Sunday 4 December 2011

मनमोहन ने अपनी सरकार, पार्टी व देश को दाव पर लगा दिया है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 4th December 2011
अनिल नरेन्द्र
क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी देश और संसद का ध्यान ज्वलंत मुद्दों, भ्रष्टाचार, महंगाई, ब्लैक मनी से हटाने के लिए यह खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का मुद्दा लाए हैं? माकपा नेता सीताराम येचुरी तो कम से कम यह मानते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार संसद की कार्यवाही में बाधा को जानबूझ कर जारी रख रही है। यह लोकपाल, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि मुद्दों पर चर्चा और बहस से बचने की राजनीति का एक हिस्सा है। यह दिन-ब-दिन साफ होता जा रहा है कि सरकार इस सत्र में कामकाज नहीं होने देना चाहती। येचुरी की इस दलील में कुछ दम है। यह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की रणनीति का एक हिस्सा हो सकता है पर जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का इस रणनीति में शामिल होने का सवाल है, हमें नहीं लगता कि वह ऐसा करने को अपनी हामी दे सकती हैं। अंदरुनी खबर तो यह है कि सोनिया गांधी व राहुल गांधी मनमोहन सिंह की इस हठधर्मिता से सख्त नाराज हैं। एफडीआई मुद्दे पर फंसी मनमोहन सिंह सरकार को सोनिया गांधी ने उसके हाल पर छोड़ दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक दो दिन पहले हुई कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी उस समय झल्ला गईं जब प्रधानमंत्री ने पूरा मामला सोनिया पर छोड़ना चाहा। डॉ. मनमोहन सिंह ने तो दो टूक कहा कि सरकार संसद में मतदान का सामना करे या फिर एफडीआई पर फैसला ले। इस पर पहले से ही नाराज चल रहीं सोनिया गांधी ने कहा कि जब केंद्र को एफडीआई पर निर्णय लेना था तो उनसे क्यों नहीं पूछा गया था और जब स्वयं अपने विवेक पर उन्होंने (प्रधानमंत्री ने) यह फैसला लिया है तो फिर उनको (प्रधानमंत्री) ही इस संकट से निपटना चाहिए। डॉ. मनमोहन सिंह पता नहीं क्यों अपना और अपनी सरकार व पार्टी का सब कुछ इस मुद्दे को लेकर दाव पर लगाने पर तुले हुए हैं। बार-बार वह यह दोहराते नहीं थकते कि अगर उन्होंने एफडीआई को वापस लिया या रोल बैक किया तो उनकी सरकार की साख घटेगी। उन्होंने सरकार के सहयोगी दलों तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के नेताओं से मुलाकात कर कहा कि इस पर वह अपनी जिद्द छोड़ दें, क्योंकि कोई भी फैसला वापस लेने से सरकार की विश्वसनीयता कम होती है। हम डॉ. मनमोहन सिंह से पूछना चाहते हैं कि आपकी और सरकार की विश्वसनीयता है कहां जो कम होगी? आप इतनी-सी बात नहीं समझ रहे कि आज पूरा देश आपके इस निर्णय के खिलाफ है और सड़कों पर उतर आया है। 22 नवम्बर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में एक दिन भी कामकाज नहीं हुआ है। अगर हम विभिन्न राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उड़ीसा, प. बंगाल, केरल, पंजाब, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड और उत्तराखंड एफडीआई के विरोध में हैं। सिर्प दिल्ली, आंध्र, अरुणाचल, राजस्थान, हरियाणा, मिजोरम, मणिपुर असम, गोवा और महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित) राज्य ही इसके हक में हैं। अगर हम लोकसभा में सांसदों की बात करें तो कुल 543 में से 278 सांसद विरोध में हैं। इनमें भाजपा (115), अकाली दल (4), सपा (22), बसपा (21), जद (यू) (20), तृणमूल (18), लेफ्ट (24), द्रमुक (18), बीजद (14), अन्ना द्रमुक (9), शिवसेना (11) और तेदेपा (6) सांसद। सरकार के साथ कांग्रेस के 207 और एनसीपी के 9 सांसद हैं। अगर कल को वोटिंग की नौबत आई तो कुछ भी हो सकता है। सरकार गिर भी सकती है। प्रधानमंत्री पता नहीं यह क्यों नहीं समझ रहे कि उनके साथ तो उनके गठबंधन सहयोगी भी नहीं हैं। प्रधानमंत्री की तमाम कोशिशों के बावजूद तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने दो टूक कह दिया है कि उनकी पार्टी इस फैसले का समर्थन नहीं कर सकती। हालांकि ममता ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी संप्रग सरकार को गिराने के पक्ष में नहीं है। तृणमूल कांग्रेस ही क्यों, हमें नहीं लगता कि कोई भी विपक्षी दल इस समय संप्रग सरकार को गिराने में दिलचस्पी रखता है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कोई भी दल देश को मध्यावधि चुनाव में घसीटना नहीं चाहेगा। हां, पर सरदार मनमोहन सिंह ने अपनी जिद्द को पूरा करने के लिए पूरे देश को, अपनी सरकार व अपनी पार्टी को दाव पर जरूर लगा दिया है। यह कहावत है न `सनम हम तो डूबेंगे तुम्हें साथ ले डूबेंगे' फिट बैठती है। जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है वह दिन-रात लोकसभा में आंकड़े पूरे करने में लग गई है। कल को अगर वोटिंग की नौबत आए तो सरकार को बचाने के लिए उसके पास पर्याप्त सांसद संख्या होनी चाहिए और यह नौबत केवल एक आदमी की हठधर्मिता के कारण आएगी।
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