Tuesday 5 November 2019

आखिर व्हाट्सएप जासूसी किसने, किस मकसद से कराई?

अभिव्यक्ति और निजता के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर तरह-तरह की आशंकाओं के बीच ताजा व्हाट्सएप जासूसी का नया चौंकाने वाला खुलासा बेहद चिन्ता पैदा करने वाला है। दुनियाभर में 1.5 अरब लोग व्हाट्सएप इस्तेमाल करते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि यह हमले खास लोगों को निशाना बनाकर किए गए थे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इजरायली टेक्नोलॉजी से व्हाट्सएप में सेंध लगाकर भारतीय पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी के मामले में अनेक खुलासे हुए हैं। विपक्ष ने तो इसे मुद्दा बनाया ही है, सरकार के लिए भी यह चिन्ता का विषय होना चाहिए। फोन और मोबाइल पर बातचीत टेप करने के वैध व अवैध उदाहरण तो लगातार रहे हैं और इनमें सरकारी एजेंसियों की ही भागीदारी भी रही है। सरकारी एजेंसियां अमूमन इसे देशहित में आतंकी और आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश रखने के लिहाज से जायज ठहराती रही हैं। अदालतें हालांकि बार-बार हिदायत देती रही हैं कि इसके बहाने व्यक्ति की अभिव्यक्ति और निजता के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। ऐसे दौर में व्हाट्सएप भरोसा दिलाता रहा है कि उस पर की गई बातचीत या भेजे गए मैसेज सुरक्षित हैं। लेकिन अब पता चल रहा है कि इजरायली कंपनी एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस के जरिये व्हाट्सएप की बातचीत और मैसेज टेप किया जाता रहा है। इस मामले में और भी रिझाने वाली बात यह है कि नागरिकों की निजता पर हुए हमले की सूचना हमें तब मिली जब खुद व्हाट्सएप ने अमेरिका में इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के खिलाफ केस दर्ज कराते हुए बताया कि इस कंपनी द्वारा डिवेलप किए गए सॉफ्टवेयर के जरिये दुनियाभर में 1400 लोगों के फोन से सूचनाएं उड़ाई गई हैं। फेसबुक के स्वामित्व वाले संदेश भेजने के प्लेटफार्म व्हाट्सएप ने कहा है कि भारत में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर पेगासस के जरिये नजर रखी जा रही थी। यह नजर कौन किसलिए रखेगा इसे समझना मुश्किल नहीं है और अगर ऐसा हुआ है तो यह हमारी सुरक्षा के ख्याल रखने वालों (यानि सरकार) की चूक है। व्हाट्सएप ने भी कहा है कि संबंधित लोगों को जासूसी की सूचना दी है। भीमा कोरेगांव केस में आरोपियों के वकील निहाल सिंह राठौड़, एक्टिविस्ट बेला भाटिया, आनंद व पत्रकार सिद्धांत सिब्बल ने ऐसे संदेश मिलने का दावा किया है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह भारतीय पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी से जुड़े मामले पर स्वत संज्ञान लेकर केंद्र सरकार की जवाबदेही तय करें। जासूसी के मामले में खुलासे के बाद पार्टी ने केंद्र की राजग सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस देश के नेतृत्व का अधिकार खो चुकी है। फिलहाल इस जासूसी के वायरल में जिन तकरीबन 1400 लोगों के नाम आए हैं, उनमें 1200 तो भारत के ही हैं और जरा गौर कीजिए कि भारत में किन लोगों को निशाना बनाया गया है। इसमें ज्यादातर मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, बुद्धिजीवी और पत्रकार हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और बुद्धिजीवी भी ऐसे जो आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के लिए सक्रिय रहते हैं और पत्रकार भी वह जो रक्षा मामलों पर नजर रखते हैं या स्वतंत्र विचारों के लिए जाने जाते हैं। भीमा कोरेगांव मामले और ऐसे ही कई अन्य मामलों को याद करें तो साफ हो जाता है कि शक की सूई किस ओर इशारा करती है। हालांकि भारत सरकार ने व्हाट्सएप से इसकी जवाबदेही मांगी है। लेकिन इजरायली कंपनी का कहना है कि वह इस स्पाइवेयर को सिर्प और सिर्प सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है। ऐसे में सरकार को भी अपनी जवाबदेही स्पष्ट करनी चाहिए। सवाल उठता है कि अगर बौद्धिक, पत्रकारों या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भी निजता और अभिव्यक्ति की आजादी भी सुरक्षित नहीं रहेगी तो हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का क्या होगा? हालांकि कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने आधार से जुड़े फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी में डालकर आधार के इस्तेमाल को सिर्प सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित कर दिया था। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ऐसे अधिकारों का हनन न हो, यह देखना भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है। अभी तक सरकार की ओर से कोई तसल्लीबख्श जवाब नहीं आया है। सरकार को स्पष्ट शब्दों में अपने उपर लग रहे आरोपों और शक की सूई उनकी तरफ घूमने पर जवाब देना ही होगा।

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