Sunday, 19 June 2011

क्या इतने अनुकूल माहौल का भाजपा फायदा उठा पाएगी?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th June 2011
अनिल नरेन्द्र

किसी भी विपक्षी दल के लिए न तो यूपीए सरकार से बेहतर और कोई सत्तारूढ़ सरकार हो सकती थी और न ही इतना खराब राजनीतिक माहौल जितना मनमोहन सिंह सरकार ने कर दिया है। कोई भी विपक्षी दल ऐसे राजनीतिक माहौल का इंतजार करता रहता है जब इतनी विवादास्पद केंद्र सरकार हो जितनी यह सरकार है। इस सरकार ने देश को क्या-क्या नहीं दिया? बढ़ती कीमतें, महंगाई, एक के बाद एक घोटाला, आतंकवाद जैसे ज्वलंत मुद्दे पर ढुलमुल नीति, नक्सलियों से रणनीति व इच्छाशक्ति का अभाव, तानाशाह रवैया इत्यादि इत्यादि। कहने का मतलब है कि भारतीय जनता पार्टी जो प्रमुख विपक्षी दल है वह इससे बेहतर राजनीतिक वातावरण की उम्मीद नहीं कर सकती थी। खुद भाजपा नेता अरुण जेटली कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि नौकरशाह चला रहे हैं। आजादी के बाद की इतनी भ्रष्ट, निकम्मी और कूर सरकार जनता ने पहले कभी नहीं देखी थी। यह सरकार अपने पांच वर्ष पूरे नहीं करेगी क्यों जनता अब कांग्रेस सरकार को फूटी आंख भी देखना नहीं चाहती है। यह कड़ी टिप्पणी राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरुण जेटली ने प्रदेश भाजपा द्वारा आयोजित संघर्ष के एक वर्ष कार्यक्रम में हाल में कही। जेटली ने कहा कि भाजपा को आंदोलन करने का शौक नहीं है पर मनमोहन सिंह सरकार रोज एक के बाद एक ऐसी गम्भीर गलतियां कर रही है कि भाजपा को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। देश को ऐसा प्रधानमंत्री चला रहा है जो अदृश्य है। पर्दे के पीछे सत्ता की बागडोर किन्हीं अन्य हाथों में है, इतिहास में ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता, जहां सो रहे हजारों निहत्थे लोगों पर रात के अंधेरे में पुलिस टूट पड़ती हो, सोते हुए महिलाओं और बच्चों पर लाठियां बरसाई जाएं, आंसू गैस के गोले दागे जाएं। बन्द पंडाल में कहीं भी आंसू गैस के गोले नहीं छोड़े जाते हैं। जेटली ने इस सरकार को हैडलैस चिकन कहा। इसका मतलब है कि इस सरकार का कोई सिर-पैर नहीं, कोई वालीवारिस नहीं है।
मनमोहन सिंह सरकार का जो खाका जेटली साहब ने खींचा है वह बहुत हद तक सही है पर सवाल यह उठता है कि जब मनमोहन सिंह सरकार की इतनी बुरी दशा बन गई है तो इसका राजनीतिक लाभ क्या प्रमुख विपक्षी दल के नाते भारतीय जनता पार्टी उठा पा रही है? हमने देखा कि भाजपा विपक्ष में होते हुए भी विपक्ष की भूमिका सही तरीके से नहीं निभा पाई। मैं यूपीए-1 की बात कर रहा हूं। तब भाजपा नहीं वाम दल प्रमुख विपक्ष की भूमिका बेहतर निभा रहे थे। यूपीए-2 में तो कामरेड मौजूद नहीं और सारा विपक्षी दारोमदार भाजपा पर ही आ जाता है पर ईमानदारी से भाजपा नेताओं को प्रश्न करना होगा कि क्यों नहीं वह स्थितियों का फायदा उठा पा रहे हैं? क्या कारण हैं कि इतना अनुकूल माहौल होने के बावजूद आज जनता में वह इतना विश्वास पैदा नहीं कर पा रहे कि जनता उन्हें केंद्र में सत्ता सौंपने की हिम्मत जुटाए? इसमें कोई शक नहीं कि राज्यों में भाजपा सरकारें अच्छा काम कर रही हैं, उनकी छवि भी अच्छी है और जनता को कहने को वह कह सकते हैं कि हम केंद्र में भी ऐसा शासन दे सकते हैं तावक्ते कि आप हमें मौका दें पर राज्यों में अगर भाजपा सरकारें अच्छा काम कर रही हैं तो उसका मुख्य कारण है मजबूत नेतृत्व। हर राज्य में एक मजबूत मुख्यमंत्री है और उसी मुख्यमंत्री के रहते, उसकी वजह से ही राज्य में अच्छा शासन चल रहा है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी, मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान, उत्तराखंड में रमेश चन्द्र पोखरियाल निशंक इत्यादि। इनकी व्यक्तिगत छवि और दृष्टि, कारगुजारी ही अच्छे शासन की प्रमुख वजह है न कि केंद्रीय नेतृत्व। केंद्र में तो भाजपा नेतृत्व न के बराबर है। दुःख से कहना पड़ता है कि यह दूसरी पंक्ति के युवा नेता आपस में ही एक-दूसरे की काट करने से नहीं बाज आते। न तो इनकी नजरों में पार्टी का कोई महत्व है और न ही इन्हें इस बात की परवाह है कि कार्यकर्ता क्या सोचता है, जनता की तो बात छोड़ो। इनके अपने-अपने निजी एजेंडे पार्टी एजेंडे से ऊपर हैं। निजी महत्वाकांक्षाएं संगठित ढंग से काम करने में आड़े आ रही है। यही वजह है कि इतना अच्छा माहौल होने के बावजूद आज जनता में यह वह विश्वास पैदा नहीं कर पा रहे जो करना चाहिए था। अटल जी आडवाणी जी के नेतृत्व में भाजपा ने सुनहरा युग देखा। उनके रहते पार्टी, पार्टी लगती थी, उनकी अपनी छवि थी, कार्यकर्ताओं से वह जुड़े थे, जनता की नब्ज को समझते थे पर आज का नेतृत्व अपने एयरकंडीशन कमरों में ही अपना गुणगान कर अंक बढ़ाता रहता है।
दुःख की बात है पर सच यही है कि आज भारत की जनता का सभी राजनीतिक दलों से, नेताओं से विश्वास उठ चुका है। उसकी नजरों में सभी एक समान हैं यानि कि हमाम में सब नंगे हैं। वह भाजपा से जानना चाहती है कि जो समस्याएं आज देश के सामने मुंह फाड़ रही हैं उनसे अगर उन्हें मौका मिले तो वह कैसे निपटेंगे? वह जानना चाहती है कि भाजपा नेतृत्व कौन-कौन से ऐसे कदम उठाएगा जिससे घोटाले रुकें, कीमतों पर नियंत्रण हो, महंगाई कम हो, बेरोजगारी घटे, कानून-व्यवस्था सुधरे, बिजली-पानी जैसी ज्वलंत समस्याओं का समाधान हो? क्यों जनता इन पर ज्यादा विश्वास करे? यह है कि कुछ प्रश्न जिनका मेरी राय में भाजपा नेतृत्व को जवाब देना होगा। जनता को बताना होगा कि अगर आप हमें सत्ता में लाएं तो हम आपकी इन समस्याओं का ऐसे समाधान करेंगे पर इसके लिए सबसे पहले भाजपा को अपना घर साधना होगा। उसे सही नेतृत्व तय करना होगा। अपनी प्राथमिकताएं सही करनी होंगी। अब तो भाजपा यह भी नहीं कह सकती कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनके कामकाज में दखलंदाजी करता है। संघ जब से मोहन भागवत के हाथ आया है, राजनीति से कुछ हद तक अलग हो गया है, अब संघ रोजमर्रा के मामलों में दखल नहीं देता। हो सकता है कि भाजपा के कुछ नेताओं को मेरे विचार अच्छे न लगें पर उन्हें समझना चाहिए कि मैं जो कुछ कह रहा हूं यह एक तरह से जनता की आवाज है और आज बहुत से लोग यह चाहते हैं कि भाजपा पहले अपना घर ठीक करे ताकि जल्द आने वाले मौके का पूरा-पूरा फायदा उठा सके।
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