Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 17th June 2011
अनिल नरेन्द्र
यह इस देश का दुर्भाग्य ही समझा जाए कि कोई भी उस समस्या की बात नहीं करता जो भारत की 90 फीसदी जनता को सीधा प्रभावित करती है। न तो अन्ना हजारे इसकी बात करते हैं और न ही बाबा रामदेव। एक लोकपाल पर अड़ा हुआ है दो दूसरा काले धन को वापस लाने पर। दोनों ही मुद्दों पर कोई प्रभावशाली अमल होने पर वर्षों लग जाएंगे पर जो मुद्दा जनता को खा रहा है उस पर कोई विपक्षी दल भी खुलकर नहीं बोलता। यह मुद्दा है महंगाई का। कीमतों की वृद्धि ने जनता की नाक में दम कर रखा है। पेट्रोल और कई जरूरी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते मई में महंगाई पर बढ़कर नौ फीसदी से ऊपर हो गई है। लेकिन आम जनता को महंगाई की चौतरफा मार के लिए अभी और कमर कसकर रखनी होगी। आने वाले दिनों में डीजल और रसोई गैस के दामों में भी इजाफा होने के आसार हैं। वहीं रिजर्व बैंक ने भी 16 जून को अपनी मौद्रिक समीक्षा में एक बार फिर से मूल दर में इजाफा कर दिया है, जिससे बैंकों का कर्ज और महंगा हो जाएगा। तेल कम्पनियों को हो रहे घाटे से चिंतित पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर डीजल और एलपीजी सिलेंडर के दामों में वृद्धि पर जल्द फैसला करने की गुजारिश की। सूत्रों के मुताबिक तेल मंत्रालय डीजल के दामों में 3-4 रुपये प्रति लीटर और एलपीजी सिलेंडर पर 25-35 रुपये की बढ़ोतरी चाहता है। उसकी केरोसिन की कीमतों में भी आंशिक इजाफा करने की सिफारिश है। मनमोहन सरकार में कोई ऐसा मंत्री नहीं जिसे जनता की भी थोड़ी-सी चिन्ता हो। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने मंगलवार को आगाह किया कि यदि पेट्रोलियम की बढ़ती लागत का बोझ ग्राहकों पर न डाला गया तो इससे `पेट्रोलियम क्षेत्र व्यावहारिक रूप से तबाह हो जाएगा।' कुछ इसी तरह का विचार प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन ने भी व्यक्त किए। रंगराजन ने कहा, `ओएमसीएस तेल विपणन कम्पनियों को भारी नुकसान हो रहा है। अगर डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की गई तो बजट पर भी भार बढ़ेगा।' मुद्रास्फीति फिलहाल करीब नौ प्रतिशत है और इसके लिए मुख्य तौर पर पेट्रोल की असमय कीमतों में बढ़ोतरी को माना जा रहा है।कटु सत्य यह है कि जब से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने हैं उनकी आर्थिक नीतियों ने गरीबों की कमर तोड़ कर रख दी है। उनके इर्द-गिर्द भी ऐसे लोग हैं जो आंकड़ों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर जमीन पर आम आदमी पर क्या गुजर रही है, इसकी किसी को परवाह नहीं। इसी उदारीकरण में अरबों के घोटाले हो रहे हैं। इन तेल कम्पनियों की क्यों नहीं जांच की जाती? इनमें कितनी धांधली है, इनके अनाप-शनाप खर्चों पर क्यों नहीं किसी का ध्यान जाता? सरकारी खपत को क्यों कम नहीं करने की कोशिश की जाती? मनमोहन सिंह अब न केवल अपनी पार्टी के लिए ही बोझ बनते जा रहे हैं बल्कि गरीब जनता के दुश्मन नम्बर वन बन गए हैं। यह कोई घोटाला तो रोक नहीं पाते। जितने घोटाले इनके राज में हुए हैं, किसी अन्य प्रधानमंत्री के राज में नहीं हुए। कांग्रेस को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मनमोहन सिंह उन्हें अगला चुनाव नहीं जिता सकते। इसलिए अगर कांग्रेस अगले चुनाव में फिर से सत्ता में आने की सोच रही है तो बेहतर है प्रधानमंत्री नया चुन लें। मनमोहन सिंह की नीतियों ने आम जनता को तबाह कर दिया है। इनके शासन में उद्योगपतियों की सम्पत्तियां कई गुना बढ़ गई हैं, नौकरशाहों का बोलबाला है। कांग्रेस में और भी तो नेता हैं। उदाहरण के तौर पर रक्षामंत्री एके एंटनी को ही ले लीजिए। वह एक ईमानदार नेता हैं, केरल के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। लेकिन उनके दामन पर कभी दाग नहीं लगा। इस दौर में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार तमाम घपलों-घोटालों के फेर में तार-तार हो गई है। कांग्रेस आला कमान को 2014 के लोकसभा चुनाव की चिन्ता हो रही है। आला कमानों के बीरबलों को लगने लगा है कि अब मनमोहन सिंह के चेहरे को लेकर तीसरी बार सत्ता पाने के लिए दाव लगाना ठीक नहीं होगा। क्योंकि विरोधियों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि मनमोहन सिंह आज तक के सबसे भ्रष्ट सरकार के ईमानदार प्रधानमंत्री हैं। कुछ आलोचक तो और तीखी मार करने लगे हैं। एके एंटनी ने हाल के बयान में कि सत्ता के आसपास तमाम ताकतों का जमावड़ा हो गया है, जो कामकाज में पारदर्शिता की मांग का विरोध करते हैं। आखिर खास लोग सत्ता सुचिता की उम्मीद करते हैं तो क्या गलत करते हैं। इस मौके पर इस टिप्पणी के खास मायने समझे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह तैयारी अगले दौर के लिए है। उस समय कांग्रेस के `मनमोहन' एके एंटनी ही होंगे। वैसे भी वह दस जनपथ के विश्वासपात्र हैं। उनके खिलाफ इतना ही जाता है कि वे ईसाई हैं। लेकिन कांग्रेस के लोग कहते हैं कि एंटनी किसी हिन्दू नेता के मुकाबले ज्यादा शुद्ध हिन्दू संस्कृति को मानने वाले हैं। आप क्या समझे? इतना तय है कि मनमोहन सिंह जिस नौकरशाह प्रवृत्ति के हैं, उसमें आम जनता का भला हेने वाला नहीं और यह महंगाई यूं ही बढ़ती जाएगी, अमीर और अमीर होता जाएगा, गरीब और गरीब। जनता को भारतीय जनता पार्टी से भी निराशा है। क्यों नहीं वह पेट्रोल, डीजल इत्यादि की प्रस्तावित वृद्धि का खुलकर विरोध करते? क्यों नहीं महंगाई को लेकर धरना-प्रदर्शन करते? सरकार को बाद में एक प्रोटेस्ट लेटर देना या बयान देना काफी नहीं है। उसे ऐसा करने से रोकना, महंगाई कम करने के ठोस कदम उठाने पर मजबूर करना भाजपा का पहला एजेंडा होना चाहिए।
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