संसद पर हमले की दसवीं बरसी पर शहीद हुए जवानों के परिजनों ने कहा कि जब तक हमले के दोषी अफजल को फांसी नहीं दी जाती तब तक वह किसी भी सरकारी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे। यही नहीं उन्होंने संसद में श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने से भी इंकार कर दिया। इस संबंध में उन्होंने राष्ट्रपति को भी एक ज्ञापन सौंपा। वहीं एआईएटीएफ की ओर से अमर जवान ज्योति पर हुई एक श्रद्धांजलि सभा में शहीदों को याद किया गया। हमले में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल के पिता सरदार सिंह, शहीद जेपी यादव की पत्नी प्रेम यादव, शहीद हवलदार विजेन्द्र सिंह के ससुर कैप्टन जगमाल सिंह, सीआरपीएफ की शहीद महिला जवान कमलेश यादव के पति अवधेश कुमार सहित अन्य शहीदों के पीड़ित परिजन मौजूद थे। पीड़ित परिजनों ने एक सुर में कहा कि जब तक अफजल को फांसी नहीं दी जाती तब तक वह किसी सरकारी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे। हम पीड़ित परिवारों से न केवल हमदर्दी रखते हैं पर उनकी मांग का भी समर्थन करते हैं। आखिर आतंकी अफजल को सजा कब मिलेगी? इस सवाल से देश के शासकों को शायद कोई फर्प न पड़ता हो पर आम देशवासी का मस्तिष्क शर्म से झुक जाता है। हम यह नहीं समझ सकते कि आखिर जिस आदामी ने देश की इज्जत पर हमला किया हो, हमारी आन-बान-शान मिट्टी में मिला दी हो उस आदमी को यह संप्रग सरकार बतौर सरकारी मेहमान बनाकर क्यों पाल रही है? क्या सिर्प वोट बैंक का तकाजा ही ऐसे महत्वपूर्ण फैसले के लिए आधार होगा? क्या यह सरकार इतनी-सी बात नहीं समझ पाती कि उसकी निक्रियता का हमारे सुरक्षा बलों के मनोबल पर क्या असर पड़ रहा है। यह निहायत अफसोस की बात है कि पिछले सात सालों में अफजल का मामला फिजूल के बहानों के कारण लटका हुआ है। हमारी राय में यह न केवल आतंकवादियों को प्रोत्साहित करने के समान है बल्कि उनके सामने घुटने टेकने जैसा है। जनता में यह प्रश्न आज खुलेआम पूछा जा रहा है कि इस सरकार में आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति है भी या नहीं। जो सरकार अपने वोट बैंक की राजनीति को उपर रखकर देश की सुरक्षा से समझौता करती है वह देशवासियों की सुरक्षा कितनी कर पाएगी? अफजल की दया याचिका संबंधी फाइल पिछले सात सालों से जिस तरह गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और राष्ट्रपति भवन के दो-चार किलोमीटर के दायरे में घूम रही है उसे देखते हुए तो ऐसा लगता है कि अफजल की सजा पर क्रियान्वयन में अभी कई वर्ष और लग जाएंगे। सरकार बेशर्मों की तरह जवाब दे देती है कि अफजल गुरू की दया याचिका फाइल राष्ट्रपति के पास है और राष्ट्रपति भवन को ही इस बारे में फैसला करना है। गृह मंत्रालय ने अफजल गुरू का मामला राष्ट्रपति सचिवालय को 27 जुलाई 2011 को भेजा था और सिफारिश की थी कि उसकी दया याचिका को नामंजूर किया जाना चाहिए। अगर केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह का यह कथन सही है तो फिर अफजल की फांसी में अड़चन कहां है? दिल्ली सरकार, गृह मंत्रालय दोनों ने पहले ही अपनी स्वीकृति दे दी है अब तो राष्ट्रपति को बस अपनी मोहर लगानी है दया याचिका को रिजैक्ट करना है, इसमें कितना समय और लगेगा?
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