गुरुवार को इस मौसम का दिल्ली में सबसे ठंडा दिन रहा। न्यूनतम तापमान सामान्य से तीन डिग्री कम 5.9 डिग्री सेल्सियस रहा। मौसम विभाग के मुताबिक अगले तीन-चार दिन तक पारा 5 से 6 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही बना रहेगा लेकिन अगले सप्ताह से पारा गिरेगा और कड़ाके की ठंड पड़ेगी। 22 दिसम्बर तक राजधानी में बारिश होने की भी संभावना है। इस कड़ाके की ठंड में मैं जब सोचता हूं कि हजारों लोग आज भी फुटपाथों, सड़कों पर सोने के लिए मजबूर हैं तो मेरा मन यह प्रश्न पूछने पर मजबूर हो जाता है कि किस बात के लिए हम यह कहते नहीं थकते कि मेरा भारत महान है? एक तरफ तो कहा जाता है कि भारत दुनिया की गिनी-चुनी बढ़ती अर्थव्यवस्था का प्रतीक है और दूसरी ओर आज तक हम गरीब, बेसहारा आदमी के लिए ठीक ढंग से रैन बसेरे तक नहीं बना सके? यह संतोष की बात है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों को इन गरीबों की चिन्ता जरूर है। सुप्रीम कोर्ट के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि कड़ाके की इस ठंड में हजारों बेसहारा लोग सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर हैं लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे ही है। इसे चिन्ताजनक बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने उन 84 अस्थायी नाइट शेल्टर को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया है जिसे 9 अगस्त के आदेश को दरकिनार कर बन्द कर दिया गया। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने मास्टर प्लान 2021 के हिसाब से भविष्य की जरूरतों को देखने के लिए 184 स्थायी नाइट शेल्टर बनाने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सोमवार को इससे जुड़े मामलों में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को सभी शहरों में नाइट शेल्टर का पर्याप्त इंतजाम करने को कहा।
दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार खाने के बाद दिल्ली सरकार को रैन बसेरों की सुध आई है। सरकार के कर्मचारी बृहस्पतिवार देर शाम तक अस्थायी रैन बसेरों की संख्या 30 तक पहुंचाने में जुट गए। पांच और रैन बसेरे अगले तीन दिनों में बनाए जाएंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मेरे भारत महान की राजधानी दिल्ली में पौने दो लाख लोग बेघर हैं। इनके लिए बड़ी संख्या में रैन बसेरों की जरूरत है। लेकिन दिल्ली सरकार के पास महज 64 रैन बसेरे हैं। अगर हम प्रति रैन बसेरे का हिसाब लगाएं तो लगभग 2735 लोग प्रति रैन बसेरे में रह सकते हैं पर इतनी संख्या होने के बावजूद सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन 64 बसेरों में से भी अधिकतर बन्द पड़े हैं। पिछले साल 84 अस्थायी रैन बसेरे बनाए गए, जिनमें 17 जल गए, 52 अस्थायी रैन बसेरों को यह तर्प देकर बन्द कर दिया गया कि बेघर लोग इसमें रहने के लिए नहीं आ रहे हैं और 15 रैन बसेरे अब भी चालू हैं। यह दुःख की बात है कि दिल्ली सरकार इन बेसहारा लोगों के प्रति इतनी असंवेदनशील है। आखिर उन्हें भी इस कड़ाके की ठंड में सुरक्षित रात बिताने का हक है। यह सरकार का काम है कि उन्हें कम से कम खुले आसमान में रात बिताने से बचाए और पर्याप्त व्यवस्था करे। सरकार को खुद भी सोचना चाहिए और इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट ही फटकार लगाए तब जाकर वह यह काम करे। मेरे भारत महान का एक असली चेहरा यह भी है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Delhi Government, Delhi High Court, India, MCD, Night Shelters, Poor, Vir Arjun
दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार खाने के बाद दिल्ली सरकार को रैन बसेरों की सुध आई है। सरकार के कर्मचारी बृहस्पतिवार देर शाम तक अस्थायी रैन बसेरों की संख्या 30 तक पहुंचाने में जुट गए। पांच और रैन बसेरे अगले तीन दिनों में बनाए जाएंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मेरे भारत महान की राजधानी दिल्ली में पौने दो लाख लोग बेघर हैं। इनके लिए बड़ी संख्या में रैन बसेरों की जरूरत है। लेकिन दिल्ली सरकार के पास महज 64 रैन बसेरे हैं। अगर हम प्रति रैन बसेरे का हिसाब लगाएं तो लगभग 2735 लोग प्रति रैन बसेरे में रह सकते हैं पर इतनी संख्या होने के बावजूद सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन 64 बसेरों में से भी अधिकतर बन्द पड़े हैं। पिछले साल 84 अस्थायी रैन बसेरे बनाए गए, जिनमें 17 जल गए, 52 अस्थायी रैन बसेरों को यह तर्प देकर बन्द कर दिया गया कि बेघर लोग इसमें रहने के लिए नहीं आ रहे हैं और 15 रैन बसेरे अब भी चालू हैं। यह दुःख की बात है कि दिल्ली सरकार इन बेसहारा लोगों के प्रति इतनी असंवेदनशील है। आखिर उन्हें भी इस कड़ाके की ठंड में सुरक्षित रात बिताने का हक है। यह सरकार का काम है कि उन्हें कम से कम खुले आसमान में रात बिताने से बचाए और पर्याप्त व्यवस्था करे। सरकार को खुद भी सोचना चाहिए और इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट ही फटकार लगाए तब जाकर वह यह काम करे। मेरे भारत महान का एक असली चेहरा यह भी है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Delhi Government, Delhi High Court, India, MCD, Night Shelters, Poor, Vir Arjun
No comments:
Post a Comment