Friday, 15 November 2019

भंवर में महाराष्ट्र ः राष्ट्रपति शासन लगा

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 19 दिनों तक चले सियासी ड्रामे का अंत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने से हुआ। सरकार बनाने का दावा कर रही एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना में आखिरी वक्त तक शर्तें ही तय नहीं हो पाईं। एनसीपी ने मंगलवार सुबह जब राज्यपाल से सरकार बनाने के लिए तीन दिन का समय मांगा तो उन्होंने यह मांग ठुकरा दी। साथ ही राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी। भाजपा और शिवसेना के बीच नई सरकार के गठन को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाने के बाद ही साफ हो गया था कि यह राज्य राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ सकता है। एक बार तो उम्मीद हुई थी कि शायद एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना की गठबंधन सरकार बन जाए पर सूत्रों के मुताबिक तीनों पार्टियां न तो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और न ही यह तय कर पाई कि सरकार में किसके कितने मंत्री होंगे। हालांकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पहले शिवसेना और फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के लिए अपना दावा पेश करने के लिए मंगलवार रात साढ़े आठ बजे तक का समय दिया था, लेकिन उसके पहले ही उन्होंने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। इसके बाद सिफारिश को मंत्रिमंडल और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा। महाराष्ट्र के राज्यपाल के मुताबिक राज्य में सरकार गठन की तमाम कवायदों के बीच भी राजनीतिक गतिरोध बरकरार रहा और दावे के बावजूद शिवसेना समर्थन पत्र नहीं दे पाई। इसके अलावा राकांपा और कांग्रेस पार्टी के बीच भी ऊहापोह की स्थिति बनी रही और विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप सामने आने लगे। संभव है कि राज्यपाल ने सरकार गठन को लेकर संबंधित पार्टियों के ऊहापोह को भविष्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होने का संकेत माना हो, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह उम्मीद थी कि भाजपा के सरकार बनाने में नाकाम रहने के बाद बनती तस्वीर में शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन को मौका दिया जाएगा। अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि राज्यपाल ने विभिन्न पक्षों को समय देने के मामले में इस तरह का अतार्पिक और भेदभावपूर्ण रवैया क्यों अख्तियार किया? खासतौर पर तब जब शिवसेना और राकांपा-कांग्रेस के नेताओं के बीच आपसी बातचीत निर्णायक दौर में थी। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि महाराष्ट्र में मतदाताओं ने जनादेश भाजपा-शिवसेना गठबंधन के पक्ष में दिया था, जिसे कुल मिलाकर 161 सीटें (भाजपा 105, शिवसेना 56) मिली थीं। मगर नतीजे आने के बाद शिवसेना ने मान्य राजनीतिक और लोकतांत्रिक परंपराओं को दरकिनार कर मुख्यमंत्री पद का दावा किया। किसी दूसरे नम्बर के दल द्वारा सरकार बनाने का दावा कोई नई बात नहीं है, जैसा कि कर्नाटक में हाल ही में देखा गया था, जहां कम सीटें प्राप्त करने के बावजूद जनता दल (एस) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार में जनता दल (एस) के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन ध्यान रहे, भाजपा-शिवसेना के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन था। महाराष्ट्र के इस घटनाक्रम ने 2005 के बिहार के विधानसभा चुनाव की भी याद दिला दी, जब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने पर राज्यपाल बूटा सिंह की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा ऐतराज करते हुए कहा था कि निर्वाचित विधायकों को नई सरकार के गठन का मौका दिए बिना राष्ट्रपति शासन लागू करना असंवैधानिक है। एनसीपी नेता शरद पवार ने राष्ट्रपति शासन लगाने पर कहा कि हम दोबारा चुनाव नहीं चाहते। अभी कोई जल्दी नहीं है। सरकार कैसे बनेगी, नीति क्या होगी, जब तक कांग्रेस व एनसीपी के बीच तय नहीं होगा तब तक आगे बढ़ने का कोई मतलब नहीं है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का कहना था कि राष्ट्रपति शासन लागू करना लोकतंत्र और संविधान का मजाक उड़ाने की कोशिश है। हमें न्यौता न देना राज्यपाल की गलती है। एनसीपी से बात किए बिना हम कोई फैसला नहीं लेना चाहते थे। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिला। इसके बावजूद राष्ट्रपति शासन लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उम्मीद है कि राज्य को जल्द स्थिर सरकार मिलेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि हमने सभी को छह महीने का समय दे दिया है। जिसे भी सरकार बनानी है, बनाए।

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