगामी लोकसभा चुनावों की लड़ाई का अनौपचारिक आरंभ हो गया है। भारतीय जनता पार्टी का रथ रोकने के लिए उत्तर पदेश के दो धुर विरोधी राजनीतिक दल सपा और बसपा साथ आ गए हैं। दोनों ही पार्टियों का पदेश में अपना-अपना ठोस जनाधार है। ढाई दशक के कड़वाहट भरे दौर को पीछे छोड़ते हुए सपा और बसपा ने जो एक-दूसरे का हाथ पकड़ने का फैसला किया है वह सिर्प मोदी को रोकने हेतु किया गया है। मायावती ने पत्रकार वार्ता में कहा कि यह गठबंधन मोदी और शाह की नींद उड़ाने वाला है। यह उनकी भाषा है, बहरहाल इतना तो तय है कि भाजपा के लिए चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। अगर 2014 के लोकसभा एवं 2017 विधानसभा चुनावों के मतों के अनुसार विचार करें तो इन दोनों पार्टियों का संयुक्त मत और भाजपा का मत लगभग बराबर है। अगर ये पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ती तो हो सकता था कि भाजपा के लिए 2014 दोहराना आसान हो जाता। अब चुनौतियां बढ़ गई हैं। मायावती ने कहा कि सपा और बसपा 38-38 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। जबकि कांग्रेस के लिए सिर्प अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ी गई हैं। दोनों मायावती और अखिलेश ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से फिलहाल इंकार किया है। उधर कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह राज्य की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने बलबूते पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि उसने गठबंधन के दरवाजे अब भी खुले रखते हुए कहा कि अगर कोई धर्मनिरपेक्ष पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ चलने को तैयार हो तो उसे अवश्य समायोजित किया जाएगा। पार्टी को लगने लगा है कि सपा-बसपा के साथ गठबंधन नहीं होने के कारण कुछ छोटे दलों को साथ लाकर धर्मनिरपेक्ष मतों के बंटवारे में कमी लाई जा सकती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सपा-बसपा का साथ छूटने से कांग्रेस ने अन्य छोटे दलों की तरफ हाथ बढ़ा दिया है। कांग्रेस के उत्तर पदेश के पभारी गुलाम नबी आजाद ने रविवार को लखनऊ में घोषणा की कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और भाजपा को हराएगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दुबई में कहा कि कांग्रेस के पास यूपी के लोगों को देने के लिए बहुत कुछ है। दुबई में शुकवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आकामक अंदाज और स्टेडियम में मौजूद 50 हजार लोगें की मौजूदगी में जोर देते हुए कहा कि हम यूपी में अपनी पूरी ताकत से लड़ेंगे और लोगों को सरपाइज देंगे। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि कांग्रेस को गठबंधन से अलग रखा गया है तो उन्होंने कहा कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धर्मनिरपेक्ष दल गठबंधन कर सांपदायिक ताकतों को चुनौती देने के लिए कमर कस चुके हैं। कई राज्यों में गठबंधन हो चुका है और कुछ में  इसकी पकिया अभी चल रही है। सपा-बसपा गठबंधन भी उसकी कड़ी का हिस्सा है। मायावती जी और अखिलेश जी का जो गठबंधन अलग लड़कर भी भाजपा को हराने में मददगार साबित होगा। उन्होंने कहा कि हम विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस पूरे दम-खम के साथ चुनाव लड़ेगी और मैं विश्वास दिलाता हूं कि 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। बेशक सपा-बसपा का गठबंधन तो हो गया है पर देखना यह भी होगा कि सीटों के बंटवारे में दोनों पार्टियों ने अपने नेताओं का ध्यान रखा होगा, क्योंकि गठबंधन में जितने अधिक दल शामिल होते हैं उतनी ही सीटें कम हो जाती हैं। कई बार नेताओं का तो मिलन हो जाता है पर कार्यकर्ताओं का मिलन नहीं होता और कभी-कभी एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर भी नहीं होते। सपा-बसपा गठबंधन की चुनौती से पार पाने के लिए भाजपा ने अपनी कमर कस ली है। अपना दल के साथ पाप्त 73 सीटें केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार का मुख्य आधार है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 50 पतिशत की लड़ाई की बात कर रहे हैं, लेकिन कहने और करने में अंतर होता है। हालांकि 1993 में दोनों पार्टियां साथ लड़कर भी भाजपा को साफ  करने में सफल नहीं हुई थी। सीटें लगभग बराबर थीं पर भाजपा को वोट ज्यादा मिले थे। जहां तक 2014 लोकसभा चुनाव की बात है तो भाजपा ने 43.63 पतिशत वोट लेकर 73 सीटें जीती थीं। सपा को 22.35 पतिशत वोट शेयर और सिर्प 5 सीटें हासिल हुई। बसपा को हालांकि 19.77  पतिशत वोट मिले थे और वह अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी। कांग्रेस को 7.53 पतिशत वोट और 2 सीटें हासिल हुई थी। अगर सपा (22.35 पतिशत, बसपा 19.77 पतिशत) के कुल वोट शेयर का जोड़ करें तो यह लगभग 42.12 पतिशत बन जाता है और अगर कांग्रेस का वोट शेयर (7.53 पतिशत) इसमें जोड़ दिया जाए तो कुल योग बन जाता है 49.65 पतिशत। भाजपा के 43.63 पतिशत से यह कहीं ज्यादा बन जाता है। 2014 में मोदी की लहर थी जो अब धीमी पड़ गई है। कहने का तात्पर्य यह है कि उत्तर पदेश का चुनाव परिणाम किसी भी दिशा में जा सकता है। भाजपा जातियों के समीकरणों पर विश्वास करके आगे की रणनीति बनाने में जुट गई है। भाजपा गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव को भूली नहीं है। उसने देख लिया है कि सपा-बसपा अगर वन टू वन फाईट देने में कामयाब हो जाते हैं तो उत्तर पदेश में भाजपा की राह आसान नहीं होगी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अब 80 दिन से कम का समय बचा है जबकि कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि यूपी से इस बार तीन चेहरे होंगे जो दिल्ली के तख्त पर कब्जा करने की तैयारी में हैं। भाजपा में पीएम मोदी के नाम पर एक और बार मुहर लग चुकी है। वाराणसी से वह पुन उम्मीदवार होंगे। मोदी इस बार फिर भाजपा के स्टार पचारक होंगे और पीएम पद के पबल दावेदार। इसके विपरीत सपा-बसपा गठबंधन में अखिलेश ने बसपा पमुख मायावती का नाम पीएम के लिए पेश करके विपक्ष की ओर से मोदी को चुनौती दी है। चर्चा यह भी है कि एक खास दांव के जरिए बबुआ ने बुआ को पीएम का चेहरा पेश किया जबकि उसके पिता मुलायम सिंह यादव सदा से मायावती के विरोधी रहे हैं। उत्तर पदेश से जब हम तीन दावेदारों की बात करते हैं तो उसमें चौथा नाम राहुल गांधी का भी शामिल होगा। वह भी यूपी से ही लड़ते हैं। कुल मिलाकर भाजपा के लिए अपनी 2014 की जीत दोहराने की जबरदस्त चुनौती होगी। देखते हैं कि भाजपा इस चुनौती का क्या तोड़ निकालती है।
-अनिल नरेन्द्र


No comments:

Post a Comment