Saturday 11 June 2011

सोती राजबाला को इस हालत में पहुंचाने का जिम्मेदार कौन?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 11th June 2011
अनिल नरेन्द्र
बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर शनिवार आधी रात के बाद बर्बर पुलिस कार्रवाई का आर्डर किसने दिया था? देश जानना चाहता है कि वह कौन व्यक्ति था जिसने निहत्थे, भूखे, सोते हुए बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों पर दिल्ली पुलिस को डंडे बरसाने व खदेड़ने का हुक्म दिया था? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। मनमोहन सिंह कहते हैं कि इस अभियान को अंजाम देना दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन ईमानदारी की बात है कि कोई और विकल्प नहीं था। उन्होंने रामलीला मैदान में रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन के खिलाफ मध्यरात्रि के समय की गई पुलिस कार्रवाई के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में यह बात कही। वहीं हमारे गृहमंत्री पी. चिदम्बरम जी कहते हैं कि 25 मई को स्वाभिमान ट्रस्ट से लिखित रूप में पुष्टि की थी कि रामलीला मैदान में आवासीय योग शिविर के सिवाय कोई और कार्यक्रम न होगा, लेकिन इसके बावजूद रामदेव ने एक जून को रामलीला मैदान में घोषणा की कि वह 4 जून से आमरण अनशन करेंगे। जब अनुमति की शर्तों का उल्लंघन होते देखा गया तो इस अनुमति को रद्द करके यह कार्रवाई की गई। चिदम्बरम के अनुसार पुलिस ने न्यूनतम हानि को ध्यान में रखकर यह कार्रवाई की। उन्होंने यह भी कहा कि बाबा रामदेव के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी का हाथ है और यह एक राजनीतिक आंदोलन था। हम श्री चिदम्बरम की दलीलों से सहमत नहीं हैं। मान भी लें कि बाबा रामदेव के पीछे संघ समर्थक भी थे और यह एक राजनीतिक आंदोलन था तो क्या? क्या संघ देशद्रोही है? क्या भ्रष्टाचार मुद्दा, मुद्दा नहीं रह जाता अगर संघ या भाजपा कहे? महत्वपूर्ण मुद्दा है न कि कौन किसके पीछे है। रही बात पुलिस की न्यूनतम हानि पर ध्यान रखने की तो श्रीमान आप जीबी पन्त अस्पताल जाकर उस अभागी राजबाला का हाल देखिए जो जीवन-मौत के बीच संघर्ष कर रही है। गुड़गांव निवासी राजबाला (50 वर्ष) शनिवार को पुलिस कहर का शिकार हुई थी। वह पेरेलाइज हो चुकी है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा हुआ है। डाक्टरों ने वेंटिलेटर हटाने का प्रयास किया था पर फिर लगाना पड़ा क्योंकि राजबाला का सांस फूलने लगा था। आज भी पता नहीं कितने लोग लापता हैं, जिनके रिश्तेदार
दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं उन्हें ढूंढने के लिए। माननीय चिदम्बरम जी कृपया आप कुछ प्रश्नों का उत्तर दें। अगर सरकार को यह मालूम था कि बाबा रामदेव के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी थी तो उन्होंने 4 जून तक बाबा से बातचीत क्यों जारी रखी? आपने बाबा को हवाई अड्डे पर ही क्यों नहीं रोक दिया जबकि आपको यह मालूम था कि बाबा क्या करने दिल्ली आ रहे हैं? अगला सवाल है कि आपकी सरकार के चार मंत्री बाबा को लेने हवाई अड्डे क्यों गए थे? हमारी बात तो छोड़िए आपके महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी प्रश्न किया है कि मनमोहन सरकार के दूसरे नम्बर के मंत्री प्रणब मुखर्जी बाबा को लेने हवाई अड्डे क्यों गए थे? चलिए इसे भी छोड़िए। आप बताएं कि कपिल सिब्बल क्लैरिज होटल में इतने घंटे बाबा को क्या समझाने की कोशिश कर रहे थे? 3 जून को वह घंटों होटल के कमरे में बाबा से बातचीत कर रहे थे। क्या कपिल सिब्बल बाबा को डरा रहे थे कि हम यह कर देंगे अगर तुमने हमारी बात नहीं मानी और जब बाबा ने आपकी बात नहीं मानी तो आपने उन्हें सबक सिखाने का फैसला कर लिया और नतीजा हुआ लाठीचार्ज? आपकी सरकार ने बाबा को 20 दिन के योग शिविर की क्यों इजाजत दी जबकि बाबा के पोस्टरों, बैनरों, होर्डिंग्सों में साफ लिखा था कि वह काले धन, भ्रष्टाचार और सरकार के खिलाफ अनशन करेंगे? पुलिस एफआईआर कहती है कि रामलीला मैदान में 25000 लोगों के आने की उम्मीद थी, जब आपको यह अनुमान था तो आपने शुक्रवार या शनिवार को आज्ञा को रद्द क्यों नहीं किया? अब बात करते हैं उस रात की पुलिस कार्रवाई की। क्या यह सही है कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने आपसे यह कहा था कि रात को सोते लोगों पर लाठीचार्ज करना, आंसू गैस छोड़ना सही नहीं होगा, खासकर जब वहां महिलाएं, बच्चे और पुरुष हैं? उन्होंने आपसे अनुरोध किया था कि मुझे कुछ समय दीजिए मैं कल (रविवार) को दिन में बाबा को रणजीत होटल किसी बहाने बुलाकर कस्टडी में ले लूंगा और फिर हम अनशन पर बैठे लोगों को शांति से हटने को कहेंगे और बिना बल प्रयोग करके रामलीला मैदान खाली करवा लेंगे पर आपने या आपके साथी मंत्री ने यह नहीं माना और कहा कि हमें दो घंटे के अन्दर रामलीला मैदान खाली चाहिए चाहे जो कुछ भी करना हो?
दिल्ली पुलिस ने क्यों आठ टीयर गैस सैल पंडाल के अन्दर मारे जबकि उन्हें मालूम था कि इससे आग लग सकती है और लग भी गई। अगर इस आग में महिलाएं, बच्चे व बुजुर्ग लपेट में आ जाते तो क्या होता? फिर आपने बत्ती भी बन्द कर दी और अंधेरा कर दिया। क्या पुलिस को इतना भी ध्यान नहीं आया कि अंधेरे में लोग भगदड़ में दबकर मर सकते हैं? आपने आंदोलनकारियों को खदेड़ दिया जबकि आपको यह मालूम था कि दिल्ली का रैड लाइट एरिया बहुत करीब है और वहां पर कई जवान महिलाएं भी थीं। दिल्ली पुलिस ने भी वहशियाना बर्ताव किया। अगर उसे पंडाल खाली करने का आदेश दिया भी गया था तो उसे भी थोड़ी मानवता दिखानी चाहिए थी। पिछले दिनों मिस्र में जब जनता सड़कों पर हुस्नी मुबारक के खिलाफ उतर आई थी तो मुबारक ने सेना और पुलिस को आदेश दिया था कि आंदोलनकारियों पर फायर करो और उन्हें चौक से हटाओ पर सेना व पुलिस ने साफ मना कर दिया था कि हम अपने लोगों पर गोलियां नहीं चलाएंगे। पुलिस भी कह सकती थी कि हम शांतिपूर्वक ढंग से जनता को वहां से हटाएंगे पर उन्होंने तो ऐसा बर्ताव किया जिससे सारा देश चौंक उठा। अब उस दिन के सबूत मिटाने के लिए विभिन्न चैनलों से फुटेज मांग रहे हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें जवाब देना होगा कि आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी थी जिसके चलते निहत्थे, भूखे, सोते लोगों पर लाठियां बरसाईं, आंसू गैस छोड़ी? दिल्ली पुलिस के एक अफसर ने भी माना कि वरिष्ठ पुलिस अफसरों के आदेश के बावजूद कई बार मौके पर मौजूद अफसरों और जवानों को अपने विवेक का इस्तेमाल करना पड़ता है। पुलिस को मानवाधिकार तथा जमीनी हरकत को ध्यान में रखकर कार्रवाई करनी पड़ती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार ने पुलिस से अनुरोध किया कि उन्हें किसी भी कार्रवाई के दौरान संयम बरतना चाहिए और आंख-कान बन्द करके आदेशों का पालन नहीं करना चाहिए।
राजघाट पर जब अन्ना हजारे एक दिन के अनशन पर बैठे थे तो वहां आंदोलनकारियों ने जमकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कपिल सिब्बल के खिलाफ नारे लगाए। जब अरविन्द केजरीवाल भाषण कर रहे थे तो बीच में ही जनता ने मनमोहन सिंह मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। केजरीवाल रुक गए। उन्होंने फिर भाषण शुरू किया। इस बार कपिल सिब्बल के खिलाफ नारे लगने आरम्भ हो गए, केजरीवाल फिर रुक गए। तीसरी बार फिर शुरू किया। कुछ छात्रों ने अपने हाथों में पोस्टर ले रखे थे जिनमें मनमोहन सिंह को रावण दिखाया गया था जिसमें ए. राजा, सुरेश कलमाड़ी, कनिमोझी, शरद पवार और प्रणब मुखर्जी के सिर बने हुए थे। उन सबसे ऊपर सोनिया गांधी का चेहरा बना हुआ था। इससे ही पता चलता है कि जनता में इस सरकार के प्रति कितना रोष है। रामलीला मैदान में लाठीचार्ज का कसूरवार आखिर कौन है? हो सकता है कि गृह मंत्रालय दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट सीपी या डीसीपी की कुर्बानी देकर अपना पल्ला झाड़ ले पर यह इंसाफ नहीं होगा। इसके लिए गृहमंत्री खुद जिम्मेदार हैं और पी. चिदम्बरम को इसकी जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी।
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