कांग्रेस के भीतर घमासान छिड़ा हुआ है। पार्टी का एक वर्ग जो काफी बड़ा है, का मत है कि राहुल गांधी को जल्द से जल्द प्रधानमंत्री बनाया जाए। अगर राहुल इसके लिए तैयार न हों तो उन्हें पार्टी की खातिर, देश की खातिर मनाया जाए। सोनिया गांधी के दबाव में भले ही दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बन सकने वाले अपने बयान से पीछे हटना पड़ा हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पार्टी अब डॉ. मनमोहन सिंह को हटाना नहीं चाहती। कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन को भी यह सफाई देनी पड़ी है कि राहुल भविष्य के नेता हैं और मनमोहन सिंह हमारे प्रधानमंत्री हैं और राहुल कब प्रधानमंत्री बनेंगे, यह फैसला पार्टी और खुद राहुल को करना है। लेकिन सोनिया-राहुल के वफादार कांग्रेसी नेताओं के बीच राहुल की ताजपोशी के समय को लेकर मंथन जारी है। कुछ लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावों के नतीजे के बाद इस पर फैसला लिया जाए जबकि कुछ का कहना है कि उत्तर प्रदेश के नतीजे पार्टी के हक में नहीं आए तो राहुल की ताजपोशी मुश्किल हो जाएगी और फिर 2014 का चुनाव भी मनमोहन सिंह की मौजूदा सरकार की अगुवाई में ही लड़ना होगा। अभी जिस प्रकार के हालात हैं उनमें 2014 का चुनावी संग्राम जीतना बहुत मुश्किल होगा और तब राहुल के लिए दिल्ली दूर अस्त वाला जुमला सही साबित हो जाएगा। इसलिए अगर राहुल को लाना है तो जल्दी ही लाना होगा।
दरअसल कांग्रेस आलाकमान के हाथ-पैर सन् 2009-2011 के बीच लगभग 20,00,000 करोड़ रुपये के कथित महाघोटालों से फूल गए हैं। अधिकांश सर्वेक्षणों में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को सर्वाधिक भ्रष्ट माना गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का स्थान आगे आने का चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है। परिणामस्वरूप कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्रॉफ दो वर्षों में सांप-सीढ़ी के पासों की तरह आसमान से जमीन पर आ गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज भी इतना कुछ होने के बावजूद डॉ. मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत छवि साफ है परन्तु डॉ. सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से तार-तार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। विगत एक वर्ष में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीन अवसरों पर दो टूक शब्दों में कहा है कि वे सेवानिवृत्त (रिटायर) नहीं हो रहे हैं, वे त्यागपत्र नहीं देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें अभी अधूरे काम पूरे करने हैं। राजनीतिक रूप से इस पेचीदा हालात में प्रधानमंत्री डॉ. सिंह को हटाने पर पार्टी में महाभारत को टाला नहीं जा सकता है।
राहुल को सरकार की कमान सौंपने के पीछे एक तर्प यह भी दिया जा रहा है कि अगर राहुल प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके नेतृत्व में लोकपाल कानून बनवाकर उसकी जांच के दायरे में कुछ शर्तों के साथ प्रधानमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल में शामिल करना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि कई घोटालों में सीधा-सीधा पीएमओ जांच के दायरे में आ रहा है। इसके साथ ही राहुल के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पारित कराकर किसानों की सहानुभूति उसी तरह और सरकार के साथ की जा सकती है जैसे किसानों के कर्ज माफ करके यूपीए के दौरान जुटाई गई थी। राहुल लाओ अभियान के समर्थकों का दूसरा मजबूत तर्प है कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का सबसे बड़ा फायदा उत्तर प्रदेश में होगा, जहां न सिर्प कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान आ जाएगी बल्कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत के आसार बहुत बढ़ जाएंगे। साथ ही उत्तराखंड और पंजाब विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन राहुल की ताजपोशी के खाते में चला जाएगा। इससे न सिर्प कांग्रेस के खिलाफ चलने वाले अभियान की धार पुंद होगी बल्कि उसके बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों और 2013 में होने वाले दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भी पार्टी को ताकत मिलेगी। इसके अलावा सोनिया-राहुल के वफादार कांग्रेसी नेता इसलिए भी राहुल की ताजपोशी जल्दी चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जिस तरह पिछले एक साल से यूपीए सरकार और कांग्रेस के खिलाफ प्रचार अभियान चल रहा है, उसके निशाने पर सबसे ज्यादा सोनिया-राहुल ही हैं। इसके खिलाफ आम जनता में राहुल को इस समय प्रधानमंत्री बनाने पर असहमति नजर आती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 71 फीसदी लोगों ने साफ कहा कि राहुल के लिए केवल इसलिए प्रधानमंत्री की मुहिम चल रही है क्योंकि वह नेहरू-गांधी खानदान के वंशज हैं। उनमें वह काबलियत, अनुभव नहीं है जो इस समय देश के प्रधानमंत्री को होना चाहिए। मोटे शब्दों में उनकी राय में राहुल गांधी प्राइम मिनिस्टर मैटीरियल के नहीं हैं। केवल 27 फीसदी लोग मानते हैं कि राहुल युवा शक्ति, उम्मीद के प्रतीक हैं और देश को ऐसे नेतृत्व की सख्त जरूरत है। फेसबुक पर भी 65 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राहुल पीएम बनने के लिए अभी तैयार नहीं हैं, न वह खुद बनना चाहते हैं और न ही उनमें इतनी क्षमता है।
Tags: Anil Narendra, Corruption, Daily Pratap, Digvijay Singh, Manmohan Singh, Prime Minister, Rahul Gandhi, Transparency International, Uttar Pradesh, Vir Arjun
दरअसल कांग्रेस आलाकमान के हाथ-पैर सन् 2009-2011 के बीच लगभग 20,00,000 करोड़ रुपये के कथित महाघोटालों से फूल गए हैं। अधिकांश सर्वेक्षणों में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को सर्वाधिक भ्रष्ट माना गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का स्थान आगे आने का चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया है। परिणामस्वरूप कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्रॉफ दो वर्षों में सांप-सीढ़ी के पासों की तरह आसमान से जमीन पर आ गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज भी इतना कुछ होने के बावजूद डॉ. मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत छवि साफ है परन्तु डॉ. सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से तार-तार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। विगत एक वर्ष में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तीन अवसरों पर दो टूक शब्दों में कहा है कि वे सेवानिवृत्त (रिटायर) नहीं हो रहे हैं, वे त्यागपत्र नहीं देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें अभी अधूरे काम पूरे करने हैं। राजनीतिक रूप से इस पेचीदा हालात में प्रधानमंत्री डॉ. सिंह को हटाने पर पार्टी में महाभारत को टाला नहीं जा सकता है।
राहुल को सरकार की कमान सौंपने के पीछे एक तर्प यह भी दिया जा रहा है कि अगर राहुल प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके नेतृत्व में लोकपाल कानून बनवाकर उसकी जांच के दायरे में कुछ शर्तों के साथ प्रधानमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल में शामिल करना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि कई घोटालों में सीधा-सीधा पीएमओ जांच के दायरे में आ रहा है। इसके साथ ही राहुल के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पारित कराकर किसानों की सहानुभूति उसी तरह और सरकार के साथ की जा सकती है जैसे किसानों के कर्ज माफ करके यूपीए के दौरान जुटाई गई थी। राहुल लाओ अभियान के समर्थकों का दूसरा मजबूत तर्प है कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का सबसे बड़ा फायदा उत्तर प्रदेश में होगा, जहां न सिर्प कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान आ जाएगी बल्कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत के आसार बहुत बढ़ जाएंगे। साथ ही उत्तराखंड और पंजाब विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन राहुल की ताजपोशी के खाते में चला जाएगा। इससे न सिर्प कांग्रेस के खिलाफ चलने वाले अभियान की धार पुंद होगी बल्कि उसके बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों और 2013 में होने वाले दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भी पार्टी को ताकत मिलेगी। इसके अलावा सोनिया-राहुल के वफादार कांग्रेसी नेता इसलिए भी राहुल की ताजपोशी जल्दी चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जिस तरह पिछले एक साल से यूपीए सरकार और कांग्रेस के खिलाफ प्रचार अभियान चल रहा है, उसके निशाने पर सबसे ज्यादा सोनिया-राहुल ही हैं। इसके खिलाफ आम जनता में राहुल को इस समय प्रधानमंत्री बनाने पर असहमति नजर आती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 71 फीसदी लोगों ने साफ कहा कि राहुल के लिए केवल इसलिए प्रधानमंत्री की मुहिम चल रही है क्योंकि वह नेहरू-गांधी खानदान के वंशज हैं। उनमें वह काबलियत, अनुभव नहीं है जो इस समय देश के प्रधानमंत्री को होना चाहिए। मोटे शब्दों में उनकी राय में राहुल गांधी प्राइम मिनिस्टर मैटीरियल के नहीं हैं। केवल 27 फीसदी लोग मानते हैं कि राहुल युवा शक्ति, उम्मीद के प्रतीक हैं और देश को ऐसे नेतृत्व की सख्त जरूरत है। फेसबुक पर भी 65 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राहुल पीएम बनने के लिए अभी तैयार नहीं हैं, न वह खुद बनना चाहते हैं और न ही उनमें इतनी क्षमता है।
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