Wednesday 27 November 2019

महाराष्ट्र को लेकर सुपीम कोर्ट का दूरगामी ऐतिहासिक फैसला

मंगलवार को संविधान दिवस था। माननीय सुपीम कोर्ट ने इस ऐतिहासिक दिन एक ऐतिहासिक फैसला दिया। अदालत ने महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस ने जिस ढंग से सरकार बनाने का पयास किया और जिस ढंग से राज्यपाल ने उन्हें शक्ति परीक्षण के लिए लंबा समय दिया। उसे सुपीम कोर्ट ने पलट कर भारतीय संविधान की रक्षा ही की है। मंगलवार सुबह सुपीम कोर्ट ने जब सदन को शक्ति परीक्षण का आदेश दिया, शायद उसके बहुत पहले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को यह समझ आ गया था कि उनके लिए नई सरकार के अपने अफसाने को किसी अंजाम तक पहुंचाना अब मुमकिन नहीं है। इसलिए उन्होंने इस्तीफा देने में ही खैर समझी। शपथ लेने के महज 80 घंटे बाद ही जब वह संवाददाता सम्मेलन में अपने इस्तीफे की घोषणा कर रहे थे, तो उनके उपमुख्यमंत्री अजित पवार उससे पहले ही इस्तीफा देकर एक बार फिर पाला बदल चुके थे। महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर महीने भर से जिस तरह की जोड़-तोड़ और गठबंधन वाली गतिविधियां चल रही थीं उन पर मंगलवार को सुपीम कोर्ट के फैसले के बाद अब विराम लग गया है।  सुपीम कोर्ट की बैंच ने सारे विरोधों को दरकिनार कर 27 नवम्बर को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। कोर्ट ने साफ कहा कि विधायकों की शपथ के बाद तुरंत फ्लोर टेस्ट होना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि फिलहाल यह अंतरिम आदेश है। इसका अर्थ यह है कि आने वाले दिनों में भी सुपीम कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई हो सकती है। कोर्ट ने विश्वास मत के पस्ताव पर कही ये बातें ः स्पीकर का चुनाव नहीं होगा। आमतौर पर सबसे वरिष्ठ विधायक ही पोटेम  स्पीकर होता है। शाम को 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट पूरा हो जाना चाहिए। विधायकों की शपथ के तुरंत बाद बहुमत परीक्षण हो। इस फ्लोर टेस्ट का लाइव पसारण होगा। गुप्त मतदान नहीं होगा। सीकेट वैलेट से मतदान कराने से इंकार कर सुपीम कोर्ट ने वोटिंग की पकिया को पारदर्शी रखने की पहल का स्वागत किया। कोर्ट ने इन शर्तों को रखने के अलावा महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक हालात और विधायकों को  लेकर मची खींचतान पर भी कड़ी टिप्पणी की। जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि एक महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है और विधायकों ने अभी शपथ तक नहीं ली है। कोर्ट ने कहा कि सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त न हो, इसके लिए जरूरी है कि अंतरिम आदेश दिया जाए। यही नहीं कोर्ट ने कहा कि विधायकों और न्यायपालिका के अलग-अलग क्षेत्रों का सम्मान किया जाना चाहिए। अदालतों को आखिरी विकल्प के तौर पर ही दखल देना चाहिए। महाराष्ट्र भी एक ऐसा ही मामला है। महाराष्ट्र में जो हुआ वह दर्शाता है कि वह फैसला आखिर में सुपीम कोर्ट में हो यह सूरत किसी भी तरह से ठीक नहीं है। सबसे जरूरी यह सोचना होगा कि सरकार बनाने की पकिया को किस तरह पारदर्शी बनाया जाए ताकि यह सवाल बार-बार न उठे। भारत की राजनीति में ऐसा पहले शायद ही हुआ हो जब विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए किसी राज्य में राजनीतिक दलों ने सारी नैतिकता और मर्यादाओं, परम्पराओं को तार-तार करते हुए विचारधाराओं तक को ताक पर रख दिया और जनादेश का सम्मान नहीं किया। मंगलवार को सुपीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ-साफ कहा कि विश्वासमत हासिल करने में जितनी देरी होगी उतनी ही विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका बढ़ेगी, इसलिए बुधवार शाम तक मुख्यमंत्री सदन में विश्वास मत हासिल करें। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों ही हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ थे कि उनके पास बहुमत है या नहीं और बुधवार शाम तक वह इसका जुगाड़ कर भी नहीं पाएंगे। इसलिए उन्होंने पहले ही इस्तीफा देने में अपनी भलाई समझी। सत्ता हासिल करने के लिए महाराष्ट्र में जिस तरह का खेल चला, वह राजनीति में अवसरवाद और सौदेबाजी की नई मिसाल है। महाराष्ट्र मामले में सुपीम कोर्ट का फैसला राज्यपाल के विवेक और भूमिका पर भी पश्नचिह्न लगता है। इस पूरे घटनाकम में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भाजपा की हर तरह से सरकार बनाने का पयास किया। उसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। इस मसले पर राष्ट्रपति, पधानमंत्री के साथ राज्यपाल के मंसूबों पर भी पश्नचिह्न लगता है। सुपीम कोर्ट ने न केवल महाराष्ट्र में लोकतंत्र की रक्षा की बल्कि संविधान दिवस पर ऐसा फैसला दिया है जो भविष्य में भी सही मार्गदर्शन करेगा।

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