Friday, 15 November 2019

अब मूडीज ने भारत की रेटिंग नेगेटिव की

अंतर्राष्ट्रीय केडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत को जो आइना दिखाया है, वह देश की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट है और जो बात हम करते रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब है उसकी पुष्टि करती है। आर्थिक सुस्ती को लेकर बढ़ती चिंताओं और कर्ज के आधार को देखते हुए मूडीज इंवेस्टर सर्विस ने भारत की रेटिंग स्टेबल से घटाकर नेगेटिव कर दी है। मूडीज का कहना है कि पहले के मुकाबले भारत की ग्रोथ की रफ्तार और गिरने की संभावना है। कारपोरेट टैक्स में कटौती और जीडीपी ग्रोथ की धीमी रफ्तार को देखते हुए मूडीज का अनुमान है कि मार्च 2020 में खत्म होने वाले वित्त वर्ष के दौरान बजट घाटा जीडीपी का 3.7 प्रतिशत रह सकता है, जिसका टारगेट 3.3 प्रतिशत था। अक्तूबर से लगातार भारत की रेटिंग गिराता चला आ रहा है। अक्तूबर 2019 में मूडीज ने 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया था। पहले मूडीज ने इसके 6.2 प्रतिशत का अनुमान जताया था। इसका मतलब साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की साख संतोषजनक नहीं है। अर्थव्यवस्था को लेकर लंबे समय से जो आशंकाएं उठ रही हैं और समय-समय पर देश-विदेश के अर्थशास्त्राr और वैश्विक वित्तीय संस्थान जिस तरह आगाह करते रहे हैं, मूडीज की रेटिंग उस पर एक तरह से उल्ट है। रेटिंग घटाने के पीछे मूडीज ने जो बड़े कारण गिनाएं हैं उनमें आर्थिक मंदी, बढ़ती बेरोजगारी, ग्रामीण परिवारों पर आर्थिक दबाव, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में बढ़ती नकदी संकट जैसे कई कारण हैं। मूडीज ने सबसे ज्यादा चिंता इस बात पर जताई है कि आर्थिक मंदी से निपटने के लिए सरकार ने पिछले कुछ महीनों में जो कदम उठाए हैं, वे कारगर साबित होते नहीं दिख रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में भारत के आर्थिक परिदृश्य को लेकर जो तस्वीर उभरती है, वह बड़े खतरे का इशारा है और इससे आर्थिक विकास के निचले स्तर पर बने रहने का जोखिम बढ़ सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के लक्षण तो सालभर पहले नजर आने लगे थे, लेकिन सरकार ने तब इसे गंभीरता से नहीं लिया। पर जब इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के लिए जीडीपी के आंकड़े आए, तो पता चला कि जीडीपी वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की साख तय करते समय सबसे पहले रेटिंग एजेंसियां आर्थिक सुधारों के लिए उठाए गए कदमों और देश में मौजूदा आर्थिक हालात पर सबसे ज्यादा गौर करती हैं। हालांकि भारत सरकार अभी भी इसे अस्थायी मानकर चल रही है, पर हालात बता रहे हैं कि यह दौर जल्द खत्म होने वाला नहीं है। देश में निवेश, खपत और बचत का जो संतुलन गड़बड़ा गया है, उससे निपटने के उपाय सरकार को सूझ नहीं रहे। जब देश-विदेश में भारत की आर्थिक परिदृश्य की साख खराब होगी तो निवेश करने आएगा कौन? काम-धंधे तभी चलेंगे और लोगों को रोजगार तभी मिलेगा जब देश में निवेश होगा और वह हो नहीं रहा।

-अनिल नरेन्द्र

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