Sunday, 12 June 2011

अब नॉन पॉलिटिकल मनमोहन सरकार और कांग्रेस पार्टी आमने-सामने

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 12th June 2011
अनिल नरेन्द्र
मुझे मनमोहन सिंह सरकार पर कभी-कभी दया भी आती है कभी निराशा भी। दया इसलिए आती है कि इस सरकार को जो लोग चला रहे हैं वह सभी नॉन पॉलिटिकल (गैर राजनीतिज्ञ) हैं। सबसे ऊपर सोनिया गांधी हैं जो सुपर प्राइम मिनिस्टर हैं और सरकार का रिमोट कंट्रोल हैं। वह नॉन पॉलिटिकल हैं। उनके नीचे हैं प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह जिन्होंने अपनी जिन्दगी में एक भी चुनाव नहीं लड़ा। सोनिया गांधी के मुख्य एडवाइजर अहमद पटेल सरीखे के लोग हैं जो पर्दे के पीछे से फैसले करते हैं, वह भी गैर राजनीतिज्ञ से ही हैं। इसलिए यह सरकार जो भी फैसले करती है उसमें नौकरशाह की बदबू ज्यादा आती है राजनीतिक होने की कम। इसी से निराशा होती है। आप हाल ही में इस सरकार के महत्वपूर्ण फैसले देखिए। चाहे वह अन्ना हजारे का मामला रहा हो, चाहे बाबा रामदेव का। दोनों में भी बड़े बचकाने तरीके से इस मनमोहन सरकार ने मामले को हैंडिल किया। मेरी बात तो छोड़िए अब तो कांग्रेस पार्टी के अन्दर बाबा के प्रकरण को लेकर घमासान छिड़ गया है।
रामलीला मैदान में लगे बाबा रामदेव के योग शिविर को पुलिसिया कार्रवाई के तहत हटाने के बाद कांग्रेस में घमासान छिड़ गया है। इस प्रकरण में अब एक तरीके से कांग्रेस पार्टी और सरकार आमने-सामने आ गए हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और सरकार में मंत्री की कुर्सी सम्भालने वाले कई वरिष्ठ नेता आपस में ही भिड़ गए हैं। सबसे ज्यादा मुखर पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह हैं। दिग्विजय सिंह जितना भला-बुरा बाबा रामदेव को कह रहे हैं, उससे अधिक वे अपनी पार्टी की सरकार के मंत्रियों पर निशाना साध रहे हैं। ताजा आक्रमण उन्होंने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी पर किया है जबकि सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को भूलकर पर्यटन मंत्री सुबोध कान्त सहाय ने सरकार पर निक्रियता का ही आरोप मढ़ दिया है। दिग्विजय ने प्रणब मुखर्जी और केंद्र के तीन मंत्रियों को बाबा से बातचीत करने के लिए एयरपोर्ट जाने पर कड़ा एतराज जताया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि प्रणब ने तो बाबा को लेकर अपना पूरा भविष्य ही दांव पर लगा दिया। सरकार की आलोचना करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि केंद्र में प्रणब जब से मंत्री हैं, तब रामदेव पैदा भी नहीं हुए थे। मंत्रियों को एयरपोर्ट पर जाकर बाबा को मनाने के बारे में अपनी नाखुशी जताते हुए उन्होंने कहा कि यदि वे मंत्री होते तो कभी रामदेव को नहीं मनाते। यही नहीं, सरकार में कांग्रेस के दिग्गज मंत्रियों के स्वर भी पार्टी के साथ हो लिए हैं। सुबोध कान्त सहाय ने मुख खोला और कहा कि रामलीला मैदान में बाबा के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई पर स्पष्टीकरण में सरकार की तरफ से शिथिलता बरती गई। हालांकि सहाय उन मंत्रियों में शामिल थे, जो सरकार की तरफ से बाबा के साथ बातचीत कर रहे थे। सहाय ने कहा कि जब पहले से ही सरकार की तरफ से तय हो चुका था कि यदि अनशन से बाबा अपने समर्थकों के साथ नहीं हटे, तो उन पर पुलिसिया कार्रवाई की जाएगी। कार्रवाई होने के बाद गृहमंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा चार दिन बाद स्पष्टीकरण दिया गया। इससे जनता में गलत संदेश गया और इससे सरकार और पार्टी, दोनों की छवि खराब हुई।
कांग्रेस के मुख पत्र `कांग्रेस संदेश' तक ने चार मंत्रियों के बाबा को हवाई अड्डे पर रिसीव करने पर कड़ा एतराज जताया है। पार्टी के मुख पत्र होते हुए भी उसने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि क्या चार वरिष्ठ मंत्रियों का हवाई अड्डा जाना जरूरी था? अनिल शास्त्री इस पत्रिका के सम्पादक हैं। सम्पादकीय में कहा गया है कि सरकार का यह कर्तव्य है कि वह नागरिक समाज की मांगों पर अनुकूल रुख अपनाए, लेकिन यह काम इस तरीके से होना चाहिए कि निर्वाचित सरकार की गरिमा एवं उसके न्याय सम्मत अधिकारों का हनन नहीं हो। सम्पादकीय के मुताबिक किसी विशिष्ठ समूह को सड़कों पर संवैधानिक मामलों के बारे में फैसला करने की इजाजत नहीं दी जा सकती और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को यह समझना होगा कि कानून निर्माण की कुछ खास प्रक्रिया होती है। `कांग्रेस संदेश' के सम्पादक अनिल शास्त्राr हैं और इसके सम्पादक मंडल में सलमान खुर्शीद और सरबजीत सिंह भी शामिल हैं। दूसरी ओर दिग्विजय के बयान से कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। हवाई अड्डे के बारे में मंत्रियों की मजबूरी गिनाते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सरकार को रामदेव के दिल्ली आने की सूचना थी और इससे पहले ही उन्हें अनशन नहीं करने के लिए मनाने पर जुटी थी। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल और पर्यटन मंत्री सुबोध कान्त सहाय रामदेव से फोन पर सम्पर्प में थे पर दिल्ली आने से ठीक पहले रामदेव से फोन पर सम्पर्प नहीं हो पा रहा था। जैसे ही सम्पर्प हुआ तब तक रामदेव दिल्ली हवाई अड्डे पहुंच गए और उनसे कई मुद्दों पर बात करने के लिए मंत्रियों ने हवाई अड्डे के वीआईपी लान में बात करना मुनासिब समझा।
कांग्रेस में बढ़ रही खिलाफत का सिलसिला अब प्रदेशों तक पहुंच गया है। प्रादेशिक नेताओं ने भी अब पार्टी रणनीतिकारों को पत्र लिखकर मांग करनी शुरू कर दी है कि पार्टी के जो नेता बाबा रामदेव से जुड़े हैं, उन्हें संगठन व सरकार में महत्व नहीं मिलना चाहिए। उज्जैन से कांग्रेस सांसद प्रेम चन्द गुड्डू ने राज्य प्रभारी व पार्टी महासचिव वीके हरिप्रसाद को पत्र लिखकर यह मांग की है। केंद्रीय मंत्री कमलनाथ का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि जो लोग बाबा रामदेव के चरण धोते हैं, वे सरकार में क्यों बैठे हैं? पार्टी को इस पर गम्भीरता से सोचा चाहिए। वहीं कांग्रेस पार्टी के मुख पत्र `कांग्रेस संदेश' में छपे सम्पादकीय पर भी पार्टी ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है। कांग्रेस महासचिव और मीडिया विभाग के अध्यक्ष जनार्दन द्विवेदी ने सम्पादक को चेतावनी दी है कि यह पत्रिका कांग्रेस का मुख पत्र है, यह बात उन्हें याद रखनी चाहिए और इसमें अपने विचार सम्पादक को थोपने का अधिकार नहीं है।
केंद्र सरकार के मिस्टर क्लीन-चेहरे एके एंटनी का पारदर्शिता पर गूढ़ बयान, प्रणब दा की आर्थिक मोर्चे पर घेराबंदी, चिदम्बरम की अचानक रामदेव के बहाने अपनी दृढ़ छवि पेश करने की कोशिशöये चन्द उदाहरण हैं जिनसे कांग्रेस पार्टी में भारी असंतोष का अहसास होता है। दरअसल पार्टी और सरकार, दोनों बाबा रामदेव प्रकरण को लेकर असहज स्थिति में पहुंच चुकी हैं। बाबा रामदेव पर अगली कार्रवाई भी इसी उधेड़बुन के बीच फंसी हुई है। प्रणब पर गुरुवार को एक अखबार में छपी खबर को लेकर भी पार्टी और सरकार में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। सरकार के अन्दर विरोधाभास सामने आ गया है। बाबा की हालत चिन्ताजनक स्थिति में पहुंच गई है। उन्हें जबरन आईसीयू में भर्ती कराया गया है। रामलीला मैदान में पुलिस लाठीचार्ज से प्रभावित राजबाला की हालत अत्यंत गम्भीर हो गई है। सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वह अगला कदम उठाए तो क्या उठाए? बाबा को अगर कुछ हो गया तो क्या होगा? अन्त में मुंबई में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने प्रश्न किया है कि चार जून को पुलिस रामलीला मैदान पर लाठीचार्ज के खिलाफ प्रिन्स राहुल गांधी धरने पर क्यों नहीं बैठे? जब वह भट्टा-पारसौल में पुलिस अत्याचार के खिलाफ धरना दे सकते हैं तो रामलीला मैदान कांड पर क्यों नहीं?
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