Thursday 8 December 2011

एफडीआई पर रोल बैक या होल्ड बैक स्थिति स्पष्ट नहीं



Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 8th December 2011
अनिल नरेन्द्र
एफडीआई पर स्थिति अभी भी साफ नहीं है। दरअसल मनमोहन सिंह सरकार की नीयत साफ नहीं है। पहले तो ममता बनर्जी से कह दिया कि आप इसको होल्ड पर रखने की घोषणा कर दो पर जब विपक्ष इस बात पर अड़ गया कि सरकार को घोषणा करनी चाहिए न कि एक सहयोगी दल को तो वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, भाजपा के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी और माकपा सांसद सीताराम येचुरी सहित विपक्ष के नेताओं से चर्चा कर बताया कि मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई का फैसला `होल्ड' कर लिया गया है। सभी दलों की सहमति के बाद ही उस पर कोई अंतिम फैसला किया जाएगा यानि कुल मिलाकर सरकार ने इसे वापस नहीं लिया है, होल्ड पर रखा है। रोल बैक नहीं किया है। अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि भाजपा एफडीआई मुद्दे पर रोल बैक के लिए कोई ढील नहीं देगी। जेटली ने कहा एफडीआई से किसानों, छोटे दुकानदारों और आम लोगों के हितों पर सिर्प विदेशी कम्पनियों का फायदा होगा। एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि बीजेपी सुधार के पक्ष में है, लेकिन ऐसा भी सुधार नहीं चाहिए, जिसमें हित ही नहीं देखा जाए। इस प्रस्ताव के पीछे विदेशी दबाव लग रहा है और हम किसी भी सूरत में इसका समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि इससे भारत के बाजार चीन में बने सस्ते सामान से लद जाएंगे। उधर सीपीएम ने कहा कि होल्ड करने से कोई हल नहीं निकलेगा। पार्टी तब तक इसका विरोध करती रहेगी जब तक इसे वापस नहीं ले लिया जाएगा। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने प्रेस कांफ्रेस में कहा कि सरकार की मंशा संसद के शीतकालीन सत्र के बाद इसे लागू करने की है, लेकिन इसे पूरा नहीं होने दिया जाएगा। सरकार पहले इस प्रस्ताव को रद्द करे तभी संसद चल पाएगी।
एफडीआई का प्रस्ताव होल्ड पर हो या बोल्ड हो दोनों ही सूरत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यह व्यक्तिगत हार है और वह एक बार फिर बुरी तरह एक्सपोज हो गए हैं। अपने इतने वर्षों के कार्यकाल में बतौर पीएम मनमोहन सिंह ने केवल दो मुद्दों पर अपना सब कुछ दाव पर लगाया था। पहली थी अमेरिका से न्यूक्लियर डील और दूसरा यह एफडीआई का प्रस्ताव। प्रधानमंत्री बार-बार यह कहते रहे कि यह प्रस्ताव किसी भी हालत में वापस नहीं होगा, अगर ऐसा हुआ तो सरकार की साख पर धब्बा लगेगा। राजनीतिक क्षेत्रों में यह आम संकेत जा रहा है कि मनमोहन सिंह सरकार ने रिटेल में एफडीआई का फैसला अमेरिकी दबाव में लिया था और इसकी वजह यह है कि भारतीय बहुराष्ट्रीय लॉबी इसी मामले पर काम कर रही थी ताकि इस चालाकी भरी चाल को अमली जामा पहनाया जा सके। इसमें कोई शक नहीं कि वाणिज्य मंत्री आनन्द शर्मा इस मामले को लागू करने के लिए एक ऐसी ही ताकत के रूप में काम कर रहे हैं जिसका इस मामले पर एक खास लॉबी से रिश्ता है। एफडीआई पर कैबिनेट के फैसले के ऐलान करने के शीघ्र बाद वह चेन्नई रवाना हो गए। उन्होंने अपने स्टाफ को एक खास मल्टी नेशनल कम्पनी से सम्पर्प कराने और साथ ही इस निर्णय के समर्थन में किसानों की प्रतिक्रिया जानने के लिए एक आयोजन कराने को भी कहा। यह सब तब पता चला जब एक टीवी चैनल ने अगले ही दिन पंजाब में कुछ किसानों की बाइट्स दिखाई जो इस निर्णय को लेकर अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे। इन किसानों ने सब्जियों के रेट मार्केट की तुलना में ज्यादा मिलने के लिए मल्टी नेशनल कम्पनियों की तारीफ भी की। जनता में यह सन्देश जा रहा है कि मनमोहन सिंह और उनके मंत्री अमेरिका और भारतीय उद्योगपतियों के लिए काम कर रहे हैं। वह इनके हितों को देश की जनता के हितों से ऊपर रख रहे हैं। देखना अब यह है कि इस मुद्दे पर मनमोहन सिंह का अंतिम फैसला क्या होता है, रोल बैक या होल्ड बैक?
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