Wednesday, 20 November 2019

देश हित में किया गया फैसला

भारत ने आसियान देशों के पस्तावित मुक्त व्यापार समझौते आरसीईपी यानी रीजनल कॉम्पिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। इसे देश के किसानों और छोटे कारोबारियों के हक में एक बड़ी सफलता की तरह देखा जाना चाहिए। आसियान के दस देशों और उसके छह सहयोगी देशों चीन, जापान, दक्षिण कोfिरया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच इस पस्तावित समझौते के अस्तित्व में आने पर यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता बन जाएगा, जिसके दायरे में तकरीबन पचास फीसदी वैश्विक अर्थव्यवस्था आ जाएगी। इससे ही आरसीईपी के महत्व और उसके न केवल इसमें शामिल होने वाले देशों, बल्कि वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले पभाव को समझा जा सकता है। बैंकाक में हुई बैठक में भारत को छोड़कर 15 देशों ने इस पर वार्ता पूरी कर ली है और भारत के लिए दरवाजे खुले हैं। दरअसल भारत इसमें शामिल होने से पहले अपने हितों को सुनिश्चित करना चाहता है। भारत की आपत्तियां खासतौर से इस बात को लेकर हैं कि इसके मौजूदा स्वरूप के अस्तित्व में आने से 80 से 90 फीसदी वस्तुओं पर आयात शुल्क खत्म हो जाएगा, जिससे चीन अपने सस्ते सामान से भारतीय बाजारों को भर देगा। इससे चीन के साथ व्यापार घाटा और बढ़ सकता है। इस समझौते से बाहर निकलकर पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश हित में बड़ा फैसला लिया है। कांग्रेस ने इसे इस आधार पर अपनी जीत बताई है कि पार्टी इस फैसले के खिलाफ थी। आरसीईपी सम्मेलन के बाद शाम को भारत के विदेश मंत्रालय की सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने बताया कि शर्तें अनुकूल न होने के कारण राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए भारत ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया है। उन्होंने सम्मेलन में पीएम मोदी की ओर से दिया गया बयान भी पढ़ा, जिसमें उन्होंने गांधी जी के जंतर और अपनी अंतरात्मा के कारण यह फैसला लेने की बात कही थी। इस विषय पर टिप्पणी करते हुए पधानमंत्री ने बताया कि भारतीयों खासकर समाज के कमजोर वर्गों के लोगों और उनकी आजीविका पर होने वाले पभाव के बारे में सोचकर उन्होंने यह फैसला लिया है और उन्हें महात्मा गांधी की उस सलाह का ख्याल आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सबसे कमजोर  और सबसे गरीब शख्स का चेहरा याद करो और सोचो कि जो कदम उठाने जा रहे हो, उसका उन्हें कोई फायदा पहुंचेगा या नहीं? भारत में लंबे समय से चिंताएं जताई जा रही थीं। किसान और व्यापारी संगठन ने इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि अगर भारत इसमें शामिल हुआ तो पहले से परेशान छोटे व्यापारी और किसान तबाह हो जाएंगे। निसंदेह आसियान और आरसीईपी में पस्तावित देशों के साथ भारत का रिश्ता दोतरफा है, लेकिन जब तक बाजार की पहुंच और सेवाओं में संतुलन नहीं बनता तब तक इस रिश्ते में मजबूती नहीं आ सकती।

-अनिल नरेन्द्र

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