Saturday 25 June 2011

नितिन गडकरी को धूल चटाने में जुटे उन्हीं के पार्टी के नेता


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th June 2011
अनिल नरेन्द्र
एक हफ्ते के ड्रामे के बाद आखिर भाजपा नेता श्री गोपीनाथ मुंडे मान ही गए। कहा जा रहा है कि लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से मिलने के बाद महाराष्ट्र में भाजपा के चेहरे और लोकसभा में पार्टी के उपनेता ने अपने तेवर नरम कर लिए। इसके साथ ही पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ मुंडे की बगावत से उपजे संकट के फिलहाल टलने का रास्ता साफ हो गया। एक बार फिर इससे साबित हो गया कि भाजपा जो एक समय अपने आपको पार्टीविद् व डिफरैंस कहती थी वह कितनी नीचे आ चुकी है और दूसरी पार्टियों की तरह बनकर रह गई है। गोपीनाथ मुंडे इतने महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्वपूर्ण है पार्टी में अनुशासन। गोपीनाथ मुंडे ने क्या-क्या नहीं किया? उन्होंने खुलकर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को गाली दी। पहले शिवसेना में जाने का प्रयास किया, वहां से उनके लिए दरवाजा बन्द था, फिर कांग्रेस में घुसने की कोशिश की। मुंडे हैं तो प्रमोद महाजन के बहनोई, इसलिए सौदेबाजी में तो अपने आपको माहिर समझते हैं। कांग्रेस से उन्होंने आने की शर्त रखी। मुझे कैबिनेट का दर्जा चाहिए। रिपोर्टों के अनुसार वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल से और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से भी मिले। कांग्रेस ने उलटा शर्त रख दी कि आप पहले भाजपा की टिकट पर बीड लोकसभा सीट से त्यागपत्र दें और बतौर कांग्रेस उम्मीदवार वार्ड इलैक्शन जीतें फिर आपको मंत्री बनाने की बात सोची जाएगी। गोपीनाथ मुंडे इसके लिए शायद तैयार नहीं थे। वह चाहते थे कि उन्हें पृथ्वीराज चव्हाण की खाली हुई पृथ्वीराज चव्हाण की राज्यसभा सीट दी जाए। जब कांग्रेस से लात पड़ी तो मुंह बचाने के लिए मुंडे ने वापस आने का रास्ता ढूंढना आरम्भ कर दिया। यहां सुषमा स्वराज काम आ गईं। चूंकि मुंडे ने नितिन गडकरी को खुली चुनौती दी थी इसलिए भाजपा के एक गुट का उन्हें गुप्त समर्थन मिल रहा था। यह गुट अध्यक्ष नितिन गडकरी को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। भाजपा का आज हाई कमान क्या है? कौन है हाई कमान? कांग्रेस में तो सोनिया गांधी जो पार्टी अध्यक्ष हैं वही हैं हाई कमान। उनके फैसले को कोई नहीं टाल सकता। अच्छे अच्छों को आंखें दिखाने पर बाहर का रास्ता दिखाया गया है पर भाजपा में हिसाब उलटा ही है। अध्यक्ष को गाली निकालो और हीरो बनो। भाजपा को मजबूत करने में जुटे गडकरी को पार्टी के अन्दर ही एक गुट रोकना चाहता है ताकि वह पार्टी में अपनी पकड़ न बना पाएं। महाराष्ट्र की राजनीति में उलझाकर भाजपा की यह लॉबी गडकरी को कमजोर अध्यक्ष साबित करने में जुटी है जिससे वह बड़े फैसले न ले सकें। मुंडे ने भाजपा में बने रहने का शंखनाद नहीं किया बल्कि गडकरी के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए एक चाल चली है। भाजपा में यह लॉबी त्रस्त चल रही है। गडकरी के भाजपा में पुराने लोगों को लाना उन्हें रास नहीं आ रहा। गडकरी ने हाल ही में अपने कई इंटरव्यू में जो कड़ा संदेश दिया उससे भाजपा की दूसरी पंक्ति के नेता परेशान हैं। गडकरी ने साफ कहा है कि वह पार्टी को मजबूत करने के लिए अपने एजेंडे पर कायम रहेंगे। इसका मतलब साफ है कि पुराने जमे लोगों को तकलीफ हो रही है। गडकरी के साथ संघ पूरी तरह खड़ा है। संघ चाहता है कि भाजपा की खोई हुई ऊर्जा वापस आए। गोपीनाथ मुंडे की लड़ाई मुद्दों पर नहीं है। दरअसल असल मुद्दा उनके लिए यह है कि उनसे जूनियर नितिन गडकरी दिसम्बर 2009 में अध्यक्ष बनने के बाद उनसे ऊपर कैसे पहुंच गए। वह आज भी अपने आपको गडकरी से ऊपर मानते हैं। वह खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। दुःखद यह है कि उस पार्टी के भीतर नेताओं के आपसी टकराव बढ़ रहे हैं, जो खुद को दूसरों से अलग बताती है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं को लेकर सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की तकरार सुर्खियों में थी। ऐसा लगता है कि पार्टी अटल जी के सक्रिय राजनीति से अलग होने और आडवाणी जी के संरक्षण की भूमिका में आने के बाद से नेतृत्व संकट से जूझ रही है। असल में पांच-सात वर्ष पहले तक जो नेता दूसरी और तीसरी पंक्ति में थे, वे अब पहली पंक्ति में आ गए हैं और उनमें आगे बढ़ने की होड़ लग गई है। यह विडम्बना ही है कि ऐसे समय जब देश घोटालों के अभूतपूर्व दौर से गुजर रहा है, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार चरम पर है और केंद्र सरकार लोकप्रियता के सबसे निचले स्तर पर आ गई है, प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते भाजपा का इन सबसे लड़ने के लिए न तो कोई ठोस कार्यक्रम है और न ही सशक्त नेतृत्व। कल को जनता पूछ सकती है कि अगर जनता आपको विकल्प की तरह चुने तो आपका प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन होगा? आपका नेतृत्व क्या है? हमारी राय में तो श्री गोपीनाथ मुंडे को निकाल बाहर करना चाहिए था ताकि दूसरों को भी सबक मिले। अपने आपको पार्टीविद् डिफरैंस कहलाने वाली पार्टी से यह उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह के समझौते करती फिरेगी?
Tags: Anil Narendra, BJP, Congress, Daily Pratap, Gopinath Munde, L K Advani, Maharashtra, Nitin Gadkari, Parmod Mahajan, Prithvi Raj Chavan, Sushma Swaraj, Vir Arjun

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