Saturday, 19 January 2019

तीन साल बाद चुनाव से तीन महीने पहले चार्जशीट

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित तौर पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने के आरोप में तीन साल बाद और लोकसभा चुनाव के तीन महीने पहले जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत 10 लोगों के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है। आरोपियों के खिलाफ ट्रकों में भरकर लाए गए 1200 पन्नों की भारी-भरकम आरोप पत्र दाखिल किया तो शायद ही किसी को पुलिस की इस स्लो मोशन कार्रवाई पर आश्चर्य हुआ। हां आरोप पत्र के टाइमिंग पर जरूर सवाल खड़े हो रहे हैं। छात्र नेताओं के खिलाफ दाखिल आरोप पत्र को कुछ लोग आगामी लोकसभा चुनावों के साथ जोड़कर देख रहे हैं। बेशक इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हाल के वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय परिसर राजनीति का अखाड़ा बनते जा रहे हैं। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में यह कुछ ऐसी गतिविधियां भी हो रही हैं, जिनका अध्ययन-अध्यापन से कोई रिश्ता नहीं है। मसलन नौ फरवरी 2016 को आतंकी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की फांसी को न्यायिक हत्या बताने वाले छात्रों के एक समूह ने साबरमती ढाबे के पास एक कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें कुछ छात्रों ने भारत विरोधी नारे लगाए, ऐसा आरोप पत्र में कहा गया है। कन्हैया कुमार और उमर खालिद ने उन पर लगे आरोपों से इंकार किया है और इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। यह मामला अब अदालत पहुंच चुका है, लिहाजा उनके पास खुद को निर्दोष साबित करने का पूरा अवसर है। चूंकि यह मामला एक आतंकवादी के कथित महिमामंडन और देश की अखंडता को चुनौती देने से जुड़ा है। इसलिए इसकी संवेदनशीलता को समझा जा सकता है। इस सन्दर्भ में 124ए के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश पर भी गौर किया जाना चाहिए, जिसने 2017 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार केस से संबंधित 1962 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले में देशद्रोह को स्पष्ट किया था। इसमें संविधान पीठ ने कहा थाöदेशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्प तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक विद्रोह बढ़े। पुलिस ने आरोप पत्र के साथ कुछ वीडियो भी नत्थी की हैं, जिन्हें वह विरोधी नारेबाजी का साक्ष्य मान रही है। यह सच है कि जेएनयू परिसर में कुछ बाहरी तत्वों ने नारेबाजी की, लेकिन कन्हैया कुमार ने देश विरोधी नारे लगाए हैं, इसका कोई वीडियो पुलिस के पास नहीं है। पुलिस के पास कुछ गवाह हैं जो कन्हैया के नारे लगाने की पुष्टि कर रहे हैं पर क्या पर्याप्त साक्ष्य हैं? पुलिस को अब अदालत में इन साक्ष्यों को पेश करना है और वहां दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।

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