Thursday, 22 December 2011

लोकपाल बिल पर टकराव की पूरी सम्भावना है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23rd December 2011
अनिल नरेन्द्र
सरकार और अन्ना हजारे का टकराव अब होना सम्भावित लग रहा है। सरकार ने साफ कर दिया है कि न तो उसे टीम अन्ना से कोई डर है और न ही अब वह उसके सामने झुकने को तैयार है। वह टीम अन्ना से लम्बी लड़ाई लड़ने को तैयार है। अब तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मैदान में आ गई हैं और उन्होंने कमान सम्भाल ली है। सोनिया गांधी न लोकपाल को आधार बनाते हुए अन्ना हजारे और विपक्षी दलों को सीधी चुनौती दे दी है। सरकारी लोकपाल बिल का समर्थन करते हुए उन्होंने बुधवार को कहा कि इसे अब अन्ना और विपक्ष को स्वीकार कर लेना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो कांग्रेस पांच राज्यों के आगामी चुनाव में इन दोनों चुनौतियों से निपटने तथा लम्बी लड़ाई लड़ने को तैयार है। बुधवार को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में आक्रामक तेवर दिखाते हुए सोनिया ने पहली बार लोकपाल पर अपने विचार रखे। सरकार और संगठन के बीच किसी भी मतभेद को दरकिनार करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि यह बिल बहुत अच्छा बना है और इसे पारित कराने में विपक्ष को अड़चन पैदा नहीं करनी चाहिए और अन्ना हजारे को भी इसे स्वीकार कर लेना चाहिए पर अन्ना हजारे को वर्तमान स्वरूप में लोकपाल बिल स्वीकार्य नहीं है। सबसे बड़ा मतभेद सीबीआई और ग्रुप सी की ब्यूरोकेसी को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने को है। अन्ना ने अपना अभियान तेज करते हुए कहा कि सीबीआई को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के पीछे सरकार की मंशा नेताओं को बचाने की है। यदि सीबीआई (लोकपाल से) बाहर रहेगा तो लोकपाल कैसे मजबूत होगा? यदि सीबीआई लोकपाल के आधीन आ जाती है तो (गृहमंत्री) पी. चिदम्बरम जेल के अन्दर होंगे। आप भ्रष्ट नेताओं को बचा रहे हैं और कह रहे हैं कि यह मजबूत लोकपाल है। उन्होंने कहा कि यह सरकार लोगों को धोखा दे रही है। जनता उसे सबक सिखा देगी। उन्होंने कहा कि अगले साल उत्तर प्रदेश और जिन चार अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां संप्रग के खिलाफ अभियान चलाएंगे। विधेयक को खारिज करते हुए अन्ना ने कहा कि अलग से सिटीजन चार्टर विधेयक लाने के लिए भी सरकार ने जनता के हितों को नजरंदाज किया है। आम आदमी को अपनी शिकायत के निवारण के लिए प्रस्तावित तंत्र के तहत बेमतलब यहां से वहां दौड़ना पड़ेगा। यह लोगों से धोखा है। उधर सरकार ने मंगलवार को भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए अपनी रणनीति के तहत लोकसभा में सिटीजन चार्टर बिल पेश कर दिया। विधेयक में हर नागरिक को समयबद्ध तरीके से सामान और सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ शिकायतों के निवारण का अधिकार दिया गया है यानि सरकारी महकमों में कौन-से काम कितने दिनों में होंगे। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह पहले से बताना होगा। ऐसा न होने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ शिकायत की जा सकेगी। हमें नहीं लगता कि लोकसभा में इसी सत्र में यह बिल पास हो सकेगा? क्रिसमस की छुट्टी के बाद सदन की कार्यवाही 27, 28 और 29 दिसम्बर तक बढ़ाने को लेकर सांसदों में भारी विरोध है। क्रिसमस के बाद सदन चलाने को लेकर खासतौर से केरल और अरुणाचल प्रदेश के सांसदों का विरोध इसलिए है कि उन्होंने पहले से ही साल के अन्त में परिवार के साथ छुट्टियां मनाने का प्रोग्राम बना रखा है। उनमें से कई विदेश भी जाना चाह रहे हैं। उधर भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों का भी सरकारी लोकपाल बिल पर स्टैंड स्पष्ट नहीं। लोकपाल के कई प्रावधानों पर अब भी सहमति नहीं है। सरकारी प्रवक्ता कह रहे हैं कि सिर्प दो दिन में ही लोकपाल पारित हो सकता है बशर्ते विपक्ष साथ दे और पारित कराने में सहयोग दे। लेकिन सरकारी मसौदा देखने से पहले विपक्ष खासतौर से भाजपा कोई भी आश्वासन देने को तैयार नहीं था। दूसरे विपक्षी दल भी तेवर बनाए हुए हैं। ऐसे में 23 दिसम्बर तक विस्तृत चर्चा के बाद लोकपाल पारित कराना सम्भव नहीं लगता। अगर संसद में विधेयक को लेकर आम सहमति न बनी तो आगे क्या होगा? सम्भव है कि विधेयक को सिलैक्ट कमेटी को सौंप दिया जाए। इससे सभी पक्षों का स्टैंड बरकरार रहेगा।
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