Thursday, 9 June 2011

उमा भारती की वापसी : सही दिशा में सही कदम


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 9th June 2011
अनिल नरेन्द्र
अंतत भाजपा के प्रधानमंत्री पद के तमाम दावेदारों के विरोध के बावजूद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उमा भारती को वापस पार्टी में शामिल कर लिया है। जब उमा भारती को भाजपा में फिर शामिल करने की घोषणा गडकरी पार्टी मुख्यालय में कर रहे थे तो उनका धुर विरोध करने वाले अरुण जेटली व सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू नदारद थे। दरअसल उमा भारती की वापसी के पीछे कई कारण, कई मजबूरियां थीं। सबसे अहम बात तो यह है कि आजकल सभी पार्टियों का फोकस मिशन यूपी 2012 पर लगा हुआ है। भाजपा नेतृत्व यह समझ रहा है कि कांग्रेस की हवा दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है पर इससे भाजपा का रास्ता आसान नहीं हो रहा है। दिल्ली की गद्दी का रास्ता वाया यूपी आता है। इसलिए अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो दिल्ली दरबार तक पहुंचना आसान नहीं होगा। यूपी में वैसे भी भाजपा के नेतृत्व का अभाव है, जो नेता हैं वह तमाम पूंके कारतूस की तरह हैं। भाजपा को यूपी में नई जान पूंकने के लिए एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो युवाओं, महिलाओं, पिछड़ों व हिन्दुत्व वोटों को एक साथ पार्टी के पीछे ला सके। उमा भारती में नितिन गडकरी को लगा कि यह सब खूबियां मौजूद हैं। वह कुशल प्रशासक भी हैं। जब वह मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने अच्छा शासन दिया था। उन्हीं के बल पर पार्टी सत्ता में आई थी।

उमा भारती की छह साल बाद वापसी हुई है। भाजपा नेतृत्व व रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरह से उमा भारती आक्रमक राजनीति करती हैं उनका मुकाबला उनके शब्दों और शैली में करने के लिए पार्टी के पास कोई वैसा नेता प्रदेश में मौजूद नहीं था जो उनकी भाषा में उनको जवाब दे सके। भाजपा का मानना है कि यदि पार्टी को उत्तर प्रदेश में सीटों में बढ़ोतरी न भी कर पाए तो भी वह जिस शैली में भाषण देती हैं उससे पार्टी के एक माहौल बनाने में सहायता अवश्य मिलेगी। सामाजिक संरचना की दृष्टि से भी अगर देखा जाए तो पार्टी को कद्दावर नेता रहे कल्याण सिंह की पार्टी से छुट्टी और पुनर्वापसी के बाद भी पार्टी अपने रुठे पिछड़े वर्ग को पार्टी में जोड़ने में असफल रही। उमा भारती का लोद जाति का होना भी पार्टी के लिए अच्छा है। हो सकता है कि जातिवाद की राजनीति के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग शायद उमा के कारण पार्टी से जुड़ जाए?

उमा भारती की मुश्किल यह है कि जब उन्हें गुस्सा आता है तो वह सब कुछ भूल जाती हैं और अपने आपे से बाहर हो जाती हैं। मुझे वह सीन आज भी याद है जब लगभग साढ़े पांच वर्ष पूर्व उमा भारती ने मीडिया के सामने ही लाल कृष्ण आडवाणी की उपस्थिति में पार्टी के कुछ लोगों पर ऑफ द रिकॉर्ड बात करने, छवि खराब करने और अपनी उपेक्षा का आरोप लगाया था और भरी मीटिंग से उठकर चली गई थीं। तब भाजपा संसदीय बोर्ड ने छह दिसम्बर 2005 को उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया था। जहां हम समझते हैं कि श्री नितिन गडकरी ने सही दिशा में एक सही कदम उठाया है वहीं उमा ने भी पिछले पांच-छह सालों में सीख ली होगी और भविष्य में वह अनुशासन की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघेंगी।
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