Wednesday 21 December 2011

भूचाल के बीच जरदारी का लौटना आग में घी का काम करेगा


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21st December 2011
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान में यह अफवाह कि सदर आसिफ अली जरदारी देश छोड़कर भाग गए हैं, गलत और बेबुनियाद साबित हुई है। कहा तो यह जा रहा था कि सेना के दबाव में जरदारी दुबई भाग गए हैं और वहां से लंदन जाएंगे, उन्हें कोई बीमारी नहीं पर जरदारी ने सबको गलत साबित किया और वह सोमवार को दुबई से पाकिस्तान लौट आए हैं। जरदारी लगभग 15 दिन दुबई रहे। राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता एजाज दुर्रानी ने एक बयान में कहा, `जरदारी बीमारी से पूरी तरह उबर चुके हैं और अब उनकी सेहत अच्छी है। वह इस्लामाबाद जाने से पहले कुछ दिनों तक कराची में रहेंगे और जल्द राजनीतिक गतिविधियां शुरू करेंगे।' हालांकि जरदारी की वापसी से तख्तापलट की अटकल रुक गई है पर पाक के ज्यादातर नेता एक बार जब मुल्क से बाहर जाते हैं तो दोबारा खाली हाथ ही लौटते हैं। हमारे सामने दो उदाहरण हैं। पहला बेनजीर भुट्टो का जो भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद जब राष्ट्रपति ने बेनजीर की सरकार को बर्खास्त किया था और 1997 के चुनावों में भुट्टो को हार मिली तो वह आत्म निर्वासन में दुबई चली गईं। इसी तरह 2001 से 2008 तक राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ के खिलाफ जब महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाने वाला था, वह 18 अगस्त 2008 को इस्तीफा देकर लंदन चले गए। तब से वह वहीं हैं। हालांकि वह अब कह रहे हैं कि जनवरी 2012 में वह स्वदेश लौट रहे हैं। जरदारी के वापस आने से पाकिस्तान की सियासत में आया तूफान शायद ही थमे। यह किसी से छिपा नहीं कि मेमोगेट के बाद पाक सेना जरदारी और उनकी सरकार के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के कुछ समय बाद आईएसआई प्रमुख अहमद शुजा पाशा गुप्त रूप से खाड़ी देशों की यात्रा पर गए थे। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति जरदारी को अपदस्थ करने की पूरी योजना तैयार कर ली थी। इसके लिए उन्होंने अरब देश के नेताओं से इजाजत भी ले ली थी। पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी कारोबारी मंसूर एजाज ने गत मई में अपने ब्लॉग पर यह रहस्योद्घाटन किया था। उन्होंने दावा किया था कि 2 मई को एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद जब अचानक शुजा पाशा गायब हुए थे, तब वह अरब देशों के दौरे पर थे। एजाज ने ही तख्तापलट की आशंका के चलते जरदारी द्वारा अमेरिका से मदद के लिए लिखे गए गोपनीय पत्र को उजागर किया था। ब्रिटिश अखबार `द इंडिपेंडेंट' के पत्रकार उमर वाराइच के हवाले से चैनल जियो न्यूज ने यह जानकारी दी है। उधर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी ने पहली बार गुप्त ज्ञापन दस्तावेज (मेमोगेट) के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए कहा कि यह सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ साजिश थी। इसकी गहन जांच होनी चाहिए। कयानी ने यह बात इस मामले को लेकर पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कही है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की जांच कराने संबंधी नौ याचिकाएं दायर हुई हैं। अदालत ने इस मामले में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी समेत 10 पक्षों को 15 दिसम्बर तक अपने जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था। एबटाबाद में अमेरिकी कमांडो द्वारा ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद सैन्य तख्तापलट की आशंका के चलते जरदारी ने मदद के लिए ओबामा प्रशासन को एक गोपनीय पत्र लिखा था जिसके रहस्योद्घाटन के बाद पाकिस्तान की सियासत में भूचाल आ गया था। इस मामले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा ने अपने जवाब में कहा कि वह गुप्त ज्ञापन के बारे में पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी कारोबारी मंसूर एजाज की ओर से दिए गए सुबूतों से संतुष्ट है जबकि कयानी की मांग है कि अमेरिकी सेना को भेजे गए गुप्त ज्ञापन से जुड़ी सारी सच्चाई सामने लाई जाए। उनका कहना है कि इस प्रकरण से उनके सैनिकों का मनोबल प्रभावित हुआ है। हालांकि जरदारी की ओर से अदालत में कोई जवाब पेश नहीं किया गया। सरकार चाहती है कि मामले की जांच करने वाली याचिकाएं खारिज कर दी जाएं, क्योंकि जांच से पहले ही एक संसदीय समिति का गठन कर दिया गया है। मेमोगेट को लेकर पाकिस्तान में तनाव बराबर बना हुआ है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कहा कि अगले साल होने वाले सीनेट चुनाव के टाल-मटोल के लिए उनकी सरकार के खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। लाहौर में एक निजी कार्यक्रम में पत्रकारों से बात करते हुए गिलानी ने कहा कि सभी साजिशें सीनेट चुनावों को रोकने से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में मॉर्शल लॉ के लिए कोई जगह नहीं है। हालांकि गिलानी ने साजिशों के पीछे कौन है, यह नहीं बताया पर साफ है कि उनका इशारा पाक सेना की तरफ है। पाकिस्तान की सियासत में भूचाल थमने वाला नहीं है। यह लड़ाई सेना बनाम चुनी हुई जरदारी की सरकार के बीच है। सेना का गुप्त समर्थन दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी कर रही हैं। नवाज शरीफ और इमरान खान अपनी-अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। पाकिस्तानी सेना हर हालत में जरदारी एण्ड कम्पनी की छुट्टी करना चाहती है इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता कि आने वाले दिनों में क्या होगा? एक बार फिर पाकिस्तान सियासी चौराहे पर खड़ा है।

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