Wednesday, 27 November 2019

अब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनना तय

मंगलवार को महाराष्ट्र के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में शक्ति परीक्षण कराने का समय बुधवार शाम पांच बजे तक निर्धारित किया गया है। शक्ति परीक्षण में अपने साथ समर्थक विधायकों की संख्या न होने और शरद पवार परिवार के दबाव में अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया फिर मुख्यमंत्री पद से देवेंद्र फड़नवीस ने। इस तरह यह निश्चित हो गया कि अब शिवसेना की सरकार एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से बनना तय है। अजीत पवार की राकांपा पार्टी में मौजूदा स्थिति क्या है? क्या वह अब भी वैधानिक रूप से एनसीपी विधायक दल के नेता हैं? इसी एक अहम सवाल के इर्दगिर्द भाजपा और एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना की रणनीति घूम रही है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति को स्पष्ट नहीं किया तो पूरे मामले में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। दरअसल अजीत की बगावत के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को उनकी जगह नए विधायक को विधायक दल का नेता चुना। हालांकि अजीत ने राज्यपाल के समक्ष उस समय पार्टी विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा था जब वह खुद विधायक दल के नेता थे। ऐसे में सवाल यह है कि भावी स्पीकर शपथ से पहले की स्थिति के आधार पर अजीत को विधायक दल का नेता मानेंगे या शनिवार को एनसीपी द्वारा इस पद के लिए नए नेता के चयन को? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर अजीत को विधायक दल का नेता माना जाता है तो शक्ति परीक्षण के दौरान उन्हें ही व्हिप जारी करने का अधिकार होगा। ऐसे में अजीत जिसके पक्ष में मतदान करने का निर्देश विधायकों को जारी करेंगे उसे एनसीपी विधायकों द्वारा नहीं मानने पर इसे व्हिप का उल्लंघन माना जाएगा। जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में सियासी बाजी अजीत के हाथों में होगी जो भाजपा के मुफीद है। बहरहाल एनसीपी का कहना है कि चूंकि पार्टी ने नए सिरे से विधायक दल का नेता चुना है इसकी सूचना राज्यपाल को दी गई है, ऐसे में अजीत को विधायक दल का नेता मानना असंवैधानिक होगा। जबकि भाजपा खेमे का कहना है कि चूंकि सरकार के गठन के दौरान अजीत ही विधायक दल के नेता थे, इसलिए इसमें अचानक बदलाव को स्वीकार करना असंवैधानिक होगा। दिलचस्प पहलू यह भी है कि तमाम खटास के बावजूद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपने बागी भतीजे अजीत के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बचेगी या नहीं, इसका फैसला तो सदन में शक्ति परीक्षण से ही होगा। लेकिन तब तक इंतजार करने की जरूरत शायद न पड़े, उससे पहले अध्यक्ष का चुनाव काफी चीजें स्पष्ट कर सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह सामने आ जाएगा कि देवेंद्र फड़नवीस के पास जरूरी बहुमत है? महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में 54 सीटें एनसीपी ने हासिल की थीं, उससे अलग हुए अजीत पवार को इन्हीं 54 में से 36 विधायकों को विश्वास मत के समय अपने साथ भाजपा के समर्थन के लिए प्रस्तुत करना पड़ेगा। इसके साथ ही वह दो-तिहाई विधायकों को अपने साथ प्रस्तुत कर पाएंगे और दल-बदल कानून के तहत सदस्यता गंवाने से बच सकेंगे। हालांकि अजीत ने खुद को एनसीपी में ही बताकर विभिन्न स्थिति पैदा कर दी हैं। यह साफ नहीं है कि वास्तव में कितने विधायक उनके साथ हैं। आज सारी तस्वीर साफ होने की पूरी-पूरी संभावना है।

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