Wednesday 13 November 2019

लोगों की परवाह नहीं तो आपको सत्ता में रहने का भी हक नहीं

प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए बेहद तल्ख लहजे में कहा कि अगर लोगों की परवाह नहीं है तो आपको सत्ता में बने रहने का हक भी नहीं है। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा कि आप ख्वाबों के महलों में बैठकर शासन करना चाहते हैं, आपको जरा भी परवाह नहीं है कि लोग मर रहे हैं। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारें ही पूरी तरह जिम्मेदार हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के मुख्य सचिवों की मौजूदगी में पीठ ने सरकारों से सवाल किया कि आप प्रदूषण से लोगों को यूं ही मरने के लिए छोड़ सकते हैं? क्या देश को 100 साल पीछे ले जाना चाहते हैं? लोकतांत्रिक सरकार से हर कोई बहुत ज्यादा उम्मीद करता है कि वह प्रदूषण पर लगाम लगाने की कोशिश करेगी, पराली जलाने के मुद्दे से निपटेगी। आपको शर्मिंदगी नहीं होती कि उड़ानों तक के मार्ग बदले जा रहे हैं। लोग घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं। कल्पना नहीं कर सकते कि प्रदूषण के चलते लोग किन-किन बीमारियों से जूझ रहे हैं। पीठ ने साफ कहा कि जिसने भी कायदे-कानून तोड़े, उसे बख्शा नहीं जाएगा। पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम व नियंत्रण) प्राधिकरण की याचिका पर पीठ ने तंज भी कसा। पीठ ने बेहतर बुनियादी ढांचे और विकास के लिए विश्व बैंक से आने वाले फंड पर सवाल किया कि स्मार्ट सिटी कहां है? सड़कें क्यों सुधारी नहीं जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सब जानते हैं कि हर साल पराली जलाई जाती है। सरकारें पहले से तैयारी क्यों नहीं रखती? लोगों को मशीनें क्यों नहीं दी जातीं? पता चलता है कि पूरे साल प्रदूषण रोकने को कोई कदम नहीं उठाए गए। आखिर सरकारी मशीनरी पराली जलाने पर रोक क्यों नहीं लग सकती? आखिर राज्य सरकारें किसानों से पराली क्यों नहीं खरीदतीं? आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को प्रदूषण के दमघोंटू प्रदूषण के खिलाफ स्वत संज्ञान लेना ही पड़ा। राजनीतिक शास्त्र का सिद्धांत तो यह कहता है कि प्रजातंत्र में सरकारें जनसरोकार के प्रति राजशाही या सामंतवाद से ज्यादा सक्रिय होती हैं पर भारत में सरकारों की प्राथमिकताएं कुछ अलग दिखती हैं। कानून के अनुसार अगर कोई किसी की हत्या करे तो उसे फांसी या आजीवन कारावास तक की सजा मिलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और शिकागो यूनिवर्सिटी के अनुसार भारत में प्रदूषण पिछले 20 सालों में 69 प्रतिशत बढ़ा जिससे करोड़ों लोगों की आयु 10 साल कम हुई और हर साल एक लाख बच्चों की मृत्यु हुई। लेकिन सरकारें कभी भी इतने बड़े नरसंहार पर चिंतित नहीं हुईं। अगर हर साल देश की राजधानी गैस चैंबर बन जाती है और धीरे-धीरे दबे पांव प्रदूषण लाखों जिंदगियां लील जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसके उपर डाली जाए? यहां तो एक राज्य की सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए हर साल पड़ोसी राज्य को जिम्मेदार ठहरा कर अपना पल्ला झाड़ लेती है।

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